भारत और थाईलैंड ने आपसी रिश्तों को आगे बढ़ाते हुए इसे रणनीतिक साझेदारी तक ले जाने पर सहमति जता कर पूरी दुनिया को बड़ा संदेश दिया है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में समावेशी और नियम आधारित व्यवस्था के लिए यह दूरगामी पहल है। दक्षिण-पूर्व एशिया के सात देशों के संगठन (बिम्सटेक) के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने थाईलैंड के साथ संबंधों को एक नए सफर पर ले जाने की बात करते हुए दरअसल, भारत के हिंद प्रशांत दृष्टिकोण को सामने रखा है। इसी के साथ दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। इससे द्विपक्षीय सहयोग के नए दरवाजे खुलने की उम्मीद है। मगर इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण सामरिक समझौता है।

भारत और थाईलैंड के बीच आर्थिक तथा सांस्कृतिक समझौता वर्षों से है

भारत और थाईलैंड के बीच आर्थिक तथा सांस्कृतिक समझौता वर्षों से है। दोनों देशों के बीच इस समय व्यापार सार्वकालिक स्तर पर है। यही वजह है कि दोनों ही व्यापारिक गतिविधियां और परस्पर निवेश बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं। आसियान क्षेत्र में सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम और इंडोनेशिया के बाद थाईलैंड भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अब अगर दोनों देश रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय लिखने जा रहे हैं, तो इसके पीछे मजबूत रक्षा संबंधों की पृष्ठभूमि भी है।

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बिम्सटेक सम्मेलन में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह विस्तारवाद में नहीं, विकास में विश्वास रखता है। यह एक तरह से दुनिया की बड़ी ताकतों को संदेश है कि सभी देशों को एक दूसरे का सहयोग करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। थाईलैंड के साथ सामरिक साझेदारी बढ़ाने की पहल उसकी रणनीति का हिस्सा है। यह साझेदारी परस्पर सहयोग को नया धरातल देगी। भारत के लिए बिम्सटेक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह संगठन हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव से लड़ने और उसे रोकने में मदद करता है।

इस लिहाज से थाईलैंड से सामरिक संबंध भारत के लिए जरूरी है। बिम्स्टेक से जुड़े नेपाल, भूटान, म्यांमा, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड और भारत व्यापारिक रिश्ते बढ़ाते हुए अगर मुक्त व्यापार समझौता भी कर लें, तो दक्षिण-पूर्व क्षेत्र प्रगति के नए पथ पर चल सकता है। तब दुनिया की इक्कीस फीसद आबादी का नेतृत्व करने वाले देशों की उपेक्षा दुनिया नहीं कर पाएगी।