असम में पहली बार सरकार बनाने में कामयाब हुई भारतीय जनता पार्टी ने अब पूरे पूर्वोत्तर को अपने प्रभाव में लेने की रणनीति का इजहार कर दिया है। एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तर्ज पर उसने एनईडीए यानी नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया है। यह पूर्वोत्तर के ग्यारह गैर-कांग्रेसी दलों का गठजोड़ है। बुधवार को गुवाहाटी में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मौजूदगी में एनईडीए के गठन का एलान करते हुए कहा गया कि इसका उदद्देश पूर्वोत्तर को कांग्रेस-मुक्त करना है। यह नारा पूर्वोत्तर के उन दलों को रास आ सकता है जिनका अपने-अपने राज्य में कांग्रेस से मुकाबला होता रहा है। पर सवाल है कि पूर्वोत्तर में कांग्रेस का वजूद खत्म करना ही एनईडीए का लक्ष्य है, या इसके सामने कुछ और भी मुद्दे हैं? कांग्रेस-मुक्त पूर्वोत्तर का नारा सिर्फ एक चुनावी रणनीति हो सकता है, यह पूर्वोत्तर की जन आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित नहीं करता।
कैसी विडंबना है कि जब एनईडीए के मंच से पूर्वोत्तर को कांग्रेस-मुक्त बनाने का आह्वान किया जा रहा था, उससे कुछ ही देर पहले सर्वोच्च अदालत ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के फैसले को गलत और असंवैधानिक ठहराते हुए वहां कांग्रेस की बर्खास्त सरकार को बहाल करने का आदेश सुनाया था। अदालत के इस फैसले ने एनईडीए की सारी धूमधाम, फौरी तौर पर ही सही, फीकी कर दी। अलबत्ता अब भाजपा यह सोच कर अपना घाव सहला रही है कि अरुणाचल में कांग्रेस सरकार की बहाली भले हो गई हो, पर नबाम तुकी विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे और बाजी फिर पलट जाएगी। लेकिन संघीय भावना और संघीय ढांचे का लिहाज न करने के कारण भाजपा की छवि को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई वह कैसे करेगी?
अदालती फैसले से लगे झटके को छोड़ दें, तो कई पूर्व मुख्यमंत्रियों और कई दलों के प्रदेश अध्यक्षों की शिरकत के साथ एनईडीए की शुरुआत प्रभावी ढंग से हुई है। पर भाजपा की रणनीति की राह में कई अड़चनें और चुनौतियां हैं। हिंदुत्व के उसके एजेंडे के साथ पूर्वोत्तर के बहुतेरे लोग सहजता महसूस नहीं कर सकते। फिर, एनईडीए ने अभी तक कोई ऐसा साझा न्यूनतम कार्यक्रम पेश नहीं किया है जो एक दिशा और आपसी सहमति का अहसास कराए। बल्कि असम में भाजपा अपने सहयोगी दल असम गण परिषद के बार-बार आग्रह के बावजूद साझा न्यूनतम कार्यक्रम घोषित करने से बच रही है। असम के बारह तेल क्षेत्रों की नीलामी के राज्य सरकार के फैसले ने बहुत सारे लोगों को आशंकित कर दिया है और कई संगठन इस फैसले के खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
यही नहीं, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की सुगबुगाहट पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी तेज हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने पूर्वोत्तर के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर कहा था कि जिन वनक्षेत्रों में खनिज संपदाएं हैं उन्हें वनक्षेत्र से बाहर का इलाका घोषित किया जाए। पूर्वोत्तर में प्राकृतिक संपदा का दोहन एक संवेदनशील मसला है और इसके लिए निजीकरण और एफडीआइ के रास्ते खोलना एक व्यापक और तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। वैसी सूरत में एनईडीए के भीतर भी मतभेद उभर सकते हैं। फिर, पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों के बीच सीमा संबंधी झगड़े लंबे समय से चले आ रहे हैं, जो कई बार बहुत तीखी शक्ल अख्तियार कर लेते हैं। एनईडीए ने अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं सुझाया है कि वह ऐसे विवादों को कैसे हल करेगा। सिर्फ कांग्रेस को किनारे करने का मकसद एनईडीए के संकीर्ण सोच को ही प्रतिबिंबित करता है।