आगामी गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण स्वीकार कर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपने देश के लिए भारत के महत्त्व को रेखांकित किया है। ऐसा इसलिए भी है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका को ब्रिटेन अच्छी तरह देख-समझ रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि वैश्विक पटल पर भारत की छवि एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरी है। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोरिस जॉनसन से कई मुद्दों पर बात की थी और दोनों देशों के बीच रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए भविष्य की रूपरेखा पर चर्चा की थी।
गणतंत्र दिवस पर बोरिस जॉनसन को मुख्य अतिथि के रूप में आने का न्योता देना इसी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो जिसमें भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापक साहभागिता न हो।
चाहे व्यापार हो, या निवेश, शिक्षा, शोध, सैन्य सहयोग, स्वास्थ्य, पर्यावरण जैसे क्षेत्र, सभी क्षेत्रों में भारत और ब्रिटेन मिल कर काम कर रहे हैं। ऐसे में अगर भारत भी बोरिस जॉनसन को महत्त्व दे रहा है तो इसे निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच रिश्तों के नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमिनिक राब इन दिनों भारत के दौरे पर हैं। उनके और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बीच व्यापार से लेकर आतंकवाद और कट्टरता से निपटने जैसे द्विपक्षीय और हिंद-प्रशांत जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर हुई वार्ता इस बात का संकेत है कि ब्रिटेन भारत की मुश्किलों को कहीं न कहीं समझ रहा है।
एशिया प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तनाव से बड़े राष्ट्र परेशान हैं। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदम भारत के लिए खतरा पैदा करने वाले हैं। दोनों मंत्रियों के बीच अफगानिस्तान का मामला भी उठा। आज अफगानिस्तान जिन हालात से गुजर रहा है, वे भारत के लिए भी संकटपूर्ण हैं।
अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण लिए भारत की कई परियोजनाएं चल रही हैं। अरब देशों में भी भारत की साख बनी है। ईरान से भी भारत के रिश्ते अच्छे ही हैं, भले अमेरिका के दबाव में भारत ईरान से तेल न ले रहा हो। सबसे बड़ी बात तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार और विस्तार के लिए भारत आवाज उठाता रहा है।
ब्रिटेन ने भी भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का कभी विरोध नहीं किया। इसलिए पिछले कुछ सालों में दुनियादारी में भारत का जो डंका बजा है, उसमें कहीं न कहीं ब्रिटेन अपना लाभ भी देख रहा है।
ब्रिटेन खुद इस वक्त बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। कोरोना महामारी और ब्रेक्जिट से उत्पन्न हालात गंभीर समस्या के रूप में खड़े हैं। कोरोना से निपटने में आॅक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के टीके का उत्पादन भारत का सीरम इंस्टीट्यूट कर रहा है।
यूरोपीय संघ से अलग होने के फेर में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है और व्यापार पर भी असर पड़ा है। इसलिए अब वह नौवहन सुरक्षा, आपूर्ति शृंखला जैसे क्षेत्रों में भारत की ओर देख रहा है। ब्रिटेन चाहता है कि भारत के साथ वह मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाए।
आज ब्रिटेन में जितनी बड़ी तादाद में भारतीय हैं, बड़े उद्योगपति हैं और भारतीय मूल के लोग सरकार में महत्त्वपूर्ण पदों पर हैं, उतने शायद किसी और देश में नहीं है। हालांकि हाल में ब्रिटेन में भारत के खिलाफ जिस तरह से खालिस्तान समर्थक सक्रिय हुए हैं, वह चिंता पैदा करने वाला है। सवाल है कि क्या भारत के साथ मजबूत रिश्तों की चाहत रखने वाले ब्रिटेन के शीर्ष नेताओं को इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए!