आतंकवाद के खिलाफ भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) मिल कर काम करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। यूएई से संकल्प में आतंकवाद को धर्म से जिस तरह अलग कर दिया गया है, पाकिस्तान को परेशानी होनी शुरू हो गई है। पाकिस्तान को सबसे नागवार यह गुजरा है कि उसे संयुक्त अरब अमीरात की सरजमीं से आतंकवाद का सरपरस्त घोषित किया गया है। ऐसा नहीं लगता कि पाकिस्तान यूएई को ‘डी-कंपनी’ से जुड़ी सूचनाओं को पुख्ता करने में मदद देगा।
पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और सेना के कई बड़े लोगों के पैसे डी-कंपनी के साथ यूएई में लगे हैं। खासकर अधोसंरचना और द्वीपों की खरीद में उनके काले धन निवेश किए गए हैं, उन संपत्तियों को जब्त करने से रोकने के लिए इस्लामाबाद से दबाव बनना शुरू हो जाएगा। पाकिस्तानी सांसद नवाज शरीफ सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि यमन में अशांति को दूर करने के वास्ते वह यूएई को सहयोग न करे।
पंद्रह साल पहले सीबीआइ ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पर आरोप लगाया था कि मुंबई अंडरवर्ल्ड के जो लोग दुबई में हैं, उनकी धर-पकड़ में वहां की सरकार सहयोग नहीं कर रही है। सीबीआइ ने नवंबर 2001 में ऐसे बारह सरगनाओं की सूची यूएई अधिकारियों को दी थी, जिसमें उनके नाम, पते और फोन नंबर तक थे। इनमें दाऊद इब्राहीम, उसका छोटा भाई अनीस इब्राहीम कासकर, मोहम्मद अहमद दौसा, अबू सलेम और इजाह मोहम्मद शरीफ जैसे नाम शामिल थे। बाद के दिनों में दाऊद कराची जा चुका था, लेकिन दाऊद खुद और उसके गिरोह के लोग अब भी हर छह महीने पर कराची से दुबई वीजा बढ़वाने और अपने अरबों डॉलर की संपत्ति का हिसाब-किताब देखने आते हैं। अबू सलेम और उसकी बीवी समीरा जुमानी को 1997 में दुबई पुलिस ने पकड़ा था, लेकिन सीबीआइ द्वारा सारे सुबूत, फिंगरप्रिंट देने के बाद भी यूएई के अधिकारियों ने दोनों को दुबई से पुर्तगाल निकल जाने दिया था।
दुबई के मून प्लाजा होटल में पांच दिसंबर, 2002 को अनीस इब्राहीम कुछेक वेश्याओं के साथ पकड़ा गया। संसद में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अनीस इब्राहीम के पकड़े जाने की पुष्टि की थी। उसके बाद अनीस कराची कैसे पहुंच गया, इसका जवाब देश को नहीं मिल पाया। छह जून, 2009 को खबर मिली कि कराची में किसी ने अनीस को गोली मार दी है। इतने तथ्यों के बाद अब यह साबित करना बाकी नहीं रह जाता कि मुंबई अंडरवर्ल्ड का साम्राज्य दुबई से कराची तक फैला हुआ है। इस बार भारत ने जो डोजियर यूएई को सौंपा है, उससे पूरी उम्मीद बंधी है कि डी-कंपनी को घेरने में हमारी खुफिया एजेंसियों को सफलता मिलेगी। इसकी वजह यूएई से आतंकवाद पर सूचनाएं साझा करने के वास्ते हुआ समझौता है। फिर भी जब तक दाऊद इब्राहीम, टाइगर मेमन, जकीउर रहमान लखवी जैसे आतंकी गिरफ्त में नहीं आते, आतंकवाद को सही मायने में कुचला जाना नहीं मानना चाहिए।
इससे पूर्व यूएई ने कई मौकों पर आतंकवाद के विरुद्ध अभियान में भारत का सहयोग किया है। 24 अगस्त, 1984 को इंडियन एअरलाइंस के विमान का अपचालन करने वाले आठ ‘हाइजैकर्स’ को यूएई ने भारत को सौंपा था। इराक में भारतीय बंधकों को छुड़ाने में यूएई की मदद मिली थी। आतंकवाद समाप्ति को लेकर संयुक्त अरब अमीरात सचमुच संवेदनशील है, यह उसकी घोषणाओं और संकल्पों से झलक रहा है।
बयासी संगठनों को यूएई ने आतंकवादी घोषित किया है, उनमें दो भारत के ‘इंडियन मुजाहिद्दीन इन कश्मीर’ और ‘मोहम्मद आर्मी ऑल इंडिया’, और पाकिस्तान के चार आतंकवादी संगठन हैं। पाकिस्तान के आतंकी संगठनों में मोहम्मद आर्मी आॅफ पाकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, ‘इस्टर्न टर्किश इस्लामिक मूवमेंट इन पाकिस्तान’ और लश्करे तैयबा हैं, जिन्हें यूएई ने काली सूची में डाल रखा है। 26/11 मुंबई हमले के जिम्मेदार लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों को पाकिस्तान कैसे बचा रहा है, उसका पता यूएई को भी है। दुबई के अधिकारी जानते हैं कि 1993 मुंबई धमाकों का मुख्य अभियुक्त टाइगर मेमन, दाऊद की तरह यूएई जाकर वीजा की अवधि बढ़वाता है।
प्रधानमंत्री मोदी की यूएई यात्रा पर सबसे तिरछी नजर पाकिस्तान की थी। यूएई में प्रवासी पाकिस्तानी बारह लाख के आसपास हैं, जबकि भारतीय छब्बीस लाख। सऊदी अरब और ब्रिटेन के बाद यूएई ऐसा मुल्क है, जहां पाकिस्तानी बड़ी तादाद में हैं। एक दिसंबर, 1971 को ब्रिटेन से आजाद हुए संयुक्त अरब अमीरात को सबसे पहले पाकिस्तान ने मान्यता दी थी। दोनों मित्र देश हैं। 2014 में पाकिस्तान-यूएई के बीच मात्र नौ अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। जबकि भारत-यूएई के बीच व्यापार इस साल साठ अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर जाएगा। अबूधाबी में मंदिर बनाने की घोषणा कर संयुक्त अरब अमीरात ने इसका सुबूत पेश किया है कि यह देश दूसरे समुदाय की धार्मिक भावनाओं का आदर करता है।
पाकिस्तान को इसे लेकर कष्ट है, और इस बात को लेकर संभव है कि वह इस्लामी देशों के संगठन ‘ओआइसी’ को उकसाए। पाकिस्तान के लिए यह कुंठा का कारण है कि इतने सारे पापड़ बेलने के बाद भी वह भारत के मुकाबले यूएई से बढ़-चढ़ कर व्यापार नहीं कर सका। यूएई में अधोसंरचना से लेकर स्वास्थ्य सेवा और श्रम-कार्यों तक पर भारतीयों का वर्चस्व है।
‘इंडियन सुपर हंड्रेड’ सौ एनआरआइ उद्योगपतियों की ऐसी ‘सक्सेस स्टोरी’ है, जिन्होंने संयुक्त अरब अमीरात में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं। स्टेट बैंक आॅफ इंडिया ने शरिया आधारित म्युचुअल फंड की योजना बनाई है। मुंबई शेयर बाजार ने भी पहला ‘शरिया इंडेक्स’ शुरू किया है, इससे मध्यपूर्व से लेकर भारत तक करोड़ों मुसलमान ग्राहक और करीब सात सौ इस्लामी कंपनियां दिलचस्पी लेंगी, ऐसी उम्मीद की जाती है। ॉ
यूएई 2030 तक भारत को निर्यात के लिए सबसे पसंदीदा देश बनाए रखेगा, यानी निर्यात के लिए भारत के मुकाबले, जापान और चीन दूसरे-तीसरे नंबर रहेंगे, ऐसा संकेत मिल रहा है। जनवरी 2015 तक संयुक्त अरब अमीरात ने भारत में आठ अरब डॉलर का निवेश कर रखा था, उसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) 3.01 अरब डॉलर का है, बाकी सारा ‘पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट’ है। यूएई एक्सचेंज के अध्यक्ष सुधीर शेट्टी के अनुसार, ‘भारत में यूएई का निवेश मुख्यत: पांच क्षेत्रों अधोसंरचना, विद्युत, धातु उद्योग, सर्विस सेक्टर, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में किया गया है।’ यूएई से भारत में 4.50 लाख करोड़ का निवेश किन-किन इलाकों में करना है, सरकार को चाहिए कि उसकी रूपरेखा देश के समक्ष रखे।
मोदीजी यूएई के निवेशकों से क्या चाहते थे, उसकी बानगी प्रदूषण-मुक्त मसदर सिटी में मिली। वहां सोमवार को व्यापारिक जगत के दिग्गजों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘रेलवे में सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दरवाजे खोल दिए गए हैं। प्रतिरक्षा में सौ फीसद निवेश की संभावना है, 2022 तक पांच करोड़ सस्ते घर बनाना है, क्वालिटी होम भी बनाना है।
हिंदुस्तान के पांच सौ रेलवे स्टेशनों पर मॉल, होटल बनाए जा सकते हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि तीस प्रतिशत कृषि उत्पादों को नष्ट होने से बचाना है, उसे भूखों, गरीबों को देना है। बंदरगाहों का विकास करना है, उसे रेल, सड़क से जोड़ना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि रेगिस्तान को देखने लायक बनाने वाले उद्योगपति भारत में पर्यटन को आगे बढ़ा सकते हैं। आप सब अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करें, ताकि पर्यावरण संरक्षित रहे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘भारत में एक खरब डॉलर के निवेश की संभावना है।’
वैसे, वाणिज्यमंत्री निर्मला सीतारमण के यूएई जाने के बाद ही पता चलेगा कि वहां के उद्योग जगत ने कितना समर्थन दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस सरकारों का नाम लिए बिना उसके ‘लुंजपुंज, ढीले रवैए’ को कोसते हुए कहा कि हमने चौंतीस साल क्यों गंवा दिए, उसकी ‘शर्मिंदगी’ है। प्रधानमंत्री मोदी सोल और शंघाई के बाद तीसरी बार विदेशी मंच पर ‘शर्मिंदा’ हुए हैं। लेकिन क्या वास्तव में हमें चौंतीस साल के लिए लज्जित होने की जरूरत है? क्या बिना कूटनीतिक प्रयासों के भारत-यूएई का आपसी व्यापार 2014-15 में उनसठ अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया? चीन और अमेरिका के बाद भारत, यूएई का तीसरा व्यापारिक साझेदार है, तो इसे छोटी उपलब्धि नहीं माना जाना चाहिए। ऐसी उपलब्धियां एक दिन में प्राप्त नहीं होतीं। यह चौंतीस वर्षों के निरंतर प्रयासों का प्रतिफल है, जिसमें देश के ग्यारह पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों का योगदान रहा है। इसे ध्यान में रखने की जरूरत है कि जनवरी 2014 में भारत-यूएई ने सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के लिए समझौता किया था।
यूएई, भारतीय वस्तुओं को बाहर के बाजार में भेजने के वास्ते ‘ट्रेड कॉरीडोर’ का काम कर रहा है। खाड़ी, पश्चिम अफ्रीका, मध्य एशिया के देश, ईरान, अफगानिस्तान तक भारतीय माल, संयुक्त अरब अमीरात के बरास्ते जा रहे हैं। यूएई के निवेशकों को भारत लाने के लिए 24 नवंबर, 2014 को उभयपक्षीय निवेश सुरक्षा समझौता (बीआइपीपीए), और दोहरे कराधान से बचाव का समझौता (डीटीएए) किए गए। एक बात जरूर है कि ऐसे समझौते पिछली सरकार में हुए होते, तो देश को उसका लाभ और मिल सकता था। ऐसा पहली बार हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी और उनके यूएई समकक्ष शेख मोहम्मद बिन रशीद अल मख्तूम से समग्र रणनीतिक सहयोग पर बात हुई। इस समझौते में पचहत्तर अरब डॉलर का अधोसंरचना कोष बनाने, ऊर्जा और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बड़ी उपलब्धि मानना चाहिए!