उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा धंस जाने से चालीस मजदूर उसमें फंस गए हैं। हालांकि बताया जा रहा है कि सभी मजदूर जीवित हैं और उन्हें जल्दी ही सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा। मगर इस हादसे के बाद एक बार फिर उत्तराखंड में चल रहे विकास कार्यों और पहाड़ों को काट कर किए जा रहे निर्माण आदि को लेकर स्वाभाविक रूप से सवाल उठने लगे हैं। बताया जा रहा है कि इस साल मार्च में भी इस सुरंग का एक हिस्सा धंस गया था, मगर गनीमत है, उसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
सुरंग ‘आल वेदर रोड’ परियोजना का हिस्सा है, जो गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ती है
यह हादसा भूस्खलन की वजह से हुआ। सुरंग का करीब पंद्रह मीटर हिस्सा धंस गया। यह सुरंग ‘आल वेदर रोड’ परियोजना का हिस्सा है, जो गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ती है। इस सुरंग की लंबाई करीब साढ़े चार किलोमीटर बताई जा रही है, जिसका करीब चार किलोमीटर हिस्सा बन कर तैयार हो गया है। इस सुरंग के बनने के बाद यात्रियों को छब्बीस किलोमीटर दूरी कम तय करनी पड़ेगी। दावा किया जा रहा है कि इससे लोगों का काफी वक्त और पैसा बचेगा। वस्तुओं और सेवाओं की पहुंच तेज होगी। सैलानियों और श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ेगी और स्थानीय लोगों के लिए कारोबार तथा रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
विकास के रास्ते खोलने के लिए सड़कों का बनना बहुत जरूरी होता है
निस्संदेह बुनियादी ढांचे के विकास से आर्थिक तरक्की के रास्ते खुलते हैं। इसलिए पिछले कुछ सालों से सड़कों के विस्तार पर जोर दिया जा रहा है। उन्हें तेज रफ्तार और भारी वाहनों के लायक बनाया जा रहा है। चूंकि पहाड़ी इलाकों तक विकास कार्यों की पहुंच मंद पड़ी हुई थी, जिसके चलते वहां के लोगों के सामने रोजगार का संकट बड़ा मुद्दा था। खासकर उत्तराखंड में इसके चलते काफी बड़ी तादाद में पलायन होने लगा। इसके मद्देनजर वहां अनेक विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। कंपनियों को अपने उद्यम शुरू करने को प्रोत्साहित किया जाने लगा। बड़े पैमाने पर होटल खुले, पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से अनेक गतिविधियां शुरू की गईं।
मगर इन्हें तभी अधिक गति मिल सकती है, जब उन जगहों तक आवागमन सुविधाजनक हो। इसलिए सड़कों को विस्तृत करने की परियोजना शुरू की गई। ‘आल वेदर रोड’ सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है। हालांकि तमाम पर्यावरणविद शुरू से विरोध करते रहे हैं कि इस परियोजना के चलते पहाड़ों पर भूस्खलन बढ़ेगा। उत्तराखंड के पहाड़ पहले ही जर्जर हो चुके हैं। हल्का कंपन भी उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इस तर्क के साथ परियोजना को रोकने की अदालत में गुहार लगाई गई, मगर वह विफल रही।
विकास परियोजनाओं और अंधाधुंध निर्माण कार्यों के चलते उत्तराखंड पिछले कुछ सालों में कई भयावह आपदाएं झेल चुका है। पहाड़ों के धंसने और दरकने से सैकड़ों लोगों को बेघर होना पड़ा है। इसके बावजूद हैरानी है कि सड़क बनाने की योजना पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं समझी गई। सुरंग खोदने के लिए जिस तरह की भारी मशीनों का उपयोग किया जाता है, उनके कंपन से पूरा पहाड़ हिल जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ उसे सहन कर सकने के लायक नहीं हैं।
सड़कों और पनबिजली परियोजनाओं की वजह से पहाड़ इस कदर भंगुर हो चुके हैं कि मामूली तेज बरसात में भी भरभरा कर गिरने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में सुरंग बन कर तैयार हो भी जाए, मुसाफिरों को कुछ दूरी कम तय करनी पड़े, आने-जाने में बेशक कम वक्त खर्च हो, पर जब पहाड़ ही नहीं बचेंगे, तो स्थानीय लोगों को इन परियोजनाओं का आखिर हासिल क्या होगा।