रूस ने आरोप लगाया कि यूक्रेन ने उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हत्या के इरादे से दो जंगी ड्रोनों से क्रेमलिन पर हमला किया। हालांकि उन्हें निष्प्रभावी कर दिया गया और उसमें कोई हताहत नहीं हुआ। उधर यूक्रेन का कहना है कि इस हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है।

रूस इसे लेकर कहानी बना रहा है, ताकि उसे उकसाया और नौ मई को होने वाली उसकी विजय दिवस परेड में व्यवधान डाली जा सके। मगर रूस ने इस आधार पर जवाबी कार्रवाई तेज कर दी है। यूक्रेन की कई जगहों पर हमले किए गए हैं, जिसमें अनेक लोगों के मरने की खबर है। दोनों देशों को यह जंग लड़ते करीब सवा साल होने आए, मगर अब तक इसे रोकने का कोई रास्ता नहीं तलाशा जा सका है। अब तो पश्चिमी देश भी खुल कर यूक्रेन के समर्थन में उतर आए हैं। इससे रूस की नाराजगी और बढ़ गई है। मगर यह लड़ाई इस स्तर पर पहुंच जाएगी कि रूस के राष्ट्राध्यक्ष को ही जान से मारने की साजिश रच दी जाएगी, इसका अंदाजा शायद किसी को न रहा होगा।

हालांकि यह घटना अब भी बहुत सारे लोगों के लिए अबूझ पहेली की तरह बनी हुई है कि आखिर यूक्रेन ने यह साजिश रची क्यों। मगर एक तर्क यह है कि यूक्रेन को जिस तरह रूस ने तबाह कर दिया है और उसके करीब तीस फीसद हिस्से पर कब्जा जमा लिया है, उसमें उसकी खीज स्वाभाविक है। मगर जिस तरह क्रेमलिन की सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद है, उसमें सेंध लगाना इतना आसान कैसे हो गया, यह एक सवाल बना हुआ है।

इसलिए यह भी तर्क दिया जा रहा है कि इस हमले की रूपरेखा खुद रूस ने तैयार की हो, ताकि वह पश्चिमी देशों को बता सके कि यूक्रेन किस प्रकार की स्तरहीन कार्रवाई कर रहा है। इस घटना के पीछे उसका मकसद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह दिखाना हो सकता है कि गलती उसकी नहीं, बल्कि यूक्रेन की ही है, जो अब आतंकवादी हरकतों पर उतर आया है।

इसकी हकीकत क्या है, उस पर से पर्दा जब उठेगा, तब उठेगा या क्या पता कि कभी उठ ही न पाए। मगर इस युद्ध को लेकर एक सवाल बार-बार रेखांकित होता रहा है कि आज के समय में जब राष्ट्रों की हैसियत उनकी आर्थिक संपन्नता से आंकी जाती है और युद्ध का आखिरकार कोई हल निकलता नहीं, तब दोनों देश इतने लंबे समय से क्यों अपना धन इस पर बहा रहे हैं। फिर, इस युद्ध को रोकने के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता क्या रह गई है।

यूक्रेन ने रूस से अलग होकर स्वतंत्र देश के रूप में अपनी पहचान कायम की थी। इस तरह उसे इस बात की लोकतांत्रिक आजादी है कि वह किन देशों के साथ निकटता रखे और किनके साथ दूरी। यह वह अपनी परिस्थितियों के मुताबिक तय कर सकता है। मगर जैसे ही उसने पश्चिमी देशों की सुरक्षा परिषद में सदस्यता लेनी चाही, रूस को अपनी सुरक्षा पर खतरा मंडराता दिखा और उसने यूक्रेन को इससे रोकने की कोशिश की। आखिरकार युद्ध शुरू हुआ और उसका खमियाजा किसी न किसी रूप में सारी दुनिया भुगत रही है। इस युद्ध के खिंचते जाने में कुछ देशों के राजनीतिक स्वार्थ हैं, पर यह किसी भी रूप में मानवता के लिए उचित नहीं है।