विलास जोशी
जब नया साल आने वाला होता है, तब मन में एक बात अवश्य आती है कि नया साल माने क्या? क्या इकतीस दिसंबर की रात लोगों में एक जोश आता है और एक जनवरी की सुबह होने तक जो एक नशे की तरह हम पर चढ़ा रहता है- वह नया साल है? जबकि हर दिन की तरह वही सूर्य रहता है और चंद्रमा भी वही रहता है। फिर मन में यह बात आती है कि इसमें नया क्या है? अगर हम उसे नया साल न कहते हुए ‘अगला साल’ कहें तो क्या हर्ज है? मेरा मन यह भी सवाल करता है कि क्या मात्र ‘पुराना कैलेंडर’ निकाल कर ‘नया कैलेंडर’ दीवार पर लगाने को नया साल कहते हैं? सच तो, आम आदमी इस पचड़े में पड़ता ही नहीं है और वह सही भी है। क्योंकि, नया साल हमें सही अर्थ में मनाने आना चाहिए।
हम साधारण लोगों का जन-जीवन बहुत साधा, सरल है। प्राय: उसमें कभी-कभी ही कोई जटिलता आती है। सच तो यह भी है कि ‘श्वास लेना’ और ‘श्वास छोड़ना’ ही जीवन नहीं है। हर श्वास के बाद हमें उस अनंत आकाश की सुगंध लेने आना चाहिए। इस आपाधापी के समय में हमें अपना सुर पहचानने आना चाहिए, जो होटलों में आधी रात के बाद होने वाले शोर-शराबे में कहीं खो जाता है। जब हमें अपना सुर खुद को सुनाई पड़ने लगे, तो समझना कि हम नए साल में प्रवेश कर रहे हैं।
एक जनवरी आते ही हमारे मोबाइल पर अंग्रेजी में ‘हैप्पी न्यू इयर’ लिखे संदेश आने लगते हैं। यह एकदम ठीक है। क्योंकि एक जनवरी से ‘अंग्रेजी नववर्ष’ आरंभ होता है। जबकि हमारा देश विभिन्न जाति-धर्मों का मिलाजुला देश है और यहां सबके अपने-अपने अलग-अलग नए वर्ष, अलग-अलग महीने के दिन से शुरू होते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम देखें तो हमारे देश में एक जनवरी को ‘न्यू इयर’ ऐसे मनाया जाने लगा है, जिसे देख-सुन कर विदेशी लोग भी हैरत में पड़ जाते हैं। जबकि हमारे ‘नया साल’ मनाने और उनके ‘न्यू इयर’ मनाने में बहुत अंतर है।
विदेशी लोग ‘न्यू इयर सेलिब्रेशन’ अपने परिवार के लोगों के साथ या फिर परिवार को साथ में लेकर किसी परिचित समूह के साथ होटलों में जाकर मनाते हैं। चूंकि विदेशों में ठंड अधिक होती है, इसलिए वे स्वंय को थोड़ा गरमाने के लिए एकाध पैग लेना गलत नहीं समझते। उसके बाद वे अपने परिजनों के साथ शालीनता से ‘डांस’ करते हैं। जबकि हमारे देश में कुछ लोग होटल-बार में जाकर भरपूर नशा करते हैं, फिर वहां से लौटते समय रास्तों पर मौज-मस्ती करते हुए गंदी हरकतें करते हैं। यहां तक कि राह चलते लोगों के साथ छेड़छाड़ करते हैं।
फिर कोई शराब की खाली बोतल रास्ते पर फेंकता चलता है, तो कोई कार को आड़ी-तिरछी चलाता है, जिससे रास्ते पर चल रहे लोगों को बहुत परेशानियां होती हैं। जबकि विदेशों में ऐसा नहीं होता। वे अगले दिन एक सामान्य दिन की ही तरह उठते हैं और अपने कार्यस्थल पर जाकर अपने साथियों को न्यू इयर की शुभकामनाएं देते हैं। जबकि हमारे देश में नए साल का उत्सव मना कर लौटे हुए कुछ लोग अगले दिन दोपहर तक बिस्तर से उठते तक नहीं हैं।
जब नया साल आता है, तो उसके आने का भी एक मकसद होता है कि हम इस नए साल में कुछ नए संकल्प लें और उन्हें पूरा करने के लिए अपना सौ प्रतिशत अंशदान दें। मगर विडंबना देखिए कि कुछ लोग नए साल में नए संकल्प लेने से इसलिए कतराते हैं कि कहीं यह संकल्प उनके ‘अघोषित सुखों को भोगने’ से वंचित न कर दे। इसलिए वे नए संकल्पों को पीठ दिखाते हैं।
विद्वानों का मत है कि नए साल में नए संकल्प लेने में बुराई ही क्या है? सच तो नए साल में हम नए संकल्प लेकर अपनी कमजोरियों को दूर कर सकते हैं कि अब इस नए साल से मंै न तो कोई झूठी अफवाहें फैलाऊंगा और न उनको ऐसी हवा दूंगा, जिससे किसी दूसरे को तकलीफ या परेशानी हो। अब मैं अपनी इस आदत से हमेशा हमेशा के लिए तौबा कर लूंगा, साथ ही मैं अब किसी की ‘निंदा/ आलोचना नहीं करूंगा।’ निंदारस का त्याग कर अपनी इस बड़ी कमजोरी को हमेशा हमेशा के लिए विदाई दे दूंगा।
सच, नए साल में ऐसे संकल्प लेकर हम अपनी कमजोरियों को दूर करके अपने जीवन में ‘सकारात्मकता’ लाने में तत्पर हो सकते हैं। इसी प्रकार नए साल में हम अपने शौक पूरा करने का संकल्प भी ले सकते हैं, जिन्हें किसी कारण से हम अभी तक पूरा नहीं कर सके हों। हम नए साल में नए सकंल्पों की नई कोपलों को सच्चे मन और पूरी निष्ठा से उन्हें पूरा करें, तभी नया साल मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।
