पिछले कुछ समय से समाज के आम व्यवहार में जिस तरह की प्रवृत्तियां घुलती जा रही हैं, उसमें ऐसा लगने लगा है कि लोगों के भीतर इस तरह के मूल्यों की जगह बहुत कम हो रही है। बेहद मामूली बातों पर भी जिस तरह न केवल आक्रामक और हिंसक हो जाने, बल्कि पीट-पीट कर हत्या तक कर देने जैसे मामले सामने आ रहे हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि लोगों के लिए विवेक का इस्तेमाल करना अब कोई जरूरी बात नहीं रह गई है।

गौरतलब है कि दिल्ली के वजीराबाद इलाके में राह चलते दो लोग आपस में टकरा भर गए। सभ्य होने का तकाजा यह था कि ऐसी स्थिति में दोनों को एक दूसरे से सौहार्द के लहजे में माफी मांग कर आगे बढ़ जाना चाहिए था। लेकिन इसके उलट एक व्यक्ति इस हद तक आक्रामक हो गया कि उसने दूसरे की पीट-पीट कर हत्या कर दी। दिल्ली के ही द्वारका इलाके में हुई दूसरी घटना में भी अभद्र भाषा को लेकर एक व्यक्ति के साथ कुछ लोगों की बहस हो गई और वहां भी आरोपियों ने उसे पीट-पीट कर मार डाला।

दिल्ली में हुई ये दोनों घटनाएं आए दिन देश भर में सामने आने वाले वाकयों की एक कड़ी भर हैं। सड़क पर वाहन चलाते हुए या गली-मोहल्ले में चलते या आस-पड़ोस में किसी बहुत साधारण बात पर दो पक्षों के बीच विवाद शुरू होता है और वह किसी समाधान पर पहुंचने के बजाय एक त्रासदी में खत्म होता है।

सवाल है कि क्या लोगों के पास विवेक का इस कदर अभाव हो गया है कि वे बहुत छोटी बातों का भी हल निकाल पाने में नाकाम हो रहे हैं और किसी की हत्या कर देना ही उन्हें अकेला उपाय लगता है! अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सिर्फ आपस में टकरा जाने या किसी से वाहन छू जाने भर के बाद बेलगाम हिंसक रुख अख्तियार कर लेने वाले के भीतर इतना समझ पाने का भी विवेक नहीं बचता कि आवेश में आकर वह जो कर रहा है, उसका हासिल क्या होगा और उसके बाद उसे किन परिस्थितियों का सामना कर पड़ सकता है।

किसी व्यक्ति या समाज के सभ्य होने की कसौटी यही होती है कि उसमें लोग अपने आम व्यवहार को लेकर संयत रहें, सामान्य स्थितियों में सबके साथ सलीके से पेश आएं और प्रतिक्रिया की जरूरत पड़ने पर धीरज के साथ पहले विवेक का प्रयोग करें। संवाद और सौहार्द ऐसा जरिया हैं, जो गंभीर और जटिल समस्याओं का भी हल निकाल सकते हैं। विडंबना यह है कि एक ओर अमूमन हर स्तर पर आधुनिक होने का दम भरने में कोई कमी नहीं की जाती और दूसरी ओर बहुत सारे लोगों के भीतर बर्ताव का सलीका गायब होता जा रहा है।

हालत यह है कि मामूली बातों पर भी कुछ लोग इस कदर आपस में युद्ध के दुश्मन की तरह हिंसक हो जाते हैं कि नाहक ही किसी की जान तक चली जाती है। जबकि अगर कोई बात असहमति से आगे बढ़ कर विवाद के रूप में तब्दील होती दिखे तो व्यक्ति अपने विवेक का इस्तेमाल करके उसका समाधान आसानी से निकाल सकता है।

इसके लिए बस अपने आप पर भरोसा और धीरज का होना जरूरी है। लेकिन अक्सर ऐसे मामले देखे जा सकते हैं, जिनमें लोग अहं और अविवेक का शिकार होकर आक्रामक और हिंसक रुख अख्तियार कर लेते हैं। नतीजतन, किसी की हत्या हो जाती है और इसका दोषी अपनी जिंदगी का बड़ा और अहम हिस्सा जेल की सजा काटते हुए बिताता है।