किसी हादसे या बीमारी की हालत में रक्त की जरूरत होने और समय पर नहीं मिल पाने की वजह से दुनिया भर में वैसे लाखों लोगों की जान चली जाती है, जिन्हें बचाया जा सकता था। कई बार ऐसा भी होता है कि एक ब्लड बैंक में किसी खास समूह का रक्त उपलब्ध होने के बावजूद सिर्फ इसलिए कोई दूसरा ब्लड बैंक वहां से नहीं मंगवा सकता कि ऐसा करना कानूनी प्रावधानों के खिलाफ रहा है। लेकिन नेशनल ब्लड ट्रांस्फ्यूजन काउंसिल की सिफारिश के बाद अब केंद्र सरकार ने एक से दूसरे ब्लड बैंक में रक्त के हस्तांतरण के नियम को मंजूरी देकर एक महत्त्वपूर्ण पहल की है।
इससे सबसे बड़ी सुविधा यह होगी कि अगर किसी अस्पताल में भर्ती मरीज को जरूरत होने पर वहां रक्त नहीं मिल पाता है तो वह वहीं से किसी दूसरे ब्लड बैंक से उसे हासिल कर सकेगा। गौरतलब है कि अब तक की व्यवस्था में एक ब्लड बैंक से दूसरे में रक्त की आपूर्ति की कानूनी इजाजत नहीं थी। इसके अलावा, प्लाज्मा की जरूरत पड़ने पर मरीजों या उनके परिजनों को किस तरह के आर्थिक शोषण से गुजरना पड़ता रहा है, यह छिपा नहीं है। ब्लड बैंक के जरिए अतिरिक्त प्लाज्मा की कोई तय कीमत न होने के चलते इसके अवैध कारोबार के मामले सामने आते रहे हैं। इसी के मद््देनजर स्वास्थ्य मंत्रालय ने ब्लड बैंकों में उपलब्ध अतिरिक्त प्लाज्मा के लिए बिक्री-मूल्य भी निर्धारित कर दिए हैं। अब इसके लिए सोलह सौ रुपए प्रति लीटर से ज्यादा नहीं वसूला जा सकेगा।
यों भारत में खून बेचना या रक्तदान करने वाले को पैसा देना गैरकानूनी है। लेकिन सच यह है कि देश भर में खून खरीदने-बेचने का धंधा चल रहा है। हादसे या किसी बीमारी में खून की कमी की नौबत आने पर लोगों को आमतौर पर ब्लड बैंकों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति अक्सर सामने आती है कि किसी मरीज को उसकी जरूरत के समूह का रक्त किसी खास ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं होता और दूसरे ब्लड बैंक में उपलब्धता के बावजूद वहां से मंगवाना अब तक गैर-कानूनी रहा है। फिर, हमारे यहां रक्तदान को लेकर कई तरह की भ्रांत धारणाएं और हिचक पहले से हैं। जबकि समय पर खून न मिल पाने से भारत में हर साल करीब पंद्रह लाख मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है। लेकिन हमारे यहां स्वैच्छिक रक्तदान से केवल पचास प्रतिशत खून ही जमा हो पाता है। आधुनिक तकनीकी से लैस ब्लड बैंकों की कमी के चलते रक्त के अवयवों का इस्तेमाल भी सीमित है। रक्त की कमी का फायदा पेशवर तरीके से खून बेचने वाले उठाते हैं। इस पर लगाम कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में एक निर्देश जारी किया था। लेकिन उस पर अब तक अमल नहीं हो सका। इस पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार की ताजा पहल स्वागतयोग्य है।