मोहन वर्मा

आज जीवन पर तकनीक इस कदर हावी होती जा रही है कि उसमें मनुष्य गुम होता जा रहा है, मनुष्यता अब खोजने की चीज होती जा रही है। इसे समझने के लिए बहुत गहरे उतरने की जरूरत शायद नहीं है। सिर्फ सोशल मीडिया की दुनिया पर नजर डाली जा सकती है। अब इसका विस्तार इस तेज गति से हो रहा है कि जिंदगी ही ऐप आधारित होती जा रही है। सोशल मीडिया के उफान और तकनीक के बोलबाले में कैसे-कैसे ऐप रोजाना सामने आ रहे हैं, यह गिनती भी जटिल होती जा रही है।

खाना मंगाने से लेकर रास्ता बताने तक सब काम ऐप कर रहा

हर जानकारी, हर चीज, हर सुविधा हमारे मोबाइल में और अंगुलियों के इशारों पर मौजूद है। जब जरा अपनी आंखें मोबाइल में घुसाई, सब एक पल में देख ली। खाना मंगाने से लेकर हवाई जहाज की टिकट तक और रास्ता ढूंढ़ने से लेकर ट्रेन की स्थिति भी व्यक्ति पल भर में जान सकता है। आजकल के नौजवान कह सकते हैं कि यह किस पुराने समय को याद किया जा रहा है… आज मोबाइल नाम के इस जादुई पिटारे में कैसे-कैसे नए ऐप आ चुके हैं, यह पुराने लोगों को क्या पता!

सुबह उठने से लेकर देर रात सोने जाने तक तकनीक से मिल रहा ज्ञान

दरअसल, जैसे-जैसे सब कुछ व्यक्ति के हाथों में आता जा रहा है, उसे किसी इंसान की न तो जरूरत लग रही है और न उसकी परवाह दिखाई देती है। बस इसमें बात सिमटती चली जा रही है कि हम भले, हमारी दुनिया भली। कल तक लोगों को यह शिकायत रहती थी कि अब कोई किसी से मिलता-जुलता नहीं, सब अपने दायरे में सिमट रहे हैं, अब हालात ये हैं कि लोग एक-दूसरे से बात करने में भी कन्नी काटने लगे हैं। सचमुच के अच्छे दिनों और मोहब्बत वाले दिनों की बात करने वाले मूर्ख समझे जा रहे हैं। सुबह उठने से लेकर देर रात तक सोशल मीडिया या वाट्सऐप की दुनिया से मिले ज्ञान को यहां-वहां भेजकर लोग दूसरों को ज्ञानी बनाने में लगे हैं। जिनका अपना कद नहीं बन सका, वे अक्सर लिखते दिख सकते हैं कि एड़ियां ऊंची करने से किरदार ऊंचे नहीं होते।

इसी तरह जमाने भर के अहंकारी विनम्रता और मोहब्बत के संदेश एक दूसरे को भेज रहे हैं। ‘हम बदलेंगे, जग बदलेगा’ के बजाय लोग ‘तुम बदलोगे, सब बदलेगा’ का संदेश देकर दुनिया को बदलने पर आमादा हैं। समझ में नहीं आता कि आखिर सामाजिक सरोकार भी कोई चीज है या नहीं? मान लिया जा सकता है कि व्यवसाय में प्रतिद्वंद्विता हो, नौकरी में अहं का टकराव हो या फिर संगठन में पदों की खींचतान हो और व्यक्ति एक-दूसरे से खिंचा-खिंचा व्यवहार करता हो, तो यह बात समझ में भी आती है। मगर यहां बिना बात के तनातनी और विवाद देख-समझ कर भी यह समझ में नहीं आता कि एक-दूसरे से खिंचाव और बढ़ती दूरी का कारण क्या है।

सोचता हूं कि आधुनिक तकनीकी की दुनिया में हर तरह के ऐप बनाने वाले जादूगर अपनी तकनीक से लोगों के दिमाग और उनमें चल रही खुराफात पढ़ सकने वाले ऐप कब बनाएंगे? कब आएगा अहंकारियों के अहंकार और नफरत को मिटाने वाला ऐप? कब आएगा वह ऐप, जो बता सकेगा कि बिना कारण नाराज होकर कन्नी काटने वाले की समस्या क्या है? वह ऐप जो अलगाव का कारण बताकर पल भर में दूरियों को नजदीकियों में बदल दे? फिर यह भी लगता है कि अगर ऐसे ऐप सचमुच बनने लगेंगे तो क्या इंसान का इंसान के रूप में बचे रहना संभव हो सकेगा? क्या ऐसे ऐप बनाने वाले लोगों की सोच-समझ तक को नियंत्रित और संचालित नहीं करने लगेंगे? इसके बाद क्या होगा?

यकीनन आज के दमघोंटू माहौल में बढ़ते अहंकार, नफरत और बात-बेबात के अबोले के इस समय में जरूरत ऐसे ऐप की है जो अपनी तकनीक से ऐसे सकारात्मक बदलाव ला सके, क्योंकि भावनाओं के पुतले मनुष्य को तो उसकी भावनाएं ही बदलने नहीं दे रहीं, खत्म कर रही हैं। नफरत, अलगाव, अहंकार, ईष्या खत्म करना हमारे आपके हाथों में होने के बाद भी हम आज या तो किसी जादुई चिराग के इंतजार में हैं या फिर तकनीक से ईजाद किसी ऐप के इंतजार में। कोई ऐप या मशीन हमारी चेतना तक को नियंत्रित करने लगे, इससे बेहतर है कि हम वक्त रहते चेत जाएं और इंसानी मूल्यों को बचा लें।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारे समाज में नकारात्मकता बढ़ाने वाले अहंकार, ईष्या, द्वेष, अबोला और एक-दूसरे से बिना कारण की दूरी हम सबके बीच कितना अवसाद, कितनी बीमारियां और चाहे अनचाहे कितने ही अपराधों का कारण भी बन रही है। एक संवेदनशील नागरिक के रूप में अपने समाज को सही दिशा दिखाना और अनचाही बुराइयों से बचाना एक जिम्मेदार व्यक्ति का कर्तव्य है। यह बदलाव किसी चिराग या ऐप से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत प्रयासों से ही संभव है।