पिछले दो महीने में दूसरी बार रेपो दर में कमी करके रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का संकेत दिया है। केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर में इस बार भी चौथाई फीसद की कटौती की है। इससे पहले फरवरी में भी इसमें इतनी ही कमी की गई थी। यों तो मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था के तमाम महत्त्वपूर्ण पक्षों को प्रभावित करती है, लेकिन आम लोगों को मौद्रिक नीति समीक्षा का इंतजार इसलिए रहता है कि इसी को आधार बना कर व्यावसायिक बैंक कर्ज की दरें तय करते हैं। जाहिर है, अगर रेपो रेट कम होती है तो व्यावसायिक बैंकों पर भी कर्ज सस्ता करने का दबाव होगा। हालांकि पिछले पूरे साल में रेपो दर को लेकर रिजर्व बैंक ने सख्त रुख अपनाया था। लेकिन पिछले तीन-चार महीने में हालात सुधरे हैं और महंगाई की दर चार फीसद से नीचे रही है। इसलिए रिजर्व बैंक ने रेपो दर कम कर आर्थिकी को रफ्तार देने की कोशिश की है।
मौद्रिक नीति समिति के चार सदस्यों ने रेपो दर कम करने, जबकि दो सदस्यों ने इसे स्थिर बनाए रखने के पक्ष मत दिया था। यह इस बात का संकेत माना जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था की भविष्य की चुनौतियों को लेकर केंद्रीय बैंक में कहीं न कहीं बड़ी चिंताएं भी शामिल हैं। भारत की अर्थव्यवस्था के संकेतक कोई उत्साहजनक तस्वीर पेश नहीं कर रहे हैं। केंद्रीय बैंक इस हकीकत को अच्छी तरह समझ रहा है। उद्योगों की दशा संतोषजनक नहीं है, औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार सुस्त है, सेवा क्षेत्र से भी अच्छे नतीजे नहीं आ रहे, विमानन क्षेत्र संकट में है, निर्यातकों का दम फूल रहा है और सबसे बड़ी बात यह कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम स्थिर नहीं है। इसके अलावा मानसून और वित्तीय बाजार को लेकर बनी अनिश्चितता व राजकोषीय असंतुलन के खतरे को भी केंद्रीय बैंक भांप रहा है। इन सबका मिला-जुला असर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बना हुआ है। इसीलिए मौद्रिक नीति समिति ने आर्थिक विकास दर के अनुमान को भी 7.4 से घटा कर 7.2 फीसद कर दिया है। कुछ महीनों से वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से मंदी आने की आशंका व्यक्त की जा रही है। यह भारत के लिए भी गंभीर चिंता पैदा करने वाली है।
ऐसे में रिजर्व बैंक ने जो सधे हुए कदम उठाए हैं उनका पहला मकसद यही है कि व्यावसायिक बैंक कर्ज सस्ते करें, जिससे बाजार में पैसा आए और आर्थिकी का चक्र गति पकड़े। लेकिन व्यावसायिक बैंकों का रवैया हैरान करने वाला है। दरअसल, ये बैंक नीतिगत दरों में कटौती का पूरा लाभ ग्राहकों को नहीं दे रहे हैं। इससे रिजर्व बैंक की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। फरवरी में केंद्रीय बैंक ने जब नीतिगत दरें घटाई थीं, तब ज्यादातर बैंकों ने अपने यहां ब्याज दरें नहीं घटार्इं और कर्ज को महंगा बनाए रखा। जिन्होंने कटौती की भी तो नाममात्र की, जो ग्राहकों के लिए लाभ के रूप में बेअसर ही साबित हुई। बैंक इस कोशिश में लगे हैं कि वे रेपो दर में कटौती का लाभ ग्राहकों को देने के बजाय इसका फायदा अपनी लागत कम करने और एनपीए की भरपाई करने में उठा लें। ऐसे में रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चितकरना होगा कि नीतिगत दरों में कटौती का सीधा लाभ ग्राहकों को दिलवाने के बैंकों पर दबाव बनाए। वरना कर्ज के अभाव में छोटे और मझौले उद्योगों की सांस फूलती रहेगी। मकान, गाड़ी या अन्य जरूरतों के लिए कर्ज लेने वाले हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे, रियल एस्टेट की मंदी कई क्षेत्रों पर असर डालेगी।