यह एक बड़ी विडंबना है कि जिस देश में कुछ पालतू पशुओं और मनुष्यों का सदियों से नाता रहा है और जिनके एक कुशल और भरोसेमंद साथी होने के कई किस्से प्रचलित रहे हैं, वहां पशुओं के प्रति क्रूरता की घटनाएं क्षोभ पैदा करती हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुरैना और भिंड जिले में कुत्तों से हुई बर्बरता से साफ है कि जानवरों के प्रति दया की भावना गुम हो गई है। भिंड में लाठी-डंडे से पीट-पीट कर तीन मासूम पिल्लों की इसलिए जान ले ली गई, क्योंकि ये एक घर के बाहर बैठे थे।

पशुओं से जिस तरह क्रूरता हो रही है, उससे तो लगता है कि लोगों में संवेदना और करुणा का लोप हो गया है। जानवरों से बेरहमी करने वाला व्यक्ति समाज के लिए कितना हिंसक हो सकता है, अब इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस मसले पर ज्यादातर शोधों का यह निष्कर्ष है कि पशुओं से हैवानियत और मनुष्यों के प्रति हिंसा के बीच गहरा संबंध है। हमें यह समझना चाहिए कि जो व्यक्ति पशुओं के प्रति क्रूर हो सकता है, वह समाज के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं में हिंसक हो सकता है और वह किसी को भी निशाना बना सकता है।

एक अध्ययन में पाया गया है कि पशुओं से दुर्व्यवहार करने वालों द्वारा अन्य मनुष्यों को नुकसान पहुंचाने की संभावना पांच गुना होती है। पशुओं से हिंसा करने वाले प्राय: महिलाओं और बच्चों से शारीरिक दुर्व्यवहार करते पाए गए हैं। हमारे यहां कुछ पालतू पशुओं की देखभाल की परंपरा रही है। मगर अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें बिल्लियों-कुत्तों और सांडों और अन्य पशुओं के साथ क्रूर बर्ताव होता रहा है।

केरल में कुछ वर्ष पहले एक हथिनी की विस्फोटक से भरा अनानास खाने से हुई मौत ने मानवता पर कई सवाल खड़े किए थे। सवाल है कि कोई जानवर आक्रामक हो रहा है, तो इसके कारणों को जानना चाहिए। गलियों में किसी अनजान व्यक्ति को देख कर कुत्तों का भौंकना स्वाभाविक है। उन्हें मारने-पीटने के बजाय अगर थोड़ी भी करुणा होती, तो लोग कोई दूसरा उपाय करते। लोगों के भीतर इस तरह संवेदना का लोप होने का असर मनुष्यों के बीच पारस्परिक संबंधों पर भी पड़ रहा है।