पिछले हफ्ते दिसंबर में खुदरा महंगाई दर घट कर 5.72 फीसद पर रहने के आंकड़े आए थे। अब थोक महंगाई के 4.95 फीसद पर होने का आंकड़ा आया है। रिजर्व बैंक ने कहा था कि अगर महंगाई की दर छह फीसद तक सिमट जाती है, तो विकास दर में जल्दी सुधार शुरू हो जाएगा।
इस लिहाज से अर्थव्यवस्था के लिए यह उत्साहजनक संकेत है। पिछले दो महीनों से थोक और खुदरा दोनों स्तरों पर महंगाई का रुख नीचे की तरफ बना हुआ है। पिछले साल इसी महीने थोक महंगाई 14.27 फीसद थी। यहां तक कि इस साल नवंबर में यह दर 5.85 फीसद थी। ताजा आंकड़ों में बताया गया है कि थोक महंगाई की दर में गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, खाद्य उत्पादों, वस्त्रों और रासायनिक उत्पादों की कीमतों में नरमी के कारण दर्ज की गई।
रिजर्व बैंक के लिए यह राहत की बात इसलिए है कि खुदरा महंगाई की दर बढ़ नहीं रही। यानी उसके मौद्रिक उपाय कारगर साबित हो रहे हैं। मगर अब भी ग्रामीण महंगाई दर छह फीसद से ऊपर बनी हुई है।
थोक महंगाई दर में गिरावट का अर्थ है कि भारी उद्योगों में कुछ गति लौटेगी। अभी विकास दर में भारी उद्योगों का योगदान उत्साहजनक नहीं है। उसकी कई वजहों में से एक वजह महंगाई भी है। महंगाई बढ़ने से वस्तुओं के उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, जिसका स्वाभाविक असर खुदरा व्यापार पर पड़ता है। अभी खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें नीचे आ चुकी हैं, जिसकी वजह से खुदरा महंगाई की दर छह फीसद से नीचे आ सकी है।
यह फलों, सब्जियों और कई अनाजों के उत्पादन का मौसम है। सब्जियों की पैदावार अच्छी होने की वजह से इनकी कीमतों में कमी आई है। फिर कच्चे तेल और र्इंधन की कीमतें न बढ़ने की वजह से ढुलाई का खर्च नहीं बढ़ सका है। इस तरह महंगाई लोगों की सहनशक्ति के नीचे बनी हुई है। संभव है, मौसम बदलने के बाद खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें बढ़ें और खुदरा महंगाई की दर भी बदले, मगर अगले महीने तक ऐसी किसी स्थिति की आशंका नहीं है।
महंगाई दर घटने से एक तो रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव कम हो गया है। दूसरे, आम लोगों को निवेश के मामले में जो अपने हाथ रोकने पड़ रहे थे, वे कुछ खुलेंगे। स्वाभाविक ही, इससे बाजार में पैसे की तरलता कुछ बढ़ेगी। मगर फिर भी महंगाई की दर में संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार के सामने चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं।
मौसमी उत्पादन की वजह से बेशक खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें काफी कम हो गई हैं, मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगाई का जो वातावरण बना हुआ है, उसका असर आयात की जाने वाली वस्तुओं पर बना रहेगा। इसलिए निर्यात के मोर्चे पर बेहतरी के प्रयास का दबाव सरकार पर अब भी बना हुआ है। निर्यात नहीं बढ़ेगा, तो भारी उद्योगों में अपेक्षित गति नहीं लौटेगी।
आर्थिक विकास में चूंकि भारी उद्योगों का योगदान अधिक महत्त्व रखता है, इसलिए सरकार का जोर उसे बेहतर बनाने पर अधिक है। फिर महंगाई को सहनशील स्तर पर बनाए रखने में लोगों की क्रयशक्ति का बड़ा योगदान होता है। यह तभी बढ़ती है, जब लोगों की कमाई बढ़ती है। इस मोर्चे पर सरकार को अभी बहुत कुछ करना है।