चेतन शर्मा ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के मुख्य चयनकर्ता के पद से इस्तीफा दे दिया है। फिलहाल उनके सामने इससे बेहतर कोई रास्ता भी नहीं था। क्रिकेट की भाषा में कहें तो उन्हें ‘हिट विकेट’ होकर जाना पड़ा, जिसमें बल्लेबाज खुद ही स्टंप पर बल्ला मारकर मैदान से लौट जाता है। यह दूसरी बार है जब मुख्य चयनकर्ता के रूप में चेतन अपनी पारी पूरी नहीं कर पाए।

पहली बार अक्तूबर, 2020 में वे मुख्य चयनकर्ता बने, लेकिन नवंबर 2022 में टी20 विश्वकप में मिली हार के बाद बीसीसीआइ ने शर्मा सहित पूरी चयन समिति को बर्खास्त कर दिया था। हालांकि उन्होंने दोबारा आवेदन किया और जनवरी, 2022 में फिर चयन समिति के अध्यक्ष बने, लेकिन इस बार महज बयालीस दिन में ही उन्हें जाना पड़ा है।

दरअसल, एक ‘स्टिंग आपरेशन’ में जिस तरह से उन्हें खिलाड़ियों के बारे में, सौरभ गांगुली और पूर्व कप्तान विराट कोहली के बीच अहं के टकराव और खिलाड़ियों द्वारा सुई लेने जैसी तमाम बातें करते हुए दिखाया गया, उसके बाद उनका पद पर बने रहना वैसे भी उचित नहीं था। एक झटके में उन्होंने खिलाड़ियों, टीम प्रबंधन और बोर्ड का विश्वास खो दिया।

यों चेतन शर्मा के पास ग्यारह साल लंबे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के सफर का अनुभव रहा है। इसलिए उम्मीद की जाती है कि वे टीम, उसके प्रबंधन से जुड़ी बारीकियों और संवेदनशीलता की समझ रखने के मामले में बेहतर साबित होंगे। उनके अनुभवों और काबिलियत के मद्देनजर ही उन्हें भारतीय टीम के लिए इतने महत्त्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपी गई होगी।

लेकिन यह समझना मुश्किल है कि टीम को बेहतर बनाने और उसके प्रबंधन में अपनी भूमिका का निर्वहन करने के बजाय उसकी कमजोरियों को लेकर वे इस हद तक लापरवाही से भरा रुख कैसे अपना सकते हैं। जो बातें उनके हवाले से सामने आई हैं, बिना किसी मजबूत आधार के किसी खिलाड़ी के बारे में कहीं भी ऐसा नहीं बोला जाना चाहिए।

अगर उनके भीतर कोई सवाल था भी तो उसके लिए बाकायदा एक तंत्र बना हुआ है और उसके दायरे में वे इस मसले पर अपनी बात रख सकते थे, अपनी शंकाओं का हल कर सकते थे। लेकिन उनकी महज एक लापरवाही ने उनकी विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर दिया। अब जिन हालात में उनकी विदाई हुई, है, उसे चेतन शायद नहीं भूल पाएंगे।

यह प्रकरण इस बात की ओर भी इशारा करता है कि शीर्ष पदों पर बैठे लोगों को बातचीत में कितना सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि मामूली असावधानी खिलाड़ियों, टीम प्रबंधन और बोर्ड के पदाधिकारियों को असहज स्थिति में डाल सकती है। माना कि वे ‘स्टिंग आपरेशन’ के शिकार हुए, लेकिन यह कहना होगा कि उन्हें खिलाड़ियों और बोर्ड से जुड़ी चीजों की चर्चा से बचना चाहिए था।

शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के लिए गोपनीयता एक आवश्यक शर्त होती है और अंदरखाने की चीजों की इस तरह चर्चा नहीं की जा सकती। अव्वल तो आरोपमूलक बातचीत इसलिए भी उचित नहीं होती है कि वह महज किसी चर्चा का हिस्सा हो सकती है, झूठी भी हो सकती है और उसका साबित होना अभी बाकी होता है।

फिर भी अगर बड़ी जिम्मेदारी वाले पद पर होते हुए किसी व्यक्ति के भीतर कोई सवाल या शंका है, तो उसे हल्की-फुल्की बातचीत का हिस्सा बनाना कई खिलाड़ियों के भविष्य पर भी बुरा असर डाल सकता है। चेतन शर्मा से जिस तरह की चूक हुई है, उसका नतीजा सामने है। अब उम्मीद है कि यह मामला पूरी टीम, प्रबंधन और इससे जुड़े अन्य लोगों के लिए भी अपनी जिम्मेदारी समझने का उदाहरण साबित होगा।