एकता कानूनगो बक्षी

कुछ संदर्भ कई बार अपने साथ व्यापक दायरे की जटिलताओं की व्याख्या का अवसर मुहैया कराते हैं। हाल ही में अनूठी शैली में बना व्यंग्यात्मक, मगर पराविज्ञान पर आधारित एक हास्य कार्यक्रम देखना हुआ। हालांकि ज्यादा नहीं देख सकी, लेकिन उसके एक दृश्य ने हमारे जीवन की एक बड़ी समस्या को समझने में बहुत मदद की। दृश्य कुछ यों था कि बहुत सारे पिशाच अपने बंगले की बैठक में कॉफी पीते हुए एक दूसरे से अपने अनुभव, अपनी उपलब्धियां साझा कर रहे होते हैं। खुशनुमा उत्सवी माहौल कक्ष में फैला हुआ होता है। अचानक एक सामान्य-सा दिखता व्यक्ति उस कमरे में दाखिल होता है तो वहां सन्नाटा छा जाता है। बाकी के सभी पिशाच सहम जाते हैं और उस कमरे से बाहर निकलने के लिए तड़पने लगते हैं। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि उन पिशाचों भी वह कौन-सा सामान्य-सा प्रतीत होता पिशाच रहा होगा, जिसके प्रकट होते ही बाकी सबने उससे दूरी बनाना बेहतर समझा।

दरअसल, इस प्रतीकात्मक कथा में मनुष्य की वह प्रवृत्ति छिपी दिखाई देती है, जब अतिरिक्त नकारात्मकता और दुर्भावनाओं से भरे व्यक्ति की उपस्थिति मात्र से भले लोग इधर-उधर छिटकने लगते हैं। हमारे जीवन में अक्सर हमारा सामना ऐसे कई लोगों से होता रहता है, जो नकारात्मक ऊर्जा का बोझ लिए आमतौर पर यहां-वहां कहानी के पिशाच की तरह विचरते रहते हैं। इनके साथ कुछ देर बैठ कर बात करने से ही हमारा मनोबल, आत्मबल धीरे-धीरे कम होने लगता है। अधिक प्रभाव में आने पर हम अवसाद में भी डूब सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि ऐसे लोग झूठ बोल रहे होते हैं। अक्सर वे कड़वा सच बोलते हैं, जिससे उबरने के लिए सामने वाला व्यक्ति या तो प्रयासरत होता है या फिर असहाय। जीवन में संपूर्णता केवल कमजोरियों को खत्म करने से ही नहीं आती हैं। कमियों, कमजोरियों को जान-समझ कर, उनसे जूझते, संघर्ष करते हुए हौसले से आगे बढ़ते रहने से भी व्यक्तित्व निखरता है। जीवन का कैनवास बहुत विशाल और बहुआयामी है। वह सभी को अवसर देता है अलग-अलग रंगों को बिखेरने का। सच यह है जीवन-चित्र का वास्तविक सौंदर्य उसकी पूर्णता और समग्रता में ही नजर आता है और यही मायने भी रखता है।

कहा जाता है कि निंदक को हमेशा अपने करीब रखना चाहिए। यकीनन जब हमें अपनी कमजोरियों की जानकारी होगी, तभी हम बेहतर कर सकेंगे। लेकिन ऐसी निंदा जो हमें केवल हतोत्साहित कर रही हो, हमारे आत्मविश्वास को कम कर रही हो, हमारी सकारात्मक ऊर्जा को सोख कर हमें दुर्बल बना रही हो, जरूरी नहीं कि वह सबके लिए लाभदायक हो। ईमानदार निंदक बनना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है। जो व्यक्ति दूसरों को उनकी कमजोरियों से अवगत कराता है, उसके भीतर उस कमजोरी से उबरने का रास्ता और सामने वाले को कमजोरी पर फतह हासिल करने का उत्साह देने का हुनर भी उसमें होना आवश्यक है। यह सामर्थ्य नहीं होने पर वह व्यक्ति बीमार कुंठाग्रस्त व्यक्ति कहा जाएगा, जिसे हमारी सकारात्मक रोशनी से कोई तकलीफ हो सकती है।

इसके समांतर अक्सर देखा गया है किसी के कटु वचन कहने पर हम उदास हो जाते हैं। उन शब्दों को अपने मन में गहरे उतार उस तकलीफ का बोझ हमेशा ढोते रहते हैं। शब्दों की विशेषता ही यह है कि वह सहृदय व्यक्ति में गहरे उतरते हैं और लंबे समय तक उनका प्रभाव मन पर बना रहता है। काश कि हम इतने निपुण बन सकें कि निरर्थक शब्दों, विचारों को मन के भीतर पहुंचने से पहले ही अमान्य घोषित कर सकें। पर होता अक्सर यह है कि हमें हमारे लिए कहे गए कटु वचन ज्यादा ईमानदार लगते हैं। फिर हमारे जीवन का सारा उजाला हमें धोखे-सा प्रतीत होने लगता है। दूसरों के द्वारा दिए गए नकारात्मक विचार ही हमें परिभाषित करने लगते हैं। फिर नकारात्मकता प्रभावशाली हो जाती है और उसके सामने हम मानसिक रूप से इतने दुर्बल हो जाते हैं कि हमारी सारी उपलब्धियां, खुशियां दूसरों के कुछ शब्दों, मापदंडों से प्रभावित होने लगती हैं।

अपने आप को नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए हमें ढूंढ़ना होगा वह जरिया, जिसके द्वारा हम खुद को सकारात्मक और संतुलित बनाए रख सकें। इस क्रम में डायरी लेखन खुद को समझने का एक बेहतर रास्ता है। जब हम खुद से बात करते हैं तो हमें किसी और की नकारात्मकता से खासा फर्क नहीं पड़ता है। जीवन में उद्देश्य, स्पष्ट लक्ष्य होना हमें अवसाद से दूर रखता है। हमारे पास हताश होने का समय और ऊर्जा नहीं होती कि रुक कर उन बातों पर विचार करें जो हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए निरर्थक है।

जब भी हमारा सामना ऐसे लोगों से हो जो हमारी सकारात्मक ऊर्जा या हमारी खुशियों को अपने विचारों से कम करने के लिए आतुर हों, तब हमें वह बने रहना चाहिए, जो हम असल में हैं। हमें अपने व्यवहार, भाषा, अपनी सकारात्मक ऊर्जा को उस विपरीत समय में भी बरकरार रखना चाहिए। खुद को कमजोर, दोषी महसूस नहीं करते हुए प्रयास करना चाहिए कि हम और मजबूत बन सकें। यह पूरी तरह हम पर पर निर्भर करता है कि हम डर से खुद को डरा कर उसे और बड़ा करते जाएं या फिर अपने व्यक्तित्व को साहस, परिपक्वता, सकारात्मक ऊर्जा से बड़ा कर डर को काफूर कर दें।