दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर चिंता गहराती गई है। पिछले दस दिनों में वायु प्रदूषण की मात्रा तय मानक से साठ प्रतिशत तक अधिक हो गई है। इसे लेकर एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए समस्या पर तुरंत काबू पाने के उपाय करने को कहा है। यहां प्रदूषण का आलम यह है कि सरकार को चीन की तर्ज पर धुंध की स्थिति में स्कूल और बाजार बंद करने के बारे में सोचना पड़ा। सर्दी का मौसम शुरू हो चुका है, वातावरण में नमी है, इसलिए दिन-भर धुंध छाई रहती है। ऐसे में प्रदूषण बढ़ने से लोगों को सांस की तकलीफ बढ़ गई है। ज्यादातर लोगों को खांसी, जुकाम जैसी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। पहले ही वायु प्रदूषण के चलते लाखों बच्चों को दमे की शिकायत है, उनमें से बहुत सारे ऐसे हैं जिन्हें आजीवन इस तकलीफ के साथ जीना है।
इस तरह दिनोंदिन बिगड़ती आबोहवा की वजह से उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता स्वाभाविक है। हवा में रासायनिक कणों के घुलने की वजहें छिपी नहीं हैं। सबसे अधिक प्रदूषण सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादाद के कारण है। इसके अलावा रिहाइशी कॉलोनियों, बाजारों, दुकानों, दफ्तरों आदि में लगे जेनरेटर हवा को जहरीली बनाने में मदद करते हैं। फिर सर्दी से निजात पाने के लिए जगह-जगह अलाव जलाने से धुएं का गुबार भरता जाता है। ऐसे में नम मौसम और घना कोहरा होने पर वाहनों, जेनरेटरों, अलाव वगैरह से निकलने वाले रासायनिक कण उसमें घुल कर पृथ्वी की सतह के आसपास संघनित होने लगते हैं। इस तरह सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार है। यहां की बिगड़ती आबोहवा को लेकर समय-समय पर अध्ययन आते रहते हैं, जो बताते हैं कि प्रदूषण पर लगाम लगाने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। डीजल से चलने वाले निजी वाहनों पर रोक लगाने का प्रस्ताव आया था, पर वह सिरे नहीं चढ़ सका। इसी तरह बाहरी राज्यों से आने वाले भारी वाहनों के शहर में प्रवेश को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। मगर यह भी व्यावहारिक कदम साबित नहीं हो रहा। दरअसल, जब तक सड़कों पर वाहनों की संख्या कम नहीं की जाएगी, वायु प्रदूषण पर नकेल कसना मुश्किल बना रहेगा। मगर मेट्रो रेल और सार्वजनिक बसों की संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद हर महीने सड़कों पर हजारों नए वाहन उतर आते हैं। कई मौकों पर अपील की गई कि लोग कार पूल योजना पर अमल करें, पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ। दिल्ली में अकेले सरकार के भरोसे बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाना कठिन है। इसके लिए लोगों को भी जागरूकता का परिचय देना होगा। हाल में आयोजित ‘कार मुक्त दिवस’ का नतीजा यह रहा कि थोड़े समय में ही उस इलाके में करीब छब्बीस फीसद तक वायु प्रदूषण कम हो गया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी दिल्ली में अगर लोग महज प्रतिष्ठा के लिए कारों का इस्तेमाल करना बंद कर दें तो काफी हद तक वायु प्रदूषण से पार पाया जा सकता है।