राजेंद्र प्रसाद
महान आदर्श महान मस्तिष्क का निर्माण करते हैं। जीवन की सफलता के लिए हमें कुछ न कुछ आदर्श अपनाने की आवश्यकता होती है और उसी के बल पर हमारे कृतित्व और व्यक्तित्व की साख जुड़ी होती है। जीवन में ज्यादातर असफलता तभी आती है, जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य और सिद्धांत भूल जाते हैं। मोटे तौर पर कर्तव्य खुद में ऐसा आदर्श है जो कभी धोखा नहीं देता और उसके लिए धैर्य के कड़वे पौधे से फल हमेशा मीठे आते हैं। आदर्श सत्कार्य का सदैव समर्थन करता है और दुष्कार्य में शरीक होने से रोकता है। यह भी सच है कि बुद्धि की स्थिरता के बिना कोई भी आदर्श पूरा नहीं होता। कटु सत्य है कि आदर्श हमेशा वास्तविकता की कोख से उगता है।
आदमी अनेक बंधनों के बीच जीता है। कहां पर क्या और कितना बोलना है, कैसे आचरण निभाना है, यह सीखना पड़ता है। सादा जीवन जीना कठिन अभ्यास है, क्योंकि उसमें संतुलन और आत्म-नियंत्रण की जरूरत है, जो डगर को मुश्किल बनाता है। जीवन की गति नदियों की तरह है जो कभी सीधी रेखा में नहीं बहती। उसके टेढ़े-मेढ़े रास्ते संघर्ष और धीरज के हुंकार की अलख जगाते हैं। जैसे विमान जब उड़ान भरता है तो अपनी रफ्तार बढ़ाने के साथ-साथ अपनी ऊंचाई और घुमाव भी बढ़ाता है।
हमारे जीवन के आदर्श ऊंचे होने चाहिए, विशेषकर उन लोगों के जो सभ्य या उच्च कहलाते हैं। छोटे लोग ऐसे व्यक्तित्वों के आदर्शों से ऊर्जा और प्रेरणा लेते हैं। सादगी, उच्च विचार और आदर्श एक-दूसरे से जुड़े हैं। एक से सच की नजदीकी मिलती है, दूसरे से कर्म की लौ जगती है और तीसरे से प्रेरणा मिलती है। विचार का दीपक बुझ जाने पर आचार बाधित हो जाता है। विचारों का आधार अगर मजबूत है तो समाज में मौजूद राह भटकाने वालों की दाल नहीं गल पाती। जीवन रूपी जूतों में कंकड़, कान में कीड़े की झंकार, आंख में रेत, पैरों में कांटों की चुभन और घर में लड़ाई-झगड़े को सहना बहुत मुश्किल है। जीवन में व्यस्त रहना काफी नहीं है। सवाल यह है कि हम किसलिए और कैसे व्यस्त हैं। सामान्य जीवन में छोटे-छोटे काम करना और उन्हें निपटाते जाना, बड़े-बड़े कामों की मात्र योजना बनाते रहने से ज्यादा अच्छा है।
जीवन जितना सादा रहेगा, तनाव उतना ही आधा रहेगा। संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं, संतोष जैसा कोई सुख नहीं, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं और दया जैसा कोई पुण्य नहीं। सादगी से बढ़कर कोई शृंगार नहीं होता और विनम्रता से बढ़कर कोई व्यवहार नहीं होता। काल में इतनी शक्ति है कि वह एक साधारण से कोयले को भी धीरे-धीर हीरे में बदल देता है। सादगी परम सौंदर्य है, क्षमा उत्कृष्ट बल है, विनम्रता सबसे अच्छा तर्क है और दोस्ती सर्वश्रेष्ठ रिश्ता है। गृहस्थ में भी स्त्री-पुरुष, छोटे-बड़े परिजनों के विचार सादगी और आदर्श सज्जित हों तो वे बाधक होने के बदले सहायक लगते हैं। सही है कि बहुधा आदर्श, आदर्श ही रहता है, हर बार यथार्थ नहीं हो सकता, लेकिन उसकी रोशनी से जीवन रोशन जरूर रहता है।
अगर हम बनावटी या दोहरा जीवन न जिएं तो सादा जीवन और उच्च विचार उतने ही हमें ताकतवर बनाते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि सच्चाई और पारदर्शिता हमारे भीतर उठ रही विचारधारा की सादगी व उच्चता का भान कराते हैं। विचार ऐसे होने चाहिए कि हमारे विचारों पर भी किसी को विचार करना पड़े। एक गुब्बारे पर क्या खूब लिखा था- ‘जो आपके बाहर है, वह नहीं, जो आपके भीतर है, वही आपकी ऊंचाइयों तक ले जाता है। हमें अपने व्यक्तित्व को उस पर्वत की तरह मजबूत बनाना चाहिए जो आंधी में वृक्ष की भांति नहीं हिलता और अडिग खड़ा रहता है।’
आदर्शवाद से प्रेरित उच्च विचार ऐसे आवरण की तरह हैं, जो भंग हो जाए तो मर्यादा टूट जाती है। अगर गंदे औरे मैले कपड़े हमें पसंद नहीं आते हैं तो खराब विचारों से भी हमें शर्म आनी चाहिए। विचार अगर अच्छे हों तो अपना मन ही मंदिर है। आदमी अकेला भी बहुत कुछ कर सकता है। ऐसे लोगों ने ही आदिकाल से विचारों के जरिए क्रांति पैदा की है और उनके कृत्यों से इतिहास भरा पड़ा है। घर से छोटा दरवाजा, दरवाजे से छोटा ताला, ताले से छोटी चाबी पर छोटी-सी चाबी से पूरा घर खुल जाता है। व्यक्ति के विचार सब तालों की चाबी हैं। छोटे-छोटे पर अच्छे विचार जीवन में बड़े-बड़े बदलाव ला सकते हैं। विचारों की सृष्टि पृथ्वी पर होती है, जो परिश्रम की मिट्टी से उगते हैं और तथ्यों की खाद पर पलते हैं।