बांग्लादेश में अराजकता फिर से अपने पांव पसारने लगी है। हाल ही में वहां एक प्रमुख नेता की गोली मारकर हत्या कर दिए जाने के बाद शुरू हुए हिंसक प्रदर्शनों से कई जगह हालात तनावपूर्ण हो गए हैं। इस बीच अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर भी खतरा पैदा हो गया है। वहां गुरुवार को ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू व्यक्ति की पीटकर हत्या कर दी गई और उसके शव को आग लगा दी गई। इससे स्पष्ट है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का विरोध करने वालों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया जा रहा है।
सवाल है कि वहां अंतरिम सरकार का जिस मकसद से गठन किया गया था, क्या वह चरमपंथियों के दबाव में अपना उद्देश्य भूल गई है? आखिर क्या वजह है कि वहां न तो कानून-व्यवस्था दुरुस्त हो पा रही है और न ही लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनने का मार्ग प्रशस्त हो पा रहा है? अस्थिरता और हिंसा के इस माहौल में बांग्लादेश-भारत के संबंध भी लगातार चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं।
क्या बांग्लादेश में हुई हिंसा फरवरी में होने वाले चुनावों को पटरी से उतार देगी?
बांग्लादेश में शरीफ उस्मान हादी नामक जिस नेता की गोली मारकर हत्या की गई, वह जुलाई में सरकार के विरुद्ध हुए प्रदर्शनों में प्रमुख चेहरा थे। सरकार की ओर से गुरुवार को उनकी मौत की पुष्टि किए जाने के बाद कई जगह हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।
कुछ लोगों ने भारतीय सहायक उच्चायुक्त के आवास पर भी ईंट और पत्थरों से हमला किया। इससे पहले बांग्लादेश के कुछ राजनेताओं ने जिस तरह भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए, उसका सीधा असर भारत के साथ उसके संबंधों पर पड़ा है।
बांग्लादेश में सुरक्षा का माहौल जिस तेजी से बिगड़ रहा है और पहले भी पूर्वोत्तर भारत के कुछ अलगाववादी समूहों ने बांग्लादेश में शरण ली है, उसके मद्देनजर भारत की चिंता स्वाभाविक है।
फिलहाल बांग्लादेश में जिस तरह की अराजकता फैली हुई है और उसकी आंच में बहुत कुछ झुलसने की आशंका है, उसे देखते हुए भारत सरकार को चाहिए कि वह कूटनीतिक स्तर पर इन मसलों को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के समक्ष प्रभावी तरीके से उठाए।
