हालांकि यह टकराव लंबा नहीं खिंचा और जल्दी ही चीनी सैनिक वापस लौट गए। मगर बार-बार चीन की तरफ से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह तनाव की स्थिति पैदा करने को लेकर स्वाभाविक ही भारत सरकार पर कड़ा कदम उठाने का दबाव बनना शुरू हो गया है।
संसद में इस घटना पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सफाई दी कि भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को खदेड़ दिया और वहां कोई अप्रिय घटना नहीं होने पाई। मगर विपक्ष इस घटना को केंद्र सरकार की रणनीतिक कमजोरी के रूप में रेखांकित कर रहा है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब लद्दाख के गलवान क्षेत्र में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के साथ हिंसक झड़प की और हमारे कई जवान शहीद हो गए। कई चीनी सैनिक भी मारे गए।
उसके बाद करीब दो साल तक उस इलाके में तनाव बना रहा। चीन अपनी सामरिक शक्ति का प्रदर्शन करता रहा। आरोप लगते रहे कि चीन भारतीय सीमा में काफी अंदर तक घुस आया है और उसने अपने सैन्य ठिकाने बना लिए हैं। विपक्ष अब तक दोहराता है कि लद्दाख क्षेत्र की काफी जमीन चीन ने हथिया ली है और भारत सरकार उसे रोक नहीं पाई।
अब अरुणाचल में चीनी सैनिकों की पैठ ने स्वाभाविक चिंता पैदा कर दी है। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब चीनी सैनिकों ने तवांग इलाके में घुसपैठ की कोशिश की। करीब सोलह सालों से वहां तनाव बना हुआ है। दरअसल, तवांग का इलाका चीन और भारत दोनों के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। चीन की कोशिश रहती है कि तवांग पर कब्जा कर ले।
इसलिए कि वह इलाका तिब्बत, भूटान और भारत को जोड़ता है। तवांग भारत का हिस्सा है, मगर चीन उस पर इसलिए भी कब्जा जमाना चाहता है कि वहां से वह तिब्बत पर शिकंजा कसने में कामयाब हो सकता है। फिर भारत पर सामरिक दबाव बनाए रख सकता है। इसलिए भारत हमेशा उस इलाके में सुरक्षा इंतजाम पर विशेष ध्यान देता है। ब्रिटिश हुकूमत के समय जब अरुणाचल में वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण हो रहा था, तो चीन ने उस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया था। वह दावा करता रहता है कि तवांग के इलाके पर उसका अधिकार है। मैकमोहन रेखा कही जाने वाली नियंत्रण रेखा को पार कर उसके सैनिक भारतीय सीमा में घुसने का प्रयास करते रहे हैं।
भारतीय सीमा पर अस्थिरता पैदा करने के पीछे चीन की एक और खीज काम करती है कि वह भारत को उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में सहन नहीं कर पाता। फिर अमेरिका से उसकी नजदीकी सदा चीन को खटकती रही है। लद्दाख का तनाव खत्म करते वक्त उम्मीद जताई गई थी कि अब चीन बेवजह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सामरिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेगा, मगर वह अपनी विस्तारवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहा। ऐसे में सारी दुनिया की नजर तवांग इलाके में उसकी घुसपैठ पर लगी हुई है।
भारत इसे शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने का प्रयास करता रहा है। मगर चीन शायद इसे भारत की कमजोरी समझता रहा है। इसलिए भी तमाम राजनीतिक दल जोर देते हैं कि भारत को एक बार कड़े कदम उठा कर चीन को रोकने का प्रयास करना चाहिए। वास्तविक नियंत्रण रेखा की गुत्थियों को सुलझाने की नीयत चीन की कभी नहीं रही, इसलिए कूटनीतिक और सामरिक शक्ति से ही उसे अपनी सीमा में रहने का सबक दिया जा सकता है।