पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की बढ़ती सख्ती के बीच आतंकियों पर शिकंजा कसा है। इसकी वजह से आतंकवादियों के बीच हताशा की स्थिति साफ देखी जा सकती है। शायद यही वजह है कि अब आतंकियों ने पहचान तय करके किसी साधारण व्यक्ति को मार डालने की नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है, ताकि सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जा सके।
मगर उनकी ऐसी बर्बरता और अपनी मंशा को पूरा करने के लिए मानवीयता के खिलाफ हर हद को पार करने की हरकतों से उनकी हकीकत का पता चलता है। वरना क्या कारण है कि वहां अन्य राज्य से आकर कोई छोटा-मोटा काम करके गुजारा करने वाले गरीब लोगों या मजदूरों को भी मार डालने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। हालांकि आतंकवाद की जिस दृष्टि के साथ वे काम करते हैं, उसमें उनकी इस तरह की अमानवीय हरकतों पर हैरानी नहीं होती।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकवादियों ने एक बार फिर लक्षित हत्या की घटना को अंजाम दिया। बुधवार को बिजबेहरा इलाके के जबलीपोरा में आतंकियों ने एक मजदूर को नजदीक से गोली मार दी। मारा गया व्यक्ति बिहार से वहां जाकर मजदूरी और अन्य काम करता था। केवल इस वर्ष निशाना बना कर किसी व्यक्ति को मार डालने की यह तीसरी घटना है।
पिछले कुछ समय से सुरक्षा बलों की बढ़ती सख्ती के बीच हताश आतंकियों ने अब राज्य के बाहर से आकर गुजारा करने वाले लोगों की हत्या करना शुरू कर दिया है। इससे पता चलता है कि उनका मकसद राजनीतिक नहीं है, बल्कि हिंसा और निर्दोष या मासूम लोगों की हत्या के जरिए आतंक फैलाना ही उनकी राजनीति है।
दरअसल, यह वारदात जिस अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र में हुई, वहां सात मई को तीसरे चरण के तहत मतदान होना है और उम्मीद की जा रही है कि वहां लोग अपने मताधिकार का खुल कर प्रयोग करेंगे। जाहिर है, बिहार से जम्मू-कश्मीर जाकर मजदूरी करने वाले व्यक्ति की हत्या दरअसल स्थानीय लोगों के बीच भी दहशत फैलाने की कोशिश है, ताकि लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने से रोका जा सके।
समस्या यह है कि आए दिन सरकार आतंकवाद का सामना करने और उसका खात्मा करने के लिए हर स्तर पर सख्ती बरतने और आतंकियों का असर कम होने का दावा करती है। निश्चित रूप से आतंकियों पर नकेल कसने में मदद मिली है। आतंकवादी संगठनों को अब पहले के मुकाबले स्थानीय लोगों का संरक्षण भी नहीं मिल पा रहा है।
ऐसी हत्याओं से सुरक्षा व्यवस्था के चौकस होने के सरकार के दावों पर भी सवाल उठते हैं। लक्षित हत्याओं की नई रणनीति से आए दिन बाहरी या फिर स्थानीय लोगों को जिस तरह पहचान कर निशाना बना कर मार डालने की घटनाओं के जरिए लोगों के बीच आतंक फैलाने की कोशिशों में जिस तरह बढ़ोतरी हुई है, उससे साफ है कि अभी आतंकियों का असर खत्म नहीं हुआ है।
किसी की पहचान तय करके उसे मार डालने का एक मकसद यह भी होता है कि अलग-अलग समुदायों के बीच आपस में दूरी और संदेह का माहौल पैदा किया जाए, ताकि असुरक्षाबोध से घिरे लोगों का इस्तेमाल मन-मुताबिक किया जा सके। जाहिर है, सुरक्षा बलों को अब हालात के मुताबिक नई रणनीति के तहत आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लेना होगा।