जातीय हिंसा से त्रस्त घायल मणिपुर को समाधान का इंतजार है। मणिपुर जलता रहा और हल ढूंढने में न तो केंद्र ने और न ही राज्य की सरकार ने कभी राजनीतिक इच्छाशक्ति का इजहार किया। वहां हालात बेहद खराब रहे हैं। गृह मंत्रालय की ताजा रपट से यह स्पष्ट है। वर्ष 2023 में समूचे पूर्वोत्तर क्षेत्र में हुई हिंसा में से 77 फीसद घटनाएं मणिपुर में हुईं। वहां बहुसंख्यक मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा में सैकड़ों नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान गई।
मणिपुर में हुए महिलाओं पर अत्याचार ने सभ्य समाज के मुंह मारा तमाचा
महिलाओं पर अत्याचार के जिस तरह के वीडियो आए, वे किसी भी सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा थे। वहां तीन मई, 2023 को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा भड़क उठी। हिंसा का दौर अभी भी जारी है। जबकि सरकार का दावा है कि बीते कुछ महीनों से स्थिति नियंत्रण में है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अब जाकर राज्य में हुए जातीय संघर्ष के लिए माफी मांगी है और सभी समुदायों से पिछली गलतियों को भूलने तथा एक साथ रहने की अपील की है। प्रदेश में हुए जातीय संघर्ष में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
मणिपुर हिंसा पर बीरेन सिंह या केंद्र की सरकार के स्तर पर रही चुप्पी
यह याद रखा जाएगा कि जब मणिपुर में हिंसा की कई घटनाएं राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं, तब बीरेन सिंह या केंद्र की सरकार के स्तर पर चुप्पी रही। विपक्षी कांग्रेस तो अब तक यह सवाल पूछ रही है कि प्रधानमंत्री मणिपुर को लेकर चुप क्यों हैं? वे दुनिया भर की यात्रा कर रहे हैं, लेकिन मणिपुर जाने से परहेज क्यों करते हैं। दरअसल, वहां की स्थिति से निपटने में अक्षमता के बावजूद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह सत्ता में बने रहे, उनकी पार्टी उनके साथ हठपूर्वक खड़ी रही।
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इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हुई। अब जबकि, वहां का समाज बुरी तरह से बंट गया और समरसता दूर की कौड़ी हो गई है, बीरेन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। केंद्र सरकार ने वहां के लोगों को भरोसे में लिए बगैर दो फैसले लिए, जो विवादित रहे, भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाना और मुक्त आवागमन व्यवस्था खत्म करना। इन फैसलों का मणिपुर में कई आदिवासी संगठनों ने विरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: लिया था संज्ञान
सर्वोच्च न्यायालय ने वहां की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए निगरानी और जांच समितियां गठित कर दी थीं। उसमें बाहरी राज्यों के पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया। उम्मीद बनी थी कि हिंसा की हकीकत जल्द ही सामने आएगी। मणिपुर कोई इतना बड़ा और जटिल राज्य नहीं है कि वहां की स्थितियों से निपटना मुश्किल हो। विवाद भी एक भ्रम की वजह से पैदा हुआ था। अगर सरकार संजीदा होती, तो दोनों समुदाय के लोगों को आमने-सामने बिठा कर मसले का हल निकाल चुकी होती।
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कोई भी कल्याणकारी सरकार इस तरह पैदा हो गई गृहयुद्ध जैसी स्थिति को हाथ पर हाथ धरे कैसे देख सकती है? शांति बहाली के लिए सभी पक्षकारों का आम सहमति पर आना जरूरी है। वहां जिस तरह से विवाद में जंगल और जमीन का मुद्दा, अवैध प्रवासियों की समस्या, नशीले पदार्थों की तस्करी का जाल और दूसरे कानूनी पहलू उभरते चले गए हैं, उससे स्पष्ट है कि गतिरोध कई मोर्चे पर है और इन सभी पर काम किए जाने की जरूरत है। भावनात्मक बातों से काम नहीं चलेगा। संवेदनशीलता के साथ गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।