हमारे यहां पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को आमतौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता। यहां तक कि अवैध खनन को रोकने के बजाय कई बार सरकारें इसमें मददगार की भूमिका में दिखती हैं और सर्वोच्च अदालत के आदेशों की भी परवाह नहीं करतीं। ताजा मामला सरिस्का के आसपास के इलाकों में खनन का है, जिसके कारण राजस्थान सरकार कठघरे में है। विडंबना यह है कि सरिस्का बाघ अभयारण्य और जमुआ रामगढ़ अभयारण्य के चारों ओर एक निश्चित दायरे में खनन पर रोक के लिए जहां राज्य सरकार को नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह नियम-कायदों में ढील देने की कोशिश में लगी है। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से केंद्रीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने इस पर राजस्थान सरकार को उचित ही कड़ी फटकार लगाई है और कहा है कि वह अदालत के आदेशों को धता बता कर सरिस्का अभयारण्य के आसपास हो रहे खनन पर तत्काल रोक लगाए और इस खनन के लिए जिम्मेवार अफसरों के नाम बताए, ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आसपास खनन के मसले पर सर्वोच्च अदालत ने अगस्त 2006 में ही यह फैसला दिया था कि इन स्थलों के चारों ओर एक किलोमीटर के दायरे को ‘सुरक्षित क्षेत्र’ माना जाए। छह महीने पहले गोवा में खनन से जुड़े मामले में भी अदालत ने उसी फैसले को बहाल रखा। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार और उसके अधिकारियों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश भी मायने नहीं रखते। राजस्थान में पिछले साल दिसंबर में जिस दिन विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ, उसके तीसरे ही दिन राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में सरिस्का बाघ अभयारण्य और जमुआ रामगढ़ अभयारण्य के एक किलोमीटर के दायरे में भी खनन की इजाजत दे दी गई। राज्य के वन विभाग के मुताबिक इन दोनों अभयारण्यों के आसपास एक किलोमीटर के दायरे में चौरासी खानें हैं, जिनसे मुख्य रूप से संगमरमर, चूना पत्थर और अबरक निकाले जाते हैं। इस इलाके में किसी भी खनन गतिविधि का न सिर्फ उस क्षेत्र में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन पर सीधा असर पड़ता है, बल्कि वहां के समूचे पर्यावरण को नुकसान होता है। करीब तीन दशक पहले सरिस्का अभयारण्य क्षेत्र के आसपास खनन और अन्य गतिविधियों के दबाव के चलते महज पांच बाघ रह गए थे।

जब भी नियम-कायदों को ताक पर रख कर होने वाले खनन पर सवाल उठाया जाता है तो यह दलील दी जाती है कि इस पर हजारों लोग रोजगार के लिए निर्भर हैं और इसके बंद होने से उनके जीवनयापन पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन इस सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझा जाता कि ऐसे इलाके में लुप्त हो जा रहे वन्यजावों के संरक्षण के कार्यक्रम का क्या मतलब रह जाएगा? वहां काम करने वाले मजदूरों और आसपास रहने वाले लोगों के बीच शरीर में दर्द, खांसी और खतरनाक बुखार जैसी बीमारियां आम हैं। लेकिन उनके लिए किसी तरह की चिकित्सा सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती। जाहिर है, इस समूचे क्षेत्र में पारिस्थितिकी संतुलन को बचाने के लिए खनन गतिविधियों पर तत्काल रोक लगाए जाने की जरूरत है। खासतौर पर तब जब इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने साफ निर्देश जारी कर रखा हो।