प्रकृति के चक्र के मुताबिक गर्मी, ठंड या बरसात का आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और यह समूची धरती के जीवन का स्रोत है। मगर जब यही मौसम धरती पर जानमाल के लिए खतरा साबित होने लगे तो यह गंभीर चिंता का मसला है। यों पिछले कुछ दशकों से लगातार जलवायु में बढ़ते तापमान और मौसम में असंतुलन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों में विस्तृत चर्चा की जाती रही है, इसका कोई हल निकालने के लिए जरूरी उपाय करने की बातें होती हैं।

मगर हर अगले वर्ष मौसम का मिजाज बिगड़ता जा रहा है। जो मौसम जीवन देते रहे हैं, वे अब व्यापक तबाही और लोगों की मौत की वजह क्यों बन रहे हैं। गौरतलब है कि विज्ञान एवं पर्यापरण केंद्र की ओर से जारी ‘स्टेट आफ एनवायरनमेंट 2024’ रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वर्ष बेहद खराब मौसम की वजह से 3,287 लोगों की जान चली गई। इसके अलावा, एक लाख चौबीस हजार पशुओं की मौत हो गई और बाईस लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे की फसल को नुकसान हुआ।

मौसम के बिगड़े मिजाज का सबसे ज्यादा शिकार हिमाचल प्रदेश रहा, जहां एक वर्ष में करीब डेढ़ सौ दिन संकट कायम रहा। इसके बाद मध्यप्रदेश में एक सौ इकतालीस और केरल व उत्तर प्रदेश में एक सौ उन्नीस दिन लोगों को मौसम की मार का सामना करना पड़ा। यों दुनिया भर में पर्यावरण में हो रहे उथल-पुथल की वजहें तलाशने की कोशिशें चल रही हैं, मगर इसके समांतर हाल के वर्षों में कभी बेतहाशा गर्मी, तो कभी कड़ाके की ठंड की मार या फिर बेलगाम बरसात, व्यापक भूस्खलन आदि से जानमाल के नुकसान का दायरा फैलने लगा है!

जलवायु में इस कदर होने वाले बदलाव की वजहें क्या हैं और उन पर किस हद तक लगाम लगाई जा सकती है? यह भी विचित्र है कि तकनीक और संसाधनों के विस्तार के दौर में भी लोग अपनी जान बचाने में कामयाब नहीं हो पा रहे। आज बरसात के दिनों में बिजली गिरने से जितनी मौतें होने लगी हैं, वे हैरान करती हैं। इस वर्ष भी अब समय से पहले ही तापमान में तेज बढ़ोतरी और उसके खतरों को लेकर जो आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं, उसके मद्देनजर अब भविष्य में मौसम के मुताबिक बचाव के पूर्व इंतजाम के लिए ठोस पहल की जरूरत है।