शहरों-महानगरों में बने व्यावसायिक परिसरों या माल में जाने वाले लोग आमतौर पर सामान की खरीदारी के अलावा वहां होने वाली अलग-अलग गतिविधियों के प्रति भी आकर्षित होते हैं। इनमें पैसा चुका कर खेले जाने वाले कई तरह के खेल भी शामिल होते हैं, जो खासतौर पर बच्चों का ध्यान खींचते हैं। इन परिसरों में सुरक्षा के उच्च मानकों का पालन करने का दावा किया जाता है। मगर चंडीगढ़ के एक मशहूर माल में जिस तरह ‘खिलौना ट्रेन’ के अचानक पलट जाने से एक बच्चे की जान चली गई, उससे यही साबित हुआ है कि लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसी जगहों का प्रबंधन समूह कारोबारी गतिविधियां संचालित तो करता है, लेकिन उसके सुरक्षित होने को लेकर पर्याप्त फिक्र नहीं की जाती। माल में ‘खिलौना ट्रेन’ में बच्चों को बिठा कर उसे चलाते हुए इसका ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझी गई कि गाड़ी में बैठे बच्चों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करनी है। नतीजतन, एक जगह मुड़ते हुए गाड़ी पलट गई और उसके डिब्बे से ग्यारह वर्ष के एक बच्चे के सिर में इस तरह चोट लगी कि उसकी जान चली गई।
साफ है कि यह प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाने में बरती गई घोर लापरवाही है, जिसकी कीमत एक परिवार को इस त्रासद तरीके से चुकानी पड़ी। व्यावसायिक परिसरों में ऐसे मामले अक्सर सामने आते हैं, जहां मनोरंजन आदि के लिहाज से किसी खेल का संचालन किया जाता है। मगर वहां सुरक्षा इंतजामों को लेकर जरूरी सावधानी नहीं बरती जाती है, जिसका खमियाजा वहां आए बच्चों या लोगों को भुगतना पड़ता है। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब गुजरात के राजकोट में एक खेल परिसर में आग लगने से कम से कम तीस लोगों की जान चली गई थी। इस तरह के हादसों के उदाहरण होने के बावजूद व्यावसायिक परिसरों में बच्चों के लिए आयोजित गतिविधियों में हर स्तर पर जरूरी सावधानी क्यों नहीं बरती जाती है? वहां कारोबार या मनोरंजन गतिविधियों के मामले में सुरक्षा या व्यवस्था संबंधी मामलों की निगरानी और उसकी जांच किसकी जिम्मेदारी है? किसी बड़े हादसे के बाद सरकार और प्रशासन के बीच जैसी सक्रियता देखी जाती है।