किसी त्रासद घटना का सबक यह होना चाहिए कि उसमें हुई हानि को ध्यान में रख कर बाकी जगहों पर भी ऐसे उपाय किए जाएं जिससे वैसी घटनाओं से बचा जा सके। मगर विडंबना यह है कि ज्यादातर घटनाओं को स्थानीय समस्या मान कर दूसरी जगहों पर उसकी अनदेखी कर दी जाती है या फिर उसे महज एक खबर की तरह देखा जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों से अक्सर जहरीली शराब का सेवन करने से लोगों के मरने की खबरें आती रहती हैं। मगर वैसी घटनाओं में कारणों और परिणाम को लेकर एक व्यापक चिंता ठोस शक्ल नहीं लेती। गौरतलब है कि तमिलनाडु के कल्लाकुरिचि जिले में अवैध देसी शराब पीने की वजह से कम से कम सैंतालीस लोगों की जान चली गई और अन्य तीस लोगों की हालत बेहद गंभीर हो गई।
इस शराब के सेवन से एक सौ पैंसठ लोग बीमार हुए थे, जिन्हें अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया। यह अवैध तरीके से शराब बना कर लोगों को बेचने वाले की आपराधिक लापरवाही का नतीजा है, लेकिन जिस तमिलनाडु को कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर बेहतर स्थिति में माना जाता है, वहां पुलिस-प्रशासन की नाक के नीचे शराब के नाम पर जहर परोसने का गैरकानूनी कारोबार करने वालों को यह सुविधा कैसे मिली कि वे बेधड़क अपना धंधा चला रहे थे और उनके पास भारी संख्या में लोग शराब पीने पहुंचते थे।
जाहिर है, इतने सारे लोगों के मारे जाने के बाद अब सरकार और प्रशासन की ओर से एक औपचारिकता पूरी करने के लिए घटना की जांच, गहन तलाशी अभियान चलाने का निर्देश और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिया गया है। सरकार ने जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद की भी घोषणा की है। सरकार ने उस इलाके में प्रभावित लोगों की वास्तविक संख्या जानने के लिए घर-घर जाकर गणना करने की भी बात कही है।
यह अपील की गई है कि जिन लोगों ने अवैध शराब का सेवन किया है, वे जल्द से जल्द जांच कराएं और जरूरी होने पर इलाज कराएं। इसे सरकार की संवेदनशीलता के तौर पर देखा जा सकता है। मगर यह समझना मुश्किल है कि सरकारी तंत्र की इस तरह की सक्रियता किसी त्रासद घटना के सामने आने और उसके तूल पकड़ लेने के बाद ही क्यों दिखाई देती है!