किसी भी दुखद घटना या हादसे का जरूरी सबक यह होना चाहिए कि ऐसे इंतजाम किए जाएं, ताकि भविष्य में वैसा फिर न हो। लेकिन ऐसा लगता है कि बिहार में सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वहां पाबंदी के बावजूद बार-बार जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हो रही है और प्रशासन की नाकामी बदस्तूर कायम है।

गौरतलब है कि बिहार के मोतिहारी में तीन दिन पहले शराब पीने के बाद फिलहाल छब्बीस लोगों की जान जाने की खबर आ चुकी है। हैरानी की बात यह है कि राज्य में शराब पर सख्त पाबंदी को मौजूदा सरकार अपनी एक बड़ी उपलब्धि बताती रही है। मगर समय-समय पर अमूमन हर जगह अवैध रूप से शराब मिलने की खबरों को लेकर जब सवाल उठाए गए और पाबंदी की व्यावहारिकता को कठघरे में खड़ा किया गया, तब भी सरकार ने इस मामले में नरमी बरतने के कोई संकेत नहीं दिए। सवाल है कि अगर सरकार शराब पर प्रतिबंध को लेकर अपने सख्त रुख को उचित मानती है तो उसे जमीन पर उतारने में लगातार नाकाम क्यों दिख रही है!

हालांकि कुछ महीने पहले राज्य के छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से हुई मौतों की पिछली घटना के बाद राज्य में काफी तीखी प्रतिक्रिया उभरी थी और विपक्षी दलों ने सवाल उठाए थे। तब मुख्यमंत्री ने जो प्रतिक्रिया दी थी, उसे भी संवेदनशीलता की कसौटी पर उचित नहीं माना गया था। जबकि पाबंदी के बावजूद अगर कहीं किसी रूप में सामान्य या जहरीली शराब मिल रही है तो यह राज्य के प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही और विफलता का ही सूचक है।

अगर सरकारी तंत्र की नाकामी की वजह से जहरीली शराब के कारोबारी अपना धंधा चला रहे हैं तो सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। शायद इसी तरह के सवालों से उपजे दबाव का नतीजा है कि इस बार अपना रुख बदलते हुए बिहार के मुख्यमंत्री ने यह अहम घोषणा की कि मोतिहारी में जहरीली शराब पीने से मरने वालों के अलावा पहले की घटनाओं में हुई मौतों के मामले में भी पीड़ित परिवारों को चार-चार लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।

यों सरकार ने इसके लिए कुछ शर्तें लगाई हैं। मसलन, मृतक के परिजनों को लिखित देना होगा कि मौत शराब पीने से हुई है, शराबबंदी अच्छी चीज है और भविष्य में परिवार का कोई भी शख्स शराब नहीं पीएगा।

दरअसल, बिहार में पिछले कई साल से शराबबंदी लागू है और इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ राज्य की पुलिस की ओर से बेहद सख्ती बरतने की खबरें भी आती रही हैं। शराब की अवैध बिक्री के आरोप में बहुत सारे लोगों को जिस तरह कानून के कठघरे में खड़ा किया गया, उस पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए।

जमीनी तस्वीर यह है कि राज्य में पाबंदी के बावजूद शराब हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं देखा गया। ऐसे आरोप भी सामने आए कि कई स्तर पर मिलीभगत के बूते आज भी शराब के अवैध कारोबार को अंजाम दिया जाता है। इसी बीच कई बार जहरीली शराब भी बेच दी जाती है और उसका शिकार आमतौर पर वैसे गरीब लोग होते हैं, जो जागरूक नहीं होते हैं।

आखिर इसकी मुख्य वजह शराबबंदी के नियम को ईमानदारी से लागू करने में राज्य के संबंधित महकमों की लापरवाही ही है। यह बेवजह नहीं है कि प्रतिबंध के बावजूद हर कुछ समय बाद राज्य के किसी इलाके में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत की खबरें अक्सर आती रहती हैं। अगर बिहार सरकार इसे कोई गंभीर समस्या मानती है तो उसे शराबबंदी की अपनी प्रचारित नीति की सार्थकता भी साबित करनी चाहिए।