आधुनिक तकनीकी और इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन तक जैसे-जैसे आम लोगों की पहुंच बन रही है, वैसे-वैसे कई स्तर पर इसके नुकसान भी सामने आ रहे हैं। खासकर स्मार्टफोन में गेम खेलने की लत का सबसे ज्यादा असर युवाओं और बच्चों पर पड़ा है, जिनका व्यक्तित्व इससे बुरी तरह प्रभावित होने लगा है। यह चिंता आम है कि मोबाइल में गेम की लत के चलते बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बाधित हो रही है। मगर ज्यादा त्रासद घटनाएं वे हैं, जिनमें हमेशा स्मार्टफोन देखने या गेम खेलने की आदत की वजह से बच्चे अपने परिजनों पर हमला कर देते या फिर अपनी ही जान ले लेते हैं।
गौरतलब है कि ओड़ीशा में जगतसिंहपुर जिले के जयबाड़ा सेठी साही गांव में एक छात्र ने आनलाइन गेम खेलने से मना करने पर पत्थर से हमला कर अपने माता-पिता और बहन की हत्या कर दी। खुद को रोके जाने के बाद उसके दिमाग पर हिंसा इस कदर हावी हुई कि उसने तीनों का सिर पत्थर से कुचल दिया।
बच्चों और किशोरों की इंटरनेट तक पहुंच को सीमित किया गया
यह आधुनिक तकनीक का ऐसा चेहरा है, जो बेहद घातक नतीजों के चलते चिंता का कारण बन रहा है। सवाल है कि इंटरनेट की सुविधा से लैस स्मार्टफोन का पर्दा आखिर इतना गहरा मनोवैज्ञानिक असर कैसे डाल रहा है कि कोई व्यक्ति इसके सम्मोहन में आसपास की दुनिया से लेकर खुद की अहमियत भी भूल जाता है। इसमें गुम रहने से या इसकी लत लग जाने के बाद मस्तिष्क की बनावट में कैसे बदलाव होते हैं कि एक किशोर या युवा की नजर में जीवन और उसकी वास्तविकताओं की कोई कीमत नहीं रह जाती?
यह स्थिति तकनीक को लेकर हद से ज्यादा मुग्ध होने को कठघरे में खड़ा करती है और इसके सीमित इस्तेमाल की जरूरत रेखांकित करती है। मोबाइल में गुम रहने की लत के चलते बच्चों तक के बीच आत्महत्या या हत्या जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। अगर समय रहते इसे रोकने की ठोस और नीतिगत पहल नहीं की गई, तो आने वाले वक्त में इसके बेहद दुखद नतीजे देखने को मिल सकते हैं। कई देशों में बच्चों और किशोरों की इंटरनेट तक पहुंच को सीमित किया गया है, लेकिन इस मसले पर एक व्यापक नीति की जरूरत है।