भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशक लगातार पलायन कर रहे हैं। पिछले महीने शेयर बाजार में हुई भारी गिरावट से गहरी चिंता पैदा हो गई। बीते एक महीने में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआइ ने चौंतीस हजार पांच सौ चौहत्तर करोड़ रुपए निकाल लिए। बाजार में गिरावट का यह रुख अक्तूबर से ही बना हुआ है। तब से लेकर अब तक भारतीय शेयर बाजार से करीब एक लाख करोड़ डालर से अधिक की निकासी हो चुकी है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
बताया जा रहा है कि 2008 की वैश्विक मंदी के बाद विदेशी निवेशकों में यह सबसे बड़ा अफरातफरी का माहौल है। हालांकि सरकार इसे लेकर बहुत चिंतित नजर नहीं आ रही। वह अब भी यह बताते नहीं थक रही कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। जबकि हकीकत यह है कि विदेशी निवेशकों के भारतीय बाजार से पलायन का बड़ा कारण यहां की अर्थव्यवस्था का लगातार कमजोर होते जाना है। एफपीआइ में यह भरोसा नहीं रह गया है कि भारतीय बाजार में उन्हें उचित लाभ मिल पाएगा। हालांकि अमेरिकी और चीनी बाजार में भारत की तुलना में अधिक मुनाफा मिल रहा है, इसलिए निवेशकों ने उधर का रुख कर लिया है।
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं
हालांकि शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव कोई नई बात नहीं है, पर जिस तरह लगातार यह उतार पर है, वह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। यह केवल एफपीआइ के पलायन का मामला नहीं है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ भी लगातार कम हो रहा है। यानी विदेशी कंपनियां भारत में निवेश करना सुरक्षित नहीं मान रहीं। भारत में शुद्ध विदेशी निवेश घट कर 15.7 अरब डालर रह गया है। यानी पिछले बारह वर्षों में यह सबसे निचला स्तर है। इसका एक कारण तो यह है कि भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी काफी सिकुड़ चुकी है।
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बाजार में सुस्ती है। ऐसे में विदेशी कंपनियों के लिए निवेश करना मुनाफे का सौदा नहीं रह गया है। उन्हें यह भी भरोसा नहीं रह गया कि भारतीय बाजार कब तक सुधर पाएगा। सरकार के लिए यह इसलिए चिंता का विषय होना चाहिए कि शेयर बाजार में गिरावट और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी अर्थव्यवस्था को और कमजोर करेगी। फिर, यह मामला भारतीय निवेशकों से भी जुड़ा है। अनेक सार्वजनिक कंपनियां शेयर बाजार में जो पैसा लगाती हैं, वह आम लोगों की जमापूंजी होती है। जब विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल कर पलायन करते हैं, तो नुकसान आखिरकार भारतीय नागरिकों को उठाना पड़ता है।
महंगाई पर काबू पाना अब भी चुनौती
बाजार में उतार का असर व्यावहारिक धरातल पर साफ नजर आने लगा है। महंगाई पर काबू पाना अब भी चुनौती है। पिछले आठ-नौ वर्षों से लोगों की आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। बेरोजगारी कम होने का नाम नहीं ले रही। इसका ही असर है कि विनिर्माण क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहा है। सेवा, खनन, वाहन, भवन निर्माण आदि क्षेत्रों में सुस्ती बनी हुई है।
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निर्यात के मोर्चे पर कोई बेहतरी नजर नहीं आ रही। ये सारी स्थितियां विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर कर रही हैं। यह बात कई बार रेखांकित की जा चुकी है कि कुछ कंपनियों का मुनाफा बढ़ने से पूरी अर्थव्यवस्था की सूरत नहीं बदल सकती। इसके लिए बुनियादी समस्याओं को दूर करना जरूरी है। अगर अब भी सरकार इन संकेतों से सबक लेते हुए व्यावहारिक कदम नहीं उठाती, तो दुश्वारियां और बढ़ेंगी ही।