कानूनी प्रावधान के मुताबिक सरकार उस जमीन को खाली करा सकती है। यह मसला सतही तौर पर भले अतिक्रमण हटाने का लग सकता है, लेकिन इसके साथ कई ऐसे पहलू जुड़े हुए हैं, जो सरकार को भी कठघरे में खड़ा करती है।
हाल ही में उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन खाली कराए जाने पर ये सवाल उभरे हैं कि करीब सात दशक से बसी बस्ती को सरकार अचानक खाली कराने पहुंच जाती है, तो उसे किस हद तक उचित कहा जा सकता है! वहां इतने लंबे वक्त से लोग अगर कथित तौर पर अवैध रूप से रह रहे हैं तो उसकी जिम्मेदारी से सरकार क्या पूरी तरह मुक्त है? फिर अगर किन्हीं परिस्थितियों में उन्हें वहां से हटाया जा रहा है, तो वहां के लोगों के प्रति सरकार की कोई जवाबदेही है या नहीं? स्वाभाविक ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है, जिसके तहत हल्द्वानी में रेलवे की जमीन को खाली कराया जाना था।
शीर्ष अदालत के मुताबिक सिर्फ सात दिनों की छोटी अवधि के नोटिस में पचास हजार से ज्यादा की आबादी को अचानक ही किसी जगह से नहीं हटाया जा सकता। सवाल है कि अगर वे तमाम लोग वहां दशकों से रह रहे हैं तो क्या संबंधित महकमों ने नियम-कायदे या कानूनी स्थिति के प्रति उन्हें पहले कभी औपचारिक रूप से सूचित किया था? इतना तय है कि इतनी बड़ी आबादी वहां रातोंरात नहीं बस गई होगी।
अगर वहां लोगों ने जमीन खरीद कर अपने घर बनाए, तो भूखंड का सौदा करने वाले वे लोग कौन थे और जब वहां की जमीन की खरीद-फरोख्त चल रही थी, तब नियामक संस्थाएं क्या कर रही थीं? अब अगर सरकार ने अतिक्रमण के तर्क पर एक बड़ी आबादी को वहां से हटाने का फैसला किया भी है तो क्या यह मानवीय प्रश्न नहीं उठता है कि पहले उसे लोगों के वैकल्पिक पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि पट्टे और जमीन की नीलामी के दावों के बीच यह तथ्य है कि लोग वहां सालों से रह रहे हैं और ऐसे में उन्हें कुछ पुनर्वास दिया जाना चाहिए।
दरअसल, जब सरकारी जमीन पर अवैध रूप से लोग बस रहे होते हैं तो उसमें भूमाफिया की बड़ी भूमिका हो सकती है, जो किसी भूखंड के वैध होने का आश्वासन देकर लोगों से मोटी रकम वसूलते हैं। इस बीच बस्ती बसती जाती है, सरकार की ओर से बिजली-पानी, स्कूल आदि की व्यवस्था की जाती है। खबरों के मुताबिक हल्द्वानी में विवादित इलाके के निवासियों के नाम सरकारी रिकार्ड में दर्ज हैं और वे सालों से नियमित रूप से गृह कर का भुगतान करते आ रहे हैं।
क्षेत्र में कई सरकारी स्कूल, एक अस्पताल आदि ऐसी सुविधाएं हैं, जिन्हें सरकार की ओर से मुहैया कराया गया होगा। ऐसे में अचानक ही यह घोषणा कर दी जाती है कि समूची बस्ती अवैध तरीके से बसी हुई है, तो इसे कैसे देखा जाएगा? यह केवल हल्द्वानी का सवाल नहीं है। देश भर में इस तरह की स्थितियां अक्सर उभरती रही हैं। अब समय आ गया है कि केंद्र के स्तर पर स्थायी पुनर्वास नीति बनाई जाए, ताकि इस तरह की स्थितियों से निपटने में आसानी हो।