देश में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पहली बार कानून बनने जा रहा है, लेकिन इससे जुड़े विधेयक पर सवाल उठ रहे हैं। जिस संशोधित विधेयक को राज्यसभा ने पारित किया है, उसमें किए गए प्रावधान संवैधानिक पदों पर नियुक्ति करने के लिए सर्वोत्तम मानकों से कम बताए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने इन प्रावधानों पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री और एक विपक्ष के नेता की चयन समिति द्वारा की जाती है तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कल्पना बनकर रह जाएंगे।

विधेयक का नाम, ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) विधेयक, 2023’ है

उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो अदालत को इसे निरस्त कर देना चाहिए। इस विधेयक का नाम है, ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) विधेयक, 2023’। अगस्त में यह विधेयक पहली बार पेश किया गया था। तब इसके कुछ प्रावधानों की जबरदस्त आलोचना हुई थी। सरकार ने बदलाव तो किए, लेकिन इसमें महत्त्वपूर्ण दोषों को ठीक नहीं किया गया। मुख्य दोष यह माना जा रहा है कि नियुक्तियां अब विशुद्ध राजनीतिक होंगी।

सरकार ने दावा किया कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया गया है

सरकार ने दावा किया कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया गया है। यह केवल आधा सच है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए संविधान या 1991 के कानून में कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं थी और यह एक ऐसी खामी थी, जिसको लेकर पूर्ववर्ती सरकारों पर सवाल उठते रहे। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रक्रिया तैयार करने का सुझाव दिया। कहा गया कि इसके तहत प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश (CJI) चयन करेंगे, जिससे नियुक्तियों में विश्वास और मतदाता की नजर में आयोग की विश्वसनीयता मजबूत हो। लेकिन राज्यसभा में पारित विधेयक में सरकार ने प्रधान न्यायाधीश को प्रक्रिया से बाहर रखा है।

समिति में भले ही विपक्ष की उपस्थिति है, लेकिन यह भागीदारी औपचारिक मात्र होगी। ऐसे में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता महत्त्वपूर्ण है, जो एक मजबूत लोकतंत्र का केंद्र है। जाहिर है, आयोग में होने वाली नियुक्तियों को लेकर विश्वसनीयता का संकट उचित नहीं है।

चुनाव आयोग लोकतांत्रिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कार्यात्मक स्वतंत्रता और संवैधानिक संरक्षण की आवश्यकता होती है। चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि देश में जहां भी चुनाव हों वहां स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराया जाए। अकेले चुनाव आयोग ही नहीं, बल्कि सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती हैं।

चुनाव कराने वाली पूरी व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल न उठे, इसका ध्यान सभी को रखना होगा। ध्यान रखना होगा कि लोकतांत्रिक ढांचे के लिए अहम संस्थाओं का क्षय न हो। ऐसी संस्थाएं ही लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखती हैं। निर्वाचन प्रणाली पर जनता का यकीन कायम रहना, लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहद जरूरी है।