सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
हमारे एक मित्र का नाम तो कुछ और है, लेकिन मैं उन्हें चरवाणी जी कह कर बुलाता हूं। दरअसल, जब भी मैं देखता हूं, तब वे पूरे साल, हर रोज और हर वक्त छिपकली की भांति मोबाइल रूपी दीवार पर चिपके रहते हैं। मानो मोबाइल कोई सुविधा का यंत्र न हुआ, उनकी जान हो गया। अब उनके सारे मित्र सोशल मीडिया वाले हो गए हैं। हश्र यह है कि सात समंदर पार के मित्र से देर रात जाग कर अपनी वार्तालाप की चटनी चाट लेंगे, लेकिन पड़ोस में रहने वालों को भाव तक न देंगे। रिश्तेदारियां सारी संदेश वाहक ऐप के अखाड़े में निभाते हैं।
सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणियां भूख मिटाने के निवाले हैं। इंटरनेट, अलग-अलग वेबसाइट और उसकी सुविधाएं उनके दिल की धड़कन बन कर धड़धड़ा रहे हैं। चाहे सड़क हो या फिर बहुमंजिला भवन की सबसे ऊंची मंजिल, स्थान से समझौता किए बिना अपनी अंगुलियों को मोबाइली की-पैड के मंच पर नृत्य करवाने में उनका कोई सानी नहीं है। कई बार हादसा होते-होते बचा है। भले उन्हें दो-चार जगह चोट लग गई हो, लेकिन अपने मोबाइल पर धूल तक पड़ने नहीं देते। वे अपना हादसा सह सकते हैं, लेकिन मोबाइल पर कोई खरोंच नहीं।
उनका और मोबाइल का रिश्ता यों है मानो ‘तुम चंदन हम पानी’। साफ्टवेयर मोबाइल में था, लेकिन हार्डवेयर चरवाणी जी का बदला था। माता-पिता की डांट-फटकार का अब पहले जैसा असर नहीं था। घर पर बहन-बहनोई के आने पर बहाने ढूंढ़ कर मोबाइल से चिपके रहते थे। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, क्या खा रहा है, क्या पी रहा है जैसी सभी बातों से बेखबर वे रोटी के आधे टुकड़े में गोल-गोल आंखें बना कर अपने फोन को ढूंढ़ने की कोशिश करते। उनकी सारी सृजनशीलता समय का झोंका बन कर मोबाइल के वीडियो गेम, नए-नए अश्लील फिल्मों के बहाने छूमंतर हो जाते। ऐसा लगा जैसे रतजगिया उल्लू चरवाणी जी के सामने समर्पित हो गए।
मोबाइल के चलते चरवाणी जी इतना विनम्र हो चले हैं कि मानो उनके दोनों हाथ कुछ टाइप करने के लएि अभी चल पड़ेंगे। सीधी सादी गर्दन प्रभु मोबाइल के चरणों में झुक गई है। इतनी भक्ति, इतना आध्यात्म शायद तुलसी ने भी राम के प्रति नहीं दिखाई होगी। प्रभु मोबाइल के चलते चरवाणी जी बिस्तर पर ही उठते-बैठते, खाते-पीते, टहलते-घूमते। मानो उन्होंने दुनिया मुट्ठी में कर ली थी।
कहीं बाहर जाना हुआ तो प्रभु मोबाइल को सौ फीसद बैटरी का चढ़ावा चढ़ाए बिना नहीं निकलते। ‘फूड ऐपों’ का खाना खाकर जो भी चर्बी चढ़ जाती, उसे ताश की रम्मी, कैंडी क्रश, टेंपल रन खेल-खेल कर रुपए-पैसे चढ़ा कर कम कर लेते। इतना सब होने के बावजूद चरवाणी जी की भक्ति में रत्ती भर की कमी नहीं आई। उनके लिए मोबाइल चंदन हैं, तो वह पानी हैं। मोबाइल दीपक है, तो वे बाती हैं। ऐसी भक्ति करने वाले पहले न कभी हुए थे, न हैं और न होंगे।
हो सकता है वे जानते ही नहीं हैं कि लंबे समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से चेहरे पर हल्की-हल्की लाइनें और झुर्रियां आने लगती हैं। इसके कारण वे समय से अधिक उम्र वाले नजर आते हैं। बड़ी मुश्किल से तीस-चालीस के होंगे, लेकिन नजर तो पचपन के आते हैं। मोबाइल फोन पर ज्यादा देर तक चैटिंग या पढ़ने के दौरान वे मोबाइल की स्क्रीन पर लगातार देखते हैं, जिसकी वजह से माथे पर सिलवटें साफ देखी जा सकती हैं। उन्हें क्या पता कि मोबाइल फोन से निकलने वाली ब्लू किरणों से त्वचा पर पिगमेंटेशन हो जाते हैं।
रात में देर तक मोबाइल चलाने से उनकी आंखों पर ऐसा प्रभाव पड़ा है कि रोशनी धीरे-धीरे मद्धिम हो चली है। इसके अतिरिक्त उनकी नींद पर भी बुरा असर पड़ा है। यही कारण है कि उनकी आंखों के चारों ओर काले घेरे नजर आते हैं। मोबाइल फोन में कई तरह के किटाणु और बैक्टीरियां होते हैं जो आसपास के वातावरण से चिपक जाते हैं। यह बात उन्हें पता नहीं है। इसका खतरा एक अलग है। लंबे समय तक मोबाइल फोन का उपयोग करने से गर्दन में झुर्रियां पड़ गई हैं और गर्दन की त्वचा खुरदरी और मोटी दिखाई देती है।
यह सच है कि इंटरनेट या अंतरजाल एवं विज्ञान तकनीक ने मनुष्य को विभिन्न पहलुओं पर लाभ और सहायता तो प्रदान की है, लेकिन साथ ही विभिन्न प्रकार की हानि, विनाश, शारीरिक एवं मानसिक कष्ट भी पहुंचाया है। आधुनिक युग में मोबाइल पर इंटरनेट के आ जाने से उसके जितने लाभ हुए है, उतनी ही विकृतियां मनुष्य के मस्तिष्क में और समाज में लगातार देखने मिल रही हैं। यह बात ज्यादातर लोग मानना नहीं चाहते। जानते भी हैं तो अनजान बनने का नाटक कर रहे हैं। चरवाणी जी एक प्रतीकात्मक नाम है, मगर इस तरह की हालत से आज बहुत सारे लोग गुजर रहे हैं। इससे हम और आप भी अछूते नहीं हैं।