लेकिन पाकिस्तान ने इस तरह के आरोपों पर कभी गंभीरता से बात नहीं की और न इस व्यापक समस्या के हल में सहयोग के लिए कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उलटे वह भारत की ओर से उठे सवालों को खारिज करता रहा है। जबकि आए दिन ऐसे तथ्य सामने आते रहे, जिसमें यह बार-बार उजागर हुआ कि खासतौर पर भारत में आतंकवाद की जटिल समस्या के पीछे उन आतंकी गिरोहों का हाथ है, जो पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां चलाते हैं।

खासतौर पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने अलग-अलग चेहरों में भारत में आतंक फैलाने की लगातार कोशिश की है। इसी के मद्देनजर भारत ने वैश्विक समुदाय से पाकिस्तान में संरक्षण हासिल करके बैठे कुछ प्रमुख आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की मांग बार-बार उठाई। लेकिन पाकिस्तान की आनाकानी और चीन के नाहक हस्तक्षेप की वजह से अब तक इस दिशा में कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी थी।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनिया के ज्यादातर देश भारत के पक्ष और उसकी समस्या को समझते रहे, फिर भी प्रक्रियागत जटिलताओं का लाभ पाकिस्तान को मिलता रहा। मगर सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तान स्थित आतंकी और हाफिज सईद के करीबी रिश्तेदार अब्दुल रहमान मक्की को अपनी आइएसआइएल (दाएश) और अलकायदा प्रतिबंध समिति के तहत वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। एक अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्था होने के नाते भले अब जाकर संयुक्त राष्ट्र की ओर से यह कदम उठाया गया है, लेकिन सच यह है कि भारत अरसे से ऐसे कई आतंकियों पर पाबंदी लगाने के लिए आवाज उठाता आया है।

पिछले साल जून में भी अमेरिका और भारत ने सुरक्षा परिषद में यह संयुक्त प्रस्ताव रखा था कि आतंकी मक्की को प्रतिबंधित सूची में शामिल किया जाए। लेकिन आखिरी वक्त में चीन ने अपनी विशेष शक्ति की प्रयोग करके इस प्रस्ताव को रोक दिया था। तब भी चीन की खासी आलोचना हुई थी। अब वैश्विक स्तर पर नए परिदृश्य में दबाव बनने और पर्याप्त सबूत उजागर होने के बाद इस बार चीन को भी अपने हाथ पीछे खींचने पड़े।

जाहिर है, यह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के मसले पर भारत के पक्ष की पुष्टि है। मगर विडंबना यह है कि भारत की ओर से उठाए गए सवालों पर पाकिस्तान और उसका साथ देने वाले चीन को समय रहते विचार करना जरूरी नहीं लगा था। जबकि लंबे समय से ऐसे तथ्य दुनिया भर में सामने आते रहे कि आतंकवाद ने कैसी समस्या खड़ी की है और उसके नतीजे किस-किस रूप में सामने आ रहे हैं। विचित्र यह है कि हकीकत को झुठलाने में पाकिस्तान को कभी कोई हिचक नहीं हुई।

एक ओर वह आतंकी तत्त्वों को अपने सीमा क्षेत्र में स्थित ठिकानों से गतिविधियां संचालित करने की अनदेखी करता है और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने खुद को पीड़ित देश बता कर पेश करता है। आतंक को संरक्षण के समांतर पाकिस्तान सरकार एक अजीब तरह के ऊहापोह से गुजरती रहती है। इसी सोमवार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ बातचीत की इच्छा जाहिर की, उसी दिन उनके कार्यालय की ओर से कश्मीर मुद्दा उठा दिया गया। सवाल है कि ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की इस इच्छा को कैसे देखा जाएगा कि हम शांति से रहना चाहते हैं और अपनी समस्याओं को सुलझाना चाहते हैं!