दिल्ली में अफ्रीकी नागरिकों पर इधर हुए हमलों को लेकर स्वाभाविक ही सरकार की चिंता बढ़ गई है। कुछ दिन पहले दिल्ली के वसंत कुुंज इलाके में कांगो के एक युवक को तीन व्यक्तियों ने पीट-पीट कर मार डाला था। इस बर्बर हत्या की कांगो में तीखी प्रतिक्रिया हुई; वहां की राजधानी किनशासा में भारतीय समुदाय की कुछ दुकानों पर हमले हुए। दूसरी ओर, दिल्ली में सरकार को अफ्रीकी देशों के राजदूतों की नाराजगी झेलनी पड़ी। किसी तरह मान-मनौव्वल कर राजदूतों का कोप शांत किया गया। पर पिछले हफ्ते दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में फिर कुछ अफ्रीकियों पर हमले हुए, जिनमें घायल हुए लोगों में एक अफ्रीकी की हालत गंभीर है। वसंत कुंज की घटना के बाद, अफ्रीकी राजदूतों को मनाने के क्रम में, सरकार की दलील थी कि इसे एक अलग-थलग आपराधिक घटना के रूप में देखा जाए, न कि एक प्रवृत्ति या रंग-भेद के तौर पर। मगर कुछ दिनों के भीतर फिर अफ्रीकियों को निशाना बनाए जाने से यह दलील कमजोर पड़ी है। दक्षिण अफ्रीका के उच्चायुक्त ने बेहिचक कहा है कि ये नस्लभेदी घटनाएं हैं; अलबत्ता उन्होंने साथ में यह जरूर जोड़ा कि नस्लभेद भारत सरकार की नीति नहीं है, और उम्मीद की जानी चाहिए कि वह ऐसी घटनाओं से सख्ती से निपटेगी।
अमूमन ऐसे वाकयों में पुलिस का रवैया निराशाजनक रहा है। भारत में रह रहे अफ्रीकियों का आम अनुभव यह है कि उन पर हमलों या उत्पीड़न के मामलों में पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। यहां का उनका सामाजिक अनुभव भी कम दुखद नहीं रहा है। उनका कहना है कि उन पर अक्सर फब्तियां कसी जाती हैं, अपमानजनक टिप्पणियां की जाती हैं, नस्लवादी गालियां दी जाती हैं, दुकानदार और टैक्सी या आॅटो चालक उनसे शिष्टता से पेश नहीं आते, आम जीवन की सेवाएं हासिल करने में उन्हें बहुत दिक्कत आती है, मसलन सैलून अक्सर उन्हें मना कर देते हैं। इन शिकायतों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। फिर, उन पर हमले की और भी घटनाएं गिनाई जा सकती हैं।
विदेशमंत्री सुषमा स्वराज और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के निर्देशों के फलस्वरूप दिल्ली पुलिस ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी और पांच लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया। पर अभी यह साफ नहीं है कि ये महज शक की बिना पर सिर्फ पूछताछ के मकसद से पकड़े गए लोग हैं या वास्तविक हमलावर। पर चुनौती सिर्फ हमलावरों को पकड़ने की नहीं है, बल्कि यहां रह रहे अफ्रीकियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके प्रति सामाजिक संवेदनशीलता विकसित करने की भी है। भारत हमेशा रंगभेद के खिलाफ रहा है। यह गांधी की भी विरासत है और उपनिवेशवाद के खिलाफ हमारे संघर्ष की भी। फिर, अफ्रीका महाद्वीप से अपना रिश्ता भारत और प्रगाढ़ करने की जुगत में है।
यूपीए सरकार के समय, 2008 में, पहला भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन दिल्ली में हुआ था। इसके बाद दूसरा शिखर सम्मेलन 2011 में इथियोपिया की राजधानी आदिस अबाबा में हुआ। इन दोनों सम्मेलनों में अफ्रीका के कुछ चुनिंदा देशों ने हिस्सा लिया था। पर मोदी सरकार ने भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का दायरा बढ़ा दिया; पिछले साल अक्तूबर में दिल्ली में हुए सम्मेलन में सभी चौवन अफ्रीकी देशों ने शिरकत की थी। यह बेहद अफसोस की बात है कि इसी सरकार के विदेश राज्यमंत्री ने अफ्रीकियों पर हुए हमलों को बहुत हल्के ढंग से लिया है, उन्होंने इन मामलों को मामूली झड़प करार दिया है। विचित्र है कि विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी से बंधे होने के बावजूद वे देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर फिक्रमंद नहीं दिखते!