दुनिया भर में युद्ध व अन्य संघर्षों से प्रभावित होने वाले आम नागरिकों की मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र समेत कई अंतरराष्ट्रीय एजंसियां मानवीय आधार पर काम कर रही हैं। वे संकट के दौरान लोगों को भोजन-पानी, वस्त्र और आश्रय स्थल आदि मुहैया कराते हैं। मगर यह अफसोसनाक है कि संघर्ष के दौरान लोगों की जिंदगी बचाने वाले इन सहायताकर्मियों पर ही हमले हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामले समन्वय कार्यालय की एक रपट के मुताबिक पिछले साल दुनियाभर में संघर्षों में रेकार्ड संख्या में सहायता कर्मी मारे गए और यह वर्ष और भी घातक हो सकता है।

वर्ष 2023 में तैंतीस देशों में संघर्षों के दौरान 280 सहायता कर्मी मारे गए

वर्ष 2023 में तैंतीस देशों में संघर्षों के दौरान 280 सहायता कर्मी मारे गए, जो 2022 के 118 के आंकड़े से दोगुने से भी अधिक हैं। गत वर्ष मारे गए कुल सहायताकर्मियों में से आधी से अधिक मौतें इजराइल-गाजा युद्ध के पहले तीन महीनों में दर्ज की गईं। सूडान और दक्षिण सूडान तथा रूस-यूक्रेन के बीच संघर्ष में भी सहायता कर्मियों पर हमले हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की रपट में ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि वर्ष 2024 और भी घातक परिणाम की राह पर हो सकता है, क्योंकि इस वर्ष अब तक सात अगस्त तक ही दुनियाभर में संघर्षों में 172 सहायताकर्मियों की मौत हो चुकी है। यानी सहायताकर्मियों को इसी तरह निशाना बनाया जाता रहा तो आने वाले महीनों में उनके हताहत होने का आंकड़ा तेजी से बढ़ेगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बीते मई माह में सहायताकर्मियों पर हमलों लेकर एक निंदा प्रस्ताव पारित कर सभी देशों से अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार मानवीय कार्यकर्ताओं की रक्षा करने का आह्वान किया था।

रेड क्रास की अंतरराष्ट्रीय समिति का भी मानना है कि संघर्ष के दौरान सहायताकर्मियों पर हमले करने वालों की जिम्मेदारी तय कर उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानूनों के कठघरे में लाना चाहिए। सवाल यह है कि विभिन्न संघर्षों के दौरान घायल व अन्य तरह से प्रभावित लोगों के जीवन को बचाने में जुटे राहतकर्मियों को आखिर क्यों निशाना बनाया जा रहा है? युद्ध के दौरान आम नागरिकों, किसी भी शरण लेने वाली जगह से लेकर स्कूलों-अस्पतालों आदि पर हमले नहीं करने को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए गए हैं, उनका पालन नहीं करने वाले देशों को कठघरे में खड़ा क्यों नहीं किया जा रहा है?