इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि किसी व्यक्ति को उसके पहनावे के आधार पर ऐसी पहचान से जोड़ कर देखा जाए, जिससे उसका दूर-दूर का भी वास्ता न हो और ऐसा करने से उसके लिए कई तरह के जोखिम पैदा हो जाएं। खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में संदेशखाली मामले को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान भाजपा के एक नेता ने वहां मौजूद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सिर्फ इसलिए खालिस्तानी कह दिया कि उसके सिर पर सिख धर्म की पहचान वाली पगड़ी बंधी थी।

स्वाभाविक ही भारतीय पुलिस सेवा के उस अधिकारी ने इस पर आपत्ति जाहिर की कि उस पर कोई धार्मिक टिप्पणी कैसे की जा सकती है और उसकी वेशभूषा की वजह से खालिस्तानी की पहचान से कैसे जोड़ा जा सकता है। यह संभव है कि प्रदर्शनकारियों को पुलिस के रवैये या काम करने के तरीके से शिकायत हो, लेकिन इसके खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से विरोध जताने और उचित मंच पर शिकायत दर्ज कराने के बजाय वैसी पहचान को लक्ष्य करके टिप्पणी करना बिल्कुल गलत है, जिसे एक अलगाववादी समूह के तौर पर देखा जाता हो और उसके बारे में लोगों की राय सकारात्मक नहीं हो।

पिछले कुछ समय से किसी को पहनावे के आधार पर नाहक ही चिह्नित करने की धारणा पल-बढ़ रही है। किसान आंदोलन में शामिल पंजाब के लोगों के बारे में भी पूर्वाग्रहों से भरी टिप्पणियां करने की खबरें आई थीं। ऐसे मामले अगर अक्सर सामने आने लगें तो इससे न सिर्फ कुछ खास पहचान वाले आम लोगों के लिए मुश्किल पैदा होगी, बल्कि ऐसे पूर्वाग्रहों के शिकार लोगों के भीतर भी अनेक तरह की कुंठाएं और विकृतियां विकसित होने लगेंगी।

अव्वल तो एक खास धार्मिक पहचान से जुड़े पहनावे की वजह से किसी पर इस तरह अंगुली नहीं उठाई जा सकती, जिसका कोई आधार नहीं हो, मगर इसका उस पर कई स्तर पर प्रभाव पड़ता हो! फिर आवेश में आकर किसी को सिर्फ कपड़े के आधार पर किसी संवेदनशील पहचान से जोड़ देने के सामाजिक असर और कानून से जुड़ी प्रक्रिया के नतीजों की कल्पना की जा सकती है! ऐसा किसी के लिए भी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके नतीजे संबंधित व्यक्ति के जीवन पर बहुत गलत असर डाल दे सकते हैं।

सभी धर्म या समुदाय में सकारात्मक कामों को अपना सामान्य जीवन और दायित्व समझने के बरक्स नकारात्मक गतिविधियों में लिप्त कुछ लोग भी होते हैं। अगर किसी समुदाय के चंद लोग प्रतिगामी और गैरकानूनी कामों को अंजाम दे रहे हों, तो उनकी धार्मिक पहचान के अन्य लोगों को उससे जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।

सिखों के बीच कुछ लोग अगर अलगाववाद में विश्वास रखते होंगे तो उनसे अलग राय रखने, पीड़ित होने और कई स्तर पर उसका सामना करने वाले लोगों में भी बहुत सारे सिख ही हैं। पश्चिम बंगाल में जिस अधिकारी को लक्षित करके टिप्पणी की गई, वह आधिकारिक रूप से देश के कानूनों को लागू करने की ड्यूटी पर तैनात था।

अगर वह अपने दायित्वों के निर्वहन में जानबूझ कर कोई कमी करे, तब उचित मंच पर और कानून के दायरे में निर्धारित प्रक्रिया के तहत उसका विरोध किया जा सकता है। मगर हैरानी की बात है कि ऐसी टिप्पणियों की गंभीरता और संवेदनशीलता को समझे बिना कई लोग हल्के तरीके से ऐसा बोल जाते हैं, जिससे किसी के लिए जटिल हालात पैदा हो सकते हैं।