राष्ट्रपति शासन हटने और सर्वोच्च न्यायालय के यथास्थिति बनाए रखने संबंधी अपना आदेश वापस लेने के बाद अरुणाचल प्रदेश में नई सरकार गठित हो गई है। मगर नबाम तुकी की सरकार गिरने, राष्ट्रपति शासन लगने और फिर आनन फानन बागी नेता कलिखो पुल के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के बीच जो नाटकीय घटनाक्रम रहा, उससे उठे सवाल अभी खत्म नहीं हुए हैं। बेशक नई सरकार को भाजपा विधायकों का समर्थन प्राप्त है, पर अरुणाचल में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर अभी समाप्त नहीं माना जा सकता। गौरतलब है कि कांग्रेस के कुछ विधायकों ने बगावत कर नबाम तुकी सरकार को गिराने का प्रयास किया, जिसे विपक्षी भाजपा और कुछ निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन मिला।

कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष से इसके लिए विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी, पर उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद राज्यपाल की शह पर विधानसभा परिसर के बाहर सत्र आयोजित कर असंतुष्ट विधायकों ने नबाम तुकी सरकार गिरा दी। फिर राज्यपाल ने संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की, जिसे केंद्र ने स्वीकार भी कर लिया। इसे लेकर राष्ट्रपति शासन लगाने के कानूनी अधिकार के दुरुपयोग का सवाल खड़ा हो गया। राज्यपाल की भूमिका शुरू से संदेह के घेरे में रही है। इन तमाम पहलुओं पर अभी न्यायिक समीक्षा होनी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने यथास्थिति संबंधी अपना फैसला जरूर वापस ले लिया है, पर उसने स्पष्ट कहा है कि पूरे प्रकरण की समीक्षा पर सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई है। यानी नई सरकार के सामने औचित्य के सवाल बने हुए हैं। दरअसल, कांग्रेस ने अपने चौदह बागी विधायकों को निलंबित कर दिया था। इस तरह अट्ठावन सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ चौवालीस सदस्य बच गए थे, जिन्हें मताधिकार हासिल था। मगर गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने विधायकों के निलंबन पर स्थगन आदेश जारी कर दिया था। अगर चौदह विधायकों का निलंबन वैध ठहरता है तो वैसे ही नई सरकार का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।

इसके अलावा राज्यपाल के फैसले भी सवालों के घेरे में हैं। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश के पीछे अगर वाजिब तर्क नहीं मिले तो केंद्र सरकार का फैसला गलत ठहरेगा। यानी पुरानी कांग्रेस सरकार का पक्ष मजबूत होगा। राज्यपाल ने शुरू से कांग्रेस के बागी विधायकों का साथ दिया। नई सरकार गठित होने की बात उठी तो उन्होंने सिर्फ कलिखो पुल के दावे को तरजीह दी। पुल का दावा है कि उनके समर्थन में बत्तीस विधायक हैं। हालांकि विश्वास-मत के समय वे कितने सदस्यों को अपने साथ खड़े कर पाते हैं, देखने की बात है। मगर नई सरकार बन जाने से वहां के राज्यपाल के रवैए को लेकर उठे सवाल खत्म नहीं हो जाते।