पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच सीमा पर शांति बनाए रखने के मकसद से वार्ताओं का क्रम जारी है और इससे उम्मीदें भी जगी हैं। मगर विचित्र है कि दोनों देशों के बीच हर औपचारिक बैठक के बाद इसके लिए व्यावहारिक स्तर पर कदम उठाए जाने की घोषणा होती है और अगली बार की बैठक के बाद आए नतीजों से ऐसा लगता है कि फिर से उन्हीं पुराने मसलों को सुलझाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कोई दोराय नहीं कि भारत और चीन के बीच सीमा पर उठे मसलों का समाधान एक जटिल समस्या है और उसके हल के लिए किसी तरह की जल्दबाजी शायद ठोस नतीजे न दे।
सवाल है कि अगर विवाद को सुलझाने को लेकर किसी मुद्दे पर सहमति बनती है, तो उस पर अमल को लेकर समान स्तर की निरंतरता क्यों नहीं दिखती। यह बेवजह नहीं है कि हर वार्ता अपने शुरूआती बिंदु पर ही ठहरी हुई दिखती है। पहले की वार्ताओं में विवाद को सुलझाने के लिए जो कदम उठाने पर सहमति बनी होती है, उसका कोई ठोस नतीजा नहीं दिखता। हालांकि यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है कि समस्या के समाधान को लेकर दोनों देशों के बीच सकारात्मक संवाद जारी है।
भारत चीन के बीच हुई सार्थक चर्चा
गौरतलब है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बुधवार को बेजिंग में बैठक हुई। खबरों के मुताबिक, दोनों पक्षों ने वार्ता के दौरान ‘सार्थक चर्चा’ की और छह सूत्री आम सहमति पर पहुंचे, जिसमें सीमा पर शांति बनाए रखने, तल्खी खत्म करने और संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए आगे भी कदम उठाना शामिल है।
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अब तक की बातचीत से समाधान के जो रास्ते तैयार हो सके हैं, निश्चित रूप से उस पर आगे बढ़ने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब सहमति के बिंदुओं को जमीनी स्तर पर उतारने की कोशिश हो। इस क्रम में दोनों पक्षों की ओर से इस जरूरत पर जोर दिया जाना भविष्य के लिए उम्मीद जगाता है कि सीमा मुद्दे को द्विपक्षीय संबंधों की समग्र स्थिति के परिप्रेक्ष्य में उचित तरीके से संभाला जाना चाहिए, ताकि आपसी संबंधों के विकास पर इसका असर न पड़े। यह एक अहम पहलू है, जिस पर एक परिपक्व समझ और सहमति बनाया जाना जरूरी है, क्योंकि सीमा पर विवाद के संदर्भों के समांतर भारत और चीन के बीच अनेक स्तर पर परस्पर हितों पर आधारित संबंध हैं और उन्हें संभालना भी आवश्यक है।
सही दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद
विडंबना यह है कि कई बार दोनों देशों के बीच हुई वार्ता के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक होने की दिशा में बढ़ता दिखाई देता है, मगर बीच में चीन की ओर से नाहक अतिक्रमण या अवांछित गतिविधियों की खबर आ जाती है। इससे एक गैरजरूरी बाधा खड़ी होती है और संवाद की स्थितियों पर भी असर पड़ता है। मगर ताजा बैठक में दोनों पक्षों ने जिस तरह विशेष प्रतिनिधियों के तंत्र को और मजबूत करने, कूटनीतिक और सैन्य वार्ता समन्वय और सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया है, वह एक सकारात्मक पहल है।
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पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच सीमा पर शांति कायम करने और समस्याओं का दीर्घकालिक हल निकालने को लेकर हुई वार्ताओं के बाद स्थिति में सुधार को लेकर एक स्पष्ट तस्वीर बननी शुरू हुई है। खासतौर पर 21 अक्तूबर को हुए समझौते के तहत पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर सहमति बनी थी। अब जरूरत उससे आगे का रास्ते तैयार करना है, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में खटास को पूरी तरह दूर किया जा सके।