कांग्रेस पार्टी ने अगले पंद्रह दिन तक चुनावी सभाएं और रैलियां न करने का उचित ही फैसला किया है। पार्टी में पिछले कुछ दिनों से इस बारे में विचार चल भी रहा था कि देश में कोरोना से गंभीर होते हालात के मद्देनजर क्यों न कुछ समय के लिए ऐसे चुनावी कार्यक्रम टाल दिए जाएं। उसने यह कदम भले देर से उठाया हो, पर और दलों के लिए संदेश तो है ही। गौरतलब है कि फरवरी और मार्च में पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

इसके लिए चुनाव आयोग कार्यक्रम घोषित करने वाला है। पिछले कुछ दिनों से देश में कोरोना की तीसरी लहर के हालात भी बन गए हैं। ओमीक्रान के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में चुनावी सभाओं और रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ ने चिंता बढ़ा दी है। सारे राजनीतिक दल बिना किसी फिक्र के प्रचार में जुटे हैं। देखने में आ रहा है कि लोग बिना मास्क के सभाओं और रैलियों में शिरकत कर रहे हैं। सुरक्षित दूरी के नियम की बात तो दूर है। ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जा रहा है।

हैरानी की बात है कि किसी भी राजनीतिक दल ने अभी तक इस बारे में विचार करना जरूरी नहीं समझा कि जब देश में तीसरी लहर के हालात बने हुए हैं तो जनसभाएं और रैलियां करके लोगों के जीवन को खतरे में डालना क्या उचित होगा। शायद ही कोई राजनीतिक दल ऐसा होगा जिसने अपनी ओर से पहल करते हुए चुनावी सभाएं न करने का फैसला कर लोगों को महामारी से बचाने के बारे में सोचा हो। सारी पार्टियां चुनाव जीतने की चिंता में बेखौफ होकर ताबड़तोड़ प्रचार में जुटी हैं। हालांकि कांग्रेस ने भी जो फैसला अब किया है, वह अगर पहले ही कर लिया जाता तो कहीं बेहतर होता। हो सकता है कि तब और दल प्रेरणा लेते और चुनाव प्रचार के दूसरे विकल्पों पर विचार करते। पर ऐसा नहीं हुआ।

पिछले एक-डेढ़ महीने से पार्टियां चुनाव प्रचार और जनसंपर्क में जोरशोर से जुटी हैं। चुनावी सभाओं में भीड़ उमड़ने को लेकर जब-जब मामला उठा, तब भी किसी पार्टी ने यह नहीं कहा कि रैलियां अब बंद होनी चाहिए। राजनीतिक दल चाहते हैं कि कोरोनोचित व्यवहार को लेकर नियम सख्त किए जाएं। पर सवाल इस बात का है कि अगर रैलियों या सभाओं का आयोजन किया जाएगा तो लोगों को आने से कैसे रोका जा सकता है? भीड़ जुटाने का काम तो खुद राजनीतिक दल कर रहे हैं!

चुनावी सभाओं में बढ़ती भीड़ को देखते हुए ही कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया था। हाईकोर्ट की चिंता भी यही थी कि जब महामारी सिर पर है और संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, तो ऐसे में कुछ समय के लिए चुनाव टाल देने में हर्ज क्या है। लेकिन चुनाव आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ बैठक के बाद चुनाव नहीं टालने का फैसला किया, बल्कि आयोग ने चुनावी राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने पर जोर दिया।

दरअसल, चुनाव संपन्न कराना कोई छोटा-मोटा काम नहीं है। व्यापक सरकारी मशीनरी के साथ करोड़ों मतदाताओं की इसमें भागीदारी होती है। ऐसे में लोगों का जमावड़ा रोक पाना संभव नहीं है। पुलिस या किसी नियम-कानून से भी चुनावी आयोजनों की भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए राजनीतिक दलों को ही पहल करनी होगी, जैसे कि कांग्रेस ने की है।