राकेश सोहम्

विवाह के बाद पहले दिन वधु ने वर को दूध से भरा गिलास दिया। वर ने ज्यों ही दूध हलक में डाला, उसकी सांसें अवरुद्ध होने लगीं। वधु घबरा गई। घर के सदस्य वर को आनन-फानन अस्पताल ले गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जांच से पता चला कि उसके गले में छिपकली फंस गई थी, जिसका जहर शरीर में फैल गया था। गांव के लोग वधु को कोस रहे थे। उसे ‘अशुभ’ ठहराया जा रहा था। जबकि वधु निर्दोष थी। गलती दूध का गिलास कमरे में रखने वाले की थी।

दूध के गिलास को ढक कर नहीं रखा गया था, जिसकी वजह से गरम दूध में छिपकली गिर गई थी। एक साधारण-सी चूक जानलेवा साबित हुई। इस घटना का उल्लेख एक किताब में दर्ज था। दरअसल, मेरे पिता को अच्छी और शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने का शौक था। वे अक्सर शाम को इन किताबों से शिक्षाप्रद बातें पढ़ कर सुनाते थे। एक दिन उन्होंने इस किताब से ‘ढक्कन की महत्ता’ समझाते इस ब्योरे को पढ़ कर सुनाया था।

‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ के सूचना पटल अक्सर सड़क के किनारे पढ़ने को मिल जाते हैं। तो क्या केवल सड़क पर चलते समय ही सावधानी को ध्यान में रखना चाहिए? जीवन के हर क्षेत्र में सावधानी आवश्यक है। घर के छोटे-छोटे काम करते हुए भी सावधानी की महती आवश्यकता होती है। पिछले दिनों मित्र के परिवार में बहुत ही अजीब दुर्घटना हो गई। उसके भाई ने दाढ़ी बनाने के बाद ब्लेड को बाथरूम में यों ही छोड़ दिया था। स्नान से निवृत होने के बाद नहाने की साबुन भूलवश उसी ब्लेड पर रख कर छोड़ दी।

कुछ समय बाद घर का एक अन्य सदस्य स्नान के लिए गया। उसने ज्यों ही साबुन को शरीर पर रगड़ा, उसका पूरा शरीर लहुलूहान हो गया। एक पल को वह समझ नहीं पाया कि पानी इतना रक्तााभ क्यों हो रहा है। जब उसे पीड़ा का अहसास हुआ तो हाथ में लिए साबुन को देख कर उसके होश फाख्ता हो गए। साबुन के नीचे नंगी ब्लेड चिपकी हुई थी। उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि गहन चिकित्सा की आवश्यकता पड़ी। शरीर में कई जगह टांके भी लगाने पड़े।

घरों में होने वाली छोटी-छोटी चूक कई बार गंभीर और जानलेवा साबित होती देखी गई है। व्यक्ति रोजमर्रा के नियमित और स्थापित काम करने का आदी-सा हो जाता है। वह इन कामों को यंत्रवत करने लगता है। रोजमर्रा के कामों को निपटाने में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कई बार वह कोई काम कर चुका होता है, लेकिन कुछ देर बाद याद पड़ता है कि अमुक काम अभी बाकी है। जब वह उस काम के लिए दोबारा जाता है तो अचंभित हो जाता है।

वह घर के दूसरे सदस्यों से पूछता है कि आखिर यह काम किया किसने! अनेक बार इसके उलट भी होता है। वांछित कार्य किया भी न हो, लेकिन ऐसा लगता है कि काम को अंजाम दे दिया गया है। चिकित्सकीय भाषा में इस प्रकार की मन:स्थिति को ‘चिंतन की ओवरलेपिंग’ कहा गया है। काम का आधिक्य और शीघ्रता से काम निपटाने की कोशिश में एक कार्य में संलग्न व्यक्ति अगले काम को करने के बारे में सोच रहा होता है। उसका ध्यान चल रहे कार्य में नहीं होती, इसलिए चूक रह जाती है, जो गंभीर दुर्घटना का सबब बन जाती है।

वर्तमान समय बड़ा विकट है। कोरोना संक्रमण का खतरा बना हुआ है। संक्रमण से बचाव के लिए सुरक्षित दूरी और सफाई की बात समझाई जा रही है। यह बीमारियों का मसला है। लेकिन कई बार सड़क पर चलते समय महज सेकेंड भर की चूक अपनी और दूसरों की जान पर खतरा पैदा कर देती है। सड़क हादसों पर जितनी भी दुर्घटनाएं होती हैं, वे सब इसी पल भर की लापरवाही या ध्यान भटकने की वजह से होती हैं। लोग संकट की घड़ी में भी अनदेखी करते हैं। आखिर अपने ही जीवन को दांव पर लगाने के मामूली-सी चूक क्यों कर दी जाती है!

एक दिन मैं दफ्तर में था तभी घर से फोन आया कि बिस्तर पर रखीं रजाइयों से धुंआ उठ रहा है। कुछ देर बाद उसमें आग भड़क उठी। मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। दफ्तर निकलने की जल्दी थी, इसलिए बिस्तर के पास लगे प्लग में इलेक्ट्रिक प्रेस लगा कर कपड़े इस्तरी किए और बटन बंद किए बिना प्रेस को बिस्तर पर यों ही छोड़ कर निकल आया था। हालांकि सजगता और सतर्कता से एक बड़ा हादसा टल गया।

हम कितनी मर्तबा बिजली का बटन बंद किए बिना ही पानी से इमर्शन रॉड निकालने लगते हैं, बिजली के प्लग लगाने और निकालने लगते हैं! आपाधापी के वर्तमान परिवेश में ऐसी गलतियां आम हो गई हैं। मन लगा कर काम करने की आदत में भारी कमी आई है। जबकि ‘मन लगा कर काम करने’ का सूत्रवाक्य पुरातन और हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है। जानते हुए बार-बार चूक करने को ‘आध्यात्मिक प्रज्ञा अपराध’ कहा गया है और ऐसी चूक का खमियाजा भुगतना पड़ता है।