पहलगाम में आतंकी हमले की जिस घटना पर सभी लोग दुख से भरे हों, उस पर अपनी राय जाहिर करते हुए अगर कोई नेता पीड़ितों की त्रासदी के लिए प्रकारांतर से उन्हें ही जिम्मेदार बताने लगे तो इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। भाजपा के राज्यसभा सांसद राम चंद्र जांगड़ा को इस मसले पर बोलते हुए यह सोचने-समझने की जरूरत शायद बिल्कुल नहीं लगी कि आतंकवादियों के हमले की प्रकृति क्या थी और उस समय वहां आम लोग किस स्थिति में थे।

गौरतलब है कि एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने सारी संवेदनशीलता को ताक पर रख कर कहा कि पहलगाम में अपने पति को खोने वाली महिलाओं को वीरांगना की तरह व्यवहार करना चाहिए था, अगर वे लड़तीं तो पहलगाम में इतने लोग नहीं मरते और तीनों आतंकवादी भी मारे जाते। उनके इस बयान में झलकती संवेदनहीनता साफ महसूस की जा सकती है।

भाजपा सांसद के खिलाफ कार्रवाई की उठी मांग

मामले के तूल पकड़ने के बाद भले ही उन्होंने सफाई दी हो, लेकिन यह साफ है कि संगठित और सुनियोजित आतंकवाद के सामने आम लोगों की स्थिति को समझना उन्हें जरूरी नहीं लगता। यह बेवजह नहीं है कि इस तरह की बात करने के लिए जांगड़ा की तीखी आलोचना हो रही है और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी उठी है।

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हैरानी की बात यह है कि इस तरह के विचार रखने वाले राम चंद्र जांगड़ा राज्यसभा में बाकायदा प्रतिनिधि की हैसियत से देश-दुनिया की समस्याओं पर होने वाली बहसों का साक्षी बनते हैं या उसमें भागीदारी करते हैं। इसके बावजूद उन्हें अचानक उपजी परिस्थितियों और खासतौर पर सुनियोजित और संगठित आतंकी हमलों की प्रकृति और उनके नतीजों की इतनी ही समझ है कि वे पीड़ितों के जज्बे पर सवाल उठाते हैं।

बेलगाम बोल के जरिए आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग

हालांकि यह कोई पहला उदाहरण नहीं है कि पहलगाम में आतंकी हमले और उसके बाद के घटनाक्रमों के संदर्भ में किसी नेता ने इस तरह के आपत्तिजनक विचार जाहिर किए हों। कुछ नेताओं के विवादित बयानों से ऐसा लगता है कि उनके बीच बदजुबानी करने की मानो कोई होड़ लगी हो। आतंकी हमले के भुक्तभोगियों या पीड़ितों के दुख के प्रति इस तरह की संवेदनहीनता एक त्रासद विडंबना है। सवाल है कि इस तरह के बेलगाम बोल के जरिए कुछ नेता आखिर क्या साबित करना चाहते हैं।