पिछले दिनों चुनाव प्रचारों के दौरान कई पार्टियों और नेताओं ने एआइ और ‘डीपफेक’ का सहारा लेकर या तो अपनी काल्पनिक छवि तैयार करके लोगों के सामने पेश की या अपने विपक्षी नेताओं के ऐसे वीडियो तैयार किए, जिससे लोगों के बीच गलत धारणा बन सकती है। इसके बाद वे उस आधार पर किसी को वोट देने या न देने का फैसला कर सकते हैं। इस तरह के वीडियो या चित्र तकनीकी कारीगरी से तैयार किए गए होते हैं।
अगर किन्हीं स्थितियों में इससे संबंधित विवाद उभरते हैं तो इसकी जवाबदेही लेने को भी कोई तैयार नहीं होता। जबकि आम लोगों पर इसके असर का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। यही वजह है कि निर्वाचन आयोग ने कहा है कि अगर कोई राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार एआइ के जरिए किसी तस्वीर, वीडियो या अन्य सामग्री का उपयोग करे तो उसके स्रोत की जानकारी जरूर दे। प्रचार के लिए अगर एआइ निर्मित सामग्री का उपयोग हो, तो उसमें पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
लोकतंत्र में भ्रम फैलने के मद्देनजर आयोग की यह सलाह एक जरूरी कदम है, लेकिन यह काम केवल पार्टियों के भरोसे छोड़ने के बजाय खुद आयोग को भी इस पर कड़ी नजर रखनी और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। दरअसल, एआइ यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे कई क्षेत्रों में कामकाज आसान हो रहा है, मगर इसका दुरुपयोग भी कई स्तरों पर होने लगा है।
हाल के दिनों में ‘डीपफेक’ के जरिए कई ऐसे वीडियो बना कर जारी कर दिए गए, जिनमें किसी व्यक्ति का चेहरा इस्तेमाल करके उसकी आपत्तिजनक छवि परोसी गई। चूंकि आम लोगों के भीतर अभी इस तकनीक के उपयोग और इसके प्रभाव को लेकर पर्याप्त स्तर पर परिपक्व समझ नहीं बनी है, इसलिए कई बार इसके जरिए गलत धारणा का प्रसार होता है। विडंबना है कि इस माध्यम का उपयोग केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जनमत निर्माण के लिए भी किया जाने लगा है। एआइ का सहारा लेकर ऐसे वीडियो बनाए जाते हैं, जिसका कोई आधार नहीं होता या जिनमें सच्चाई नहीं होती, मगर वे सच होने का भ्रम पैदा करते हैं।
