स्वरांगी साने

अब लोग इतने अधिक व्यावहारिक हो गए हैं कि न आ पाने की खबर देते हैं और भूले-भटके उस शहर पहुंच भी जाएं या इलाके में जाना हुआ तो हाल पूछने चले जाते हैं। बच्चों से इस विषय पर निबंध लिखवाया जा सकता है कि ‘मोबाइल के लाभ-हानि क्या हैं’, लेकिन रिश्तों के पलड़े में मोबाइल ने रिश्तों को बहुत अधिक औपचारिक भी बना दिया है।

उन दिनों संयुक्त परिवारों का चलन था। किसी दिन घर पर ताला लगाने की नौबत आ जाती तो ताला-चाबी ढूंढ़ने से शुरुआत होती और न मिलने पर पास-पड़ोस में पूछा जाता कि किसी के यहां दरवाजे पर लगाने का ताला है क्या! अब हर घर बंद है, हर घर पर ताला है। हर रिश्ता तालाबंद हो गया है और उसे खोलने की चाबी किसी के पास नहीं है।

ऐसा नहीं है कि लोगों की आपसी बातचीत बंद हो गई है। लोग आपस में पहले से अधिक बोलने लगे हैं। कई बार अनर्गल भी। सैकड़ों संदेश अग्रेषित होते रहते हैं, लेकिन उन संदेशों का लब्बोलुआब देखा जाए तो कुछ नहीं होता। हर कोई दिखा रहा है कि वह खुश है और इतना खुश है जैसे उससे ज्यादा खुश और कोई नहीं। वाट्सऐप पर स्टेटस अद्यतन होते हैं, लोगों के जीवन में लगातार कुछ न कुछ घटित होता रहता है और उसे दुनिया को दिखाने की उन्हें जल्दी भी बहुत है। वे बहुत शीघ्रता से सारी दुनिया को बता देना चाहते हैं कि उनका जीवन कितना उजला, चमकदार, दमकता और शानदार है। लोगों को एक ही कहावत पता है कि ‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’। इसलिए वे अपने ‘मोर उड़ा भी रहे हैं’, दिखा भी रहे हैं। लोगों द्वारा भुला दिए जाने का भय इससे पहले कभी इतना नहीं रहा होगा।

पहले लोग अमर होने के लिए बड़े काम किया करते थे। बड़े काम एक दिन में नहीं होते, ‘रोम एक दिन में नहीं बना था’। लेकिन उससे उन्हें क्या! वे हर दिन, हर क्षण सबके जेहन में बसे रहना चाहते हैं और इस तरह कि लोगों को उनसे रश्क हो कि इनका जीवन कितना सुखी है। जिसका जीवन सुखी होता है, उसे सबको बताते रहने की जरूरत नहीं होती कि मेरा जीवन इतना सुखी है। अगर आपको बताना पड़ रहा है तो पड़ताल करनी होगी कि क्या सचमुच आपका जीवन वास्तव में इतना सुखमय है या केवल दिखावा है! आपको जीवन का उन्नत मार्ग खोजना ही होगा और उन चीजों को देखना होगा जो आपके उस मार्ग में सही नहीं बैठ रही।

हो सकता है हम अपने जीवन में प्यार पाना चाहते हों या नया घर ही खरीदना चाहते हों और वैसा न हुआ हो। इसे देखने के दो नजरिए हैं। या तो हम सोचें कि जो अब तक नहीं हुआ, वह अब क्या होगा या हम यह भी सोच सकते हैं कि जो अब तक नहीं हुआ वह अब होकर रहेगा। बदलाव अपनी सोच को बदलने से आएगा। चलिए हम खुद से वादा करते हैं कि इस साल के जो चंद महीने अब बचे हैं, उन्हें जीवन के सबसे शानदार महीने बना लेते हैं। जाहिर है, रातोरात कुछ नहीं होने वाला।

लेकिन जिस क्षण हम ठान लेते हैं कि अब हम बदलाव चाहते हैं, बदलाव लाकर रहेंगे और उस पर डटे रहते हैं, तो परिवर्तन होने लगता है। उस अवसर को अपनी सारी ऊर्जा को केंद्रित कर सुअवसर में बदल लें। जो हमारे हित का नहीं या हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ नहीं, उसका त्याग कर दें। देने के लिए तैयार रहिए और लेने के लिए भी। नेतृत्व की भूमिका में आकर, अपनी और दूसरों की जिम्मेदारियां उठाना स्वीकार करने की जरूरत है। अगर हम अपने जीवन, घर एवं परिवेश से संतुष्ट नहीं तो उसे बदलने का जिम्मा उठाना होगा। अपने आसपास सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। सप्ताह का कोई एक दिन अपने लिए दीजिए। अपने लिए एक दिन चुनिए, अपनी साज-संभाल कीजिए, खुद का दुलार कीजिए। अपने को उस दिन शानदार दावत दीजिए या किसी काफी रेस्तरां में अपने साथ खुद बैठ बेहतरीन काफी का आनंद लीजिए।

पर पहले उस स्तर की आर्थिक और शारीरिक सुरक्षा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, ताकि हम दूसरों को देने और अपने लिए खुद कुछ लेने की स्थिति में आ पाएं। दूसरों के प्रति उदार बनें। जिनसे प्यार करते हैं उनकी खुशहाली के लिए काम करें। अब वह समय आ गया है कि हम संघर्षपूर्ण जीना छोड़कर जीने का आनंद भी ले सकें कि कष्टों से भरे जीवन को जी लेने के बाद अब कुछ सुकून के पल भी तलाश पाएं। अवसाद की स्थितियों से निकलकर प्रवाह को जीवन का मार्ग बना लें। पूरे जोश और आत्मविश्वास के साथ संकल्प लेकर गाइए- ‘है बहुत अंधियारा अब सूरज निकलना चाहिए, जिस तरह से भी हो यह मौसम बदलना चाहिए’।