कुछ समय पहले देश के भीतर अपने गंतव्य तक जाने के लिए विमान से सफर को वैसे कुछ लोगों ने भी एक विकल्प के रूप में चुनना शुरू कर दिया था, जो लंबी दूरी की यात्रा आमतौर पर रेलगाड़ियों और बसों से करते थे। समृद्ध तबकों के अलावा अगर आम लोगों को भी विमान ने आकर्षित करना शुरू कर दिया था, तो इसकी मुख्य वजह यह थी कि विमान सेवा में प्रतिद्वंद्विता बढ़ने या फिर अन्य कारणों से किराए की दरें कम होने के बाद उस तक एक बड़े तबके की पहुंच संभव हो पा रही थी।

विमान सेवा अब तेजी से बेहद महंगी और बहुत लोगों की पहुंच से बाहर हो रही

इसी संदर्भ में कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि मैं हवाई चप्पल पहनने वाले लोगों को भी हवाई जहाज से सफर करते देखना चाहता हूं। विमान यात्रा के किराए अपनी सीमा में होने की वजह से कुछ लोगों ने हवाई जहाज से सफर किया भी। मगर कुछ समय तक किराए की वजह से यात्रा के लिए अपनी ओर आकर्षित करने वाली विमान सेवा अब तेजी से बेहद महंगी और बहुत सारे लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है।

गौरतलब है कि संसद की लोक लेखा समिति यानी पीएसी की बैठक में बुधवार को आसमान छू रहे विमान किराए के अलावा सरकारी एजंसियों और विनियामक की ओर से बहुत कम कार्रवाई पर चिंता जताई गई। इस दौरान कई सांसदों ने यात्रियों को राहत पहुंचाने के लिए निजी हवाई अड्डा संचालकों और विमानन कंपनियों से जिम्मेदारी तय करने की मांग की। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों के कारण से किराए में इजाफे का पक्ष छोड़ दिया जाए, तो हवाई सफर के किराए में अन्य वजहों से बढ़ोतरी के कारक छिपे नहीं रहे हैं। जैसे ही ट्रेन या अन्य परिवहन माध्यमों पर लोगों की भीड़ का दबाव बढ़ने लगता है, विमान यात्रा का किराया भी उसी मुताबिक आसमान छूने लगता है।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर हवाई जहाज से सफर की ऊंची कीमतों में ऐसी ही निरंतरता बनी रही तो आने वाले दिनों में यह सिर्फ खास लोगों तक सीमित रहेगा और आम लोग इसकी पहुंच के दायरे से बाहर होते जाएंगे। यह बेवजह नहीं है कि उपयोगकर्ता विकास शुल्क में ‘मनमाने ढंग से’ वृद्धि पर नाखुशी जताए जाने के बीच किराए को नियंत्रित या विनियमित करने की भी मांग उठ रही है।