वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र की बात और अपने देश में प्रकारांतर से आतंकवाद का समर्थन और महिमामंडन मानो कनाडा की फितरत होती जा रही है। पिछले कुछ समय से यह लगातार देखा जा रहा है कि एक ओर कनाडा भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग का संबंध मजबूत करने की दुहाई देता है और दूसरी ओर वह भारत के खिलाफ आतंकी तत्त्वों को संरक्षण देता है, उनके लिए सहानुभूति का सार्वजनिक प्रदर्शन करता है। हालांकि कनाडा के इस चेहरे को समझना अब मुश्किल नहीं रह गया है और एक तरह से यह भारत के लिए सजग रहने का वक्त है। यही वजह है कि आतंकवादियों के प्रश्रय देने के कनाडा के रुख के मद्देनजर अब भारत ने भी स्पष्ट प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है। वर्ष 1985 के कनिष्क बम विस्फोट की उनतालीसवीं बरसी पर कनाडा में आतंकवाद का महिमामंडन करने वाली गतिविधियों को निंदनीय करार देते हुए भारत ने साफ शब्दों में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी कार्रवाइयों को वहां इजाजत दी जाती है, जबकि शांतिप्रिय देशों और लोगों की ओर से आतंकवादी गतिविधियों की निंदा की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि कनिष्क बम विस्फोट की घटना में एअर इंडिया के विमान में सवार तीन सौ उनतीस लोगों की जान चली गई थी। मरने वालों में ज्यादातर भारतीय मूल के कनाडाई थे। माना जाता है कि उस समय के खालिस्तान समर्थक आतंकवादी तत्त्व कनिष्क बम विस्फोट की घटना के लिए जिम्मेदार थे। इसके बावजूद कनाडा पर खालिस्तान समर्थकों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। आमतौर पर कनाडा इन आरोपों से इनकार करता रहा है, मगर वह इस सवाल का जवाब नहीं दे पाता कि अगर वह आतंकवाद में विश्वास रखने वालों को प्रश्रय नहीं देता है तो वहां की संसद तक में किसी खालिस्तानी तत्त्व की याद में गतिविधियां क्यों आयोजित होती हैं। हाल ही में खालिस्तानी चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की याद में कनाडा की संसद में ‘एक मिनट का मौन’ रखा गया था, जिसकी भारत ने तीखी आलोचना की थी।
विचित्र यह है कि कनाडा की ओर से भारत के साथ कई मुद्दों पर साथ होने और आर्थिक-राष्ट्रीय सुरक्षा पर चर्चा करने की दुहाई दी जाती है और साथ ही वहां की संसद में खालिस्तान समर्थकों की हिमायत में ‘एक मिनट का मौन’ रखा जाता है। सवाल है कि दूसरे देशों में लोकतंत्र की लड़ाई का पक्ष लेने के दावे के समांतर कनाडा किस तर्क पर अपने देश में अलगाववादी तत्त्वों को संरक्षण देता है, उनके प्रति सहानुभूति का रुख रखता है। क्या वह इस तथ्य से अनजान है कि इस मसले पर भारत के सामने कैसी चुनौतियां खड़ी हैं? क्या यह परोक्ष रूप से भारत जैसे देश की संप्रभुता में दखल नहीं है?
यह रवैया रखते हुए कनाडा भारत के साथ किस तरह के सहयोग की अपेक्षा करता है? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आतंकवाद किसी तरह की सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल का खयाल नहीं करता और यह एक ऐसी चुनौती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिल कर निपटने की जरूरत है। विश्व में ऐसे भी उदाहरण रहे हैं कि अगर किसी देश ने अपने सीमा-क्षेत्र में आतंकवाद को पलने-बढ़ने का मौका दिया, उसे प्रश्रय दिया, तो बाद में खुद उसे ही आतंकवाद का पीड़ित और भुक्तभोगी होना पड़ा। कनाडा आतंक का महिमामंडन करके न केवल भारत के सामने जटिल हालात पैदा करने की कोशिश करता है, बल्कि वह अपने भविष्य के लिए भी मुश्किलों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है।