सब कुछ सुचारु रूप से चलते रहने के लिए एक व्यवस्था और नियम-कायदे बनाए हैं। लेकिन इन पर अमल में अमूमन लापरवाही ही दिखती है। कई बार सामान्य संवेदना तो दूर, कानून को भी ताक पर रख दिया जाता है। हाल की कुछ घटनाएं इस बात का उदाहरण हैं कि किस तरह कार्य की स्थितियों की अनदेखी, लापरवाही और संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है। लखनऊ के हजरतगंज इलाके में एक पुलिस इंस्पेक्टर ने जो किया, वह न केवल कानून की कसौटी पर गलत है, बल्कि संवेदनहीनता का भी चरम उदाहरण है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर इंस्पेक्टर ने बरसों से सड़क किनारे टाइपिंग करके गुजारा करने वाले बुजुर्ग का टाइपराइटर तोड़ दिया और वहीं चाय बेचने वालों के बर्तन फेंक दिए।
सोशल मीडिया पर घटना की तस्वीरें प्रसारित होने के बाद मामले ने जब तूल पकड़ लिया तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिलाधिकारी और एसएसपी को बुजुर्ग के घर जाकर दो टाइपराइटर देने का आदेश दिया। लेकिन क्या पुलिस का यह व्यवहार अपवाद था? अगर किसी अधिकारी को फुटपाथ पर दुकान लगाना गलत लगा भी, तो किसी अराजक तत्त्व की तरह बर्ताव करने का क्या औचित्य है? दूसरा वाकया मध्यप्रदेश के कटनी जिले के खडरा गांव का है।
वहां निर्माणाधीन सड़क के गड्ढे में गिरे बेहोश एक व्यक्ति के ऊपर गिट्टी डाल दी गई और ऊपर से रोड रोलर चला कर जिंदा दफन कर दिया गया। लापरवाही की इंतिहा है कि जिस जगह पर डंपर से गिट्टी गिराई गई, वहां एक नजर देख लेना जरूरी नहीं समझा गया। जहां वर्दी की अकड़ में एक पुलिस इंस्पेक्टर को एक बुजुर्ग और फुटपाथ पर किसी तरह गुजारा करने वाले लोगों की मजबूरी समझना जरूरी नहीं लगा, वहीं सड़क बनाने वाले ठेकेदार को काम की निगरानी करने और सावधानी बरतने से कोई मतलब नहीं था, भले किसी की जान चली जाए।
हालांकि इन घटनाओं के बरक्स कई बार मुश्किल में फंसे लोगों के प्रति प्रशासन की सक्रियता उम्मीद का एक कोना बचाती दिखती है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में एक सुरंग में काम के बीच में फंस गए तीन मजदूरों को निकालने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और स्थानीय प्रशासन ने जो तत्परता और संवेदनशीलता दिखाई, वह काबिले-तारीफ है। गौरतलब है कि टिहरा गांव से गुजरने वाले कीरतपुर-नेरचैक फोरलेन हाइवे के निर्माण के क्रम में सुरंग में एक हिस्सा धंस जाने के चलते पिछले दस दिनों से तीन मजदूर फंसे हुए थे।
यों आपात स्थिति में बचाव के पर्याप्त इंतजाम पहले ही होने चाहिए थे। लेकिन अचानक पैदा हुई हालत में बचाव अभियान में लगे अधिकारियों-कर्मचारियों ने सुरंग में फसे लोगों से संपर्क करने, उन्हें जिंदा रहने के लिए खाना पहुंचाने से लेकर उन्हें बाहर निकालने के इंतजाम में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि दो मजदूरों को बचा लिया गया। एक मजदूर का अब भी पता नहीं चल पाया है। तीन राज्यों के तीन त्रासद प्रसंग अलग-अलग हैं। पर तीनों का सामान्य सबक यह है कि लोगों के आचार-व्यवहार में संवेदनशीलता सबसे बड़ा तकाजा है।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta