लेकिन राज्य में अगर जहरीली शराब पीने से अक्सर लोगों की मौत की घटनाएं सामने आ रही हों तो उसके लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा? वहां छपरा जिले के मशरक और इसुआपुर के डोइला गांव में मंगलवार की रात शराब पीने के बाद कम से कम बीस लोगों की जान चली गई।
स्वाभाविक ही इस घटना पर न केवल राज्य में व्यापक चिंता जताई जा रही है, बल्कि एक बार फिर सरकार सवालों के कठघरे में है कि अगर वह शराब पर प्रतिबंध को समाज के हित में मानती है तो उसे ठीक से लागू करना किसकी जिम्मेदारी है! विडंबना यह है कि पिछले कुछ सालों में जहरीली शराब पीकर लोगों के मरने की घटनाओं का सिलसिला चल रहा है, लेकिन सरकार इस त्रासदी पर काबू पाने का कोई ठोस रास्ता नहीं निकाल सकी है। होता बस यह है कि जब भी जहरीली शराब से मौतों की कोई घटना तूल पकड़ लेती है, तब पुलिस-प्रशासन की ओर से सख्ती बढ़ाने की कवायद तेज कर दी जाती है, भविष्य में ऐसा नहीं होने देने का आश्वासन दिया जाता है।
सच यह है कि कुछ दिनों की सक्रियता के बाद संबंधित महकमे शायद यह भूल जाते हैं कि इस मोर्चे पर उन्हें क्या करना है। वरना क्या वजह है कि कानूनी तौर पर शराब की बिक्री पर सख्त पाबंदी लागू है, लेकिन इसकी अहमियत सिर्फ दस्तावेजों में ही दिखती है। आए दिन ऐसे आरोप सामने आते हैं कि बिहार में शराब की कालाबाजारी होती है और जिसे जरूरत होती है, वह गैरकानूनी तरीके से इसे हासिल कर लेता है।
सवाल है कि किसी भी व्यक्ति को ज्यादा कीमत चुका कर शराब कहां से मिल पाती है! आखिर शराब बेचने वाला कहीं से और किसी रास्ते से लेकर ही गया होता है! जो पुलिस और संबंधित महमके किसी बड़े इलाके के कोने में छिप कर चलाई जा रही गतिविधियों पर काबू पाने का दावा करते रहते हैं, उनकी नाक के नीचे अवैध रूप से शराब की खरीद-बिक्री कैसे चलती रहती हैं? दरअसल, केवल किसी मसले पर कानूनन प्रतिबंध की घोषणा से उस समस्या पर काबू नहीं पाया जा सकता। उसे लागू करने के लिए एक व्यापक तंत्र और उसके नियम-कायदों से ईमानदार सरोकार रखने वाले लोगों की जरूरत होती है।
सही है कि बिहार में शराबबंदी से बड़ी तादाद में परिवारों को कुछ सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से राहत मिली है। खासतौर पर महिलाओं ने इस बंदी का स्वागत इसलिए किया था, क्योंकि शराब की वजह से उनकी जिंदगी में बहुस्तरीय उत्पीड़न के हालात कमजोर हुए थे। लेकिन अगर अब भी इतनी आसानी से लोगों को न केवल शराब मिल रही है, बल्कि उसमें जहर मिला कर बेचने वाले भी कामयाब हो रहे हैं, तो यह विचार करने की जरूरत है कि इस मसले पर सरकार का फैसला कितना व्यावहारिक है।
राज्य में शराबबंदी को लागू करने के क्रम में जिस तरह भारी तादाद में लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के मामले सामने आए थे, उसे लेकर भी सरकार आलोचनाओं के घेरे में आई थी। लेकिन आज भी हालत यह है कि अक्सर जहरीली शराब पीने से लोगों की जान जाने की घटनाएं हो रही हैं। ऐसे में कुछ स्वाभाविक सवालों से परेशान होने के बजाय सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि शराबबंदी के बावजूद जिस तरह की त्रासदी और जटिलताएं खड़ी हो रही हैं, उनसे समय रहते निपटा जा सके। वरना कहने को समाज के हित में लगाई गई पाबंदी कुछ लोगों के लिए त्रासदी साबित होती रहेगी।