अनिता वर्मा
विचारों की अनवरत शृंखला के साथ कदमताल मिलाते हम आगे बढ़ते जा रहे हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के विचारों का प्रवाह रोके नहीं रुक पाता और यही स्थितियां निर्धारित करती हैं हमारा परिवेश, जो घेरे रहता है सदैव मनुष्य को प्रति क्षण। मौजूदा महामारी के दौर ने विचारों की तीव्रता को और बढ़ा दिया है। मन के कोने में विचारों की गठरी रखी हुई है, जिनसे एक-एक करके स्मृतियां बाहर निकलने को आतुर हैं। वर्तमान के साथ भूतकाल और भविष्य का चलचित्र जीवंत हो उठा है। पूर्व में घूमने, स्वच्छंद और सहजता से बिताए पल रह-रह कर स्मृतियों में तैर रहे हैं।
भविष्य के प्रति चिंता स्वाभविक है। पर इन सबके साथ जीवन को सहजता और सरलता के साथ जीना एक चुनौती भी है, जिसे हम सबको स्वीकारना जरूरी है। एक गीत की पंक्तियां याद आती हैं- ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते।’ सचमुच जीवन के हरेक पल अनमोल है। फिर भी, पता नहीं मानव मन अनेक ग्रंथियों के साथ जीवन जटिल बना लेता है और चिंता ग्रस्त होकर घूमता रहता है। सहजता और सरलता जीवन के वे आभूषण हैं, जिनसे जीवन की यह नैया आसानी से पार हो जाती है। हरेक व्यक्ति का सोचने का नजरिया भिन्न-भिन्न होता है। कई बार खुद को सही सिद्ध करने की लालसा वैचारिक मतभेद को जन्म भी दे देती है। यही समस्या का मूल कारण है जो चिंता और दुख की सघनता को बढ़ा देता है।
इन सबके बीच मैंने महसूस किया कि प्रकृति खिलखिला रही है, पत्ते चमकदार हो गए हैं, फूल विभिन्न रंगो के साथ सतरंगी आभा बिखेर रहे हैं और हम सब भयभीत मुख पर मास्क लगाए घूमने और सामाजिक दूरी बना कर जीने को मजबूर हो रहे हैं। यह इस समय जरूरी भी है। चेहरे पर मास्क है, पर अंतर्मन के भाव इस समय अनावृत्त भी हो रहे हैं। चेहरा मन का दर्पण कहा जाता है, यानी मन के भीतर की हलचल चेहरे पर ठहर जाती है, पर अब मन के भाव आंखों के भीतर समाहित हो गए हैं। चेहरा पढ़ना भी आसान नहीं होता और अब तो मास्क के साथ आंखों की भाषा को पढ़ने की कला में पारंगत होना भी आज की आवश्यकता बन गया है।
अनुभूतियों के साथ हर क्षण हमारा साक्षात्कार होता रहता है। अनुभूतियों की सघनता जब हमारे अंतर्मन को स्पर्श करती है तो अत्यंत प्रभावी होती है। विचारों के अजस्र प्रवाह में अनेक स्मृतियों के चित्र जीवंत हो उठते हैं, जिनमें कुछ तो सुखद अनुभूति के साथ उपस्थित होकर मन का कोना-कोना महका जाते हैं, तो कुछ विचार दुख के रूप में रिस पड़ते है।
यही जीवन का कटु यथार्थ है। सचमुच विचार हमारे भीतर निरंतर उमड़ते -घुमड़ते रहते है। ऐसा तो किसी ने सोचा भी नहीं था… कल्पना भी नहीं की थी..! विचारों की अनवरत शृंखला से गुजरते हुए मन कुछ ही क्षणों में न जाने कहां से कहां की सैर कर आया है। इस क्रम में कभी बचपन की सुखद स्मृतियां निश्छलता और सरलता के साथ उपस्थित हो जाता है तो कही वर्तमान परिदृश्य के चित्र विविध बिंबों के साथ आंखों के सामने तैरने लगते हैं। विचारों की अजस्र धारा मन-मस्तिष्क को आप्लावित कर जाती है।
सचमुच ये विचार हमारे चिंतन को प्रभावित करते हैं, व्यक्तित्व को उद्घाटित करते हैं। ये कई बार शब्दबद्ध होकर कविता, कहानी और विविध प्रकार से चित्रित होकर सामने आ खड़े होते हैं, तो कहीं ये चित्रकार की कल्पना में साकार हो उठते हैं। कहीं गीत और संगीत की धुन के साथ विचारों के इंद्रधनुषी रंग आसपास बिखेरने लगते हैं। इसी बीच विचारों का यह प्रवाह अवरुद्ध हो रहा है। शायद सामने पेड़ पर कोई अन्य पक्षी भी आ बैठा है जो तेज चहचहाहट के साथ वातावरण की अजब-सी खामोशी को भंग कर रहा है।
जब तक जीवन है मानव मन विचारों के साथ जीता और जूझता रहता है। यही जीवन का सत्य है जो जीवन को गतिशील बनाए रखता है। ये विचार प्रविष्ट होते हैं धीरे से, हमारे अंतस में आकार लेने लगते हैं तेजी से, क्योंकि विचारों का अजस्र प्रवाह जब हमारे भीतर बहने लगता है, विचारों के अनेक झंझावात टकराने लगते हैं मन के तारों से और झंकृत होकर ढेर सारे विचारों का झरना बहने लगता है। कहीं यह परिवार तो कहीं परिवेश पर विराम लेती है, कहीं ये विचार पहुंच जाते हैं उस स्थान पर जहां संवेदनाएं शुष्क हो रही हैं। कभी ये धारा ‘अर्थ’ की मृग-मरीचिका के बीच सत्य तलाशती नजर आती है, जहां दूर तक भ्रम फैला हुआ है।
विचारों के इस भंवर में कभी स्नेहिल अहसास भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए अंतस को भिगो जाते हैं। मन और बुद्धि का समन्वय ही हमें संतुलित कर सकता है। जीवन और विचार एक दूसरे के पूरक ही तो हैं जो हमें गतिशीलता प्रदान करते हैं। ये विचार अनेक मनोभावों के साथ चलते रहते हैं हमारी जीवन यात्रा में, जिसमें अतीत के विभिन्न चलचित्र, भविष्य के सुनहरे स्वप्न और वर्तमान सदैव साथ रहता है। कुछ भी नहीं भूलता। यही मानव जीवन का यथार्थ भी है।