अरुणा कपूर
जब मनुष्य का जंगल में बसेरा था, तब धातुओं के बर्तनों पर थाप मार कर या पेड़ों की टहनियों से पीट कर आवाजें निर्मित की जाती थीं। शायद इसी क्रम में तैयार वाद्यों की धुन पर गीतों का प्रादुर्भाव हुआ और यहीं से एक के बाद एक वाद्य का निर्माण होता गया। हारमोनियम, ढोलक, तबला, गिटार, सितार, माउथ आर्गन, शहनाई, ड्रम… और भी बहुत से वाद्य हमारे मनोरंजन और मन की प्रफुल्लता को जगाने के लिए हमारे आसपास मौजूद होते हैं।
कभी सीखने-बजाने या सुनने के लिए, तो कभी गीत-संगीत के बीच। वाद्यों के बिना गीत अधूरा है। गायक को गाना गाते समय इन वाद्यों का साथ बहुत प्रेरक और आनंददायक महसूस होता है। गीत और वाद्यों का साथ संगीत बन जाता है जो एक अतिसुंदर दुनिया का दर्शन श्रोताओं को करवाता है। तबला वादक जाकिर हुसैन, सितार वादक पंडित रविशंकर और शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान के नाम जग प्रसिद्ध है।
वाद्यों और संगीत की अहमियत जीवन में कितनी होती है, यह सर्वविदित है। चिकित्साशास्त्र में रोगों के उपचार के अंतर्गत सिर्फ दवाइयां ही नहीं, बल्कि संगीत के जरिए भी उपचार किया जाता है और बीमारियां ठीक होती भी देखी जा सकती हैं। बचपन में हमारे दादाजी सितार बजाते थे और गीत गाते थे, तब हम एकाग्रचित्त होकर सुनने बैठ जाते थे। इसी तरह पड़ोस में रहने वाले चाचा के तबले की थाप सुन कर हम बच्चे वहां पहुंच जाते थे और नाचना शुरू कर देते थे। जब कभी दादी के साथ मंदिर जाते थे तो वहां हारमोनियम, तबला और झांझ की सोहबत में गाए जाने वाले भजन से हम आनंदित हो उठते थे और तालियों की गूंज से मंदिर भर देते थे।
वाद्यों की मधुरतम गूंज का हमारे जीवन में समावेश आज भी है। फिल्मी गीत-संगीत भी बिना वाद्यों के मुकम्मल नहीं हो सकते, जिसका हम खुले मन से लुत्फ उठाते हैं। आज भी हम वाद्यों की मधुर धुनों के कायल हैं और गुजरे हुए कल में भी थे। रुपहले सिनेमा के परदे पर दिखाए जाने वाले दृश्यों को असरदार बनाने के लिए बैकग्राउंड यानी पृष्ठभूमि के संगीत को उपयोग में लाया जाता है। दृश्य खुशी का हो या दुखद हो या रहस्य से परिपूर्ण या देशभक्ति को व्यक्त करने वाला हो, पृष्ठभूमि में बजने वाले वाद्य दृश्य के उद्देश्य को प्रदर्शित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
स्कूलों में भी संगीत की कक्षाएं लगाई जाती हैं। बच्चे इन्हें खूब पसंद करते हैं। लेकिन स्कूल का समय समाप्त होने के बाद संगीत या वाद्यों के लिए समय नहीं निकाला जाता। बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, कंप्यूटर विज्ञान आदि विषयों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा जाता है। इन विषयों में अच्छे अंक लाने के लिए अपनी मेहनत और ट्यूशन द्वारा भी बच्चों पर दबाव बनाया जाता है। कुछ समय खेलकूद के लिए कई अभिभावक बच्चों को अवश्य देते हैं और इतनी ही मर्यादा में रह कर बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं।
देखा गया है कि कुछ बच्चों को संगीत में बहुत रुचि होती है। उनका किसी न किसी वाद्य को बजाने के प्रति आकर्षण भी होता है। अभिभावक यह बात समझते हुए भी इस ओर ध्यान नहीं देते और बच्चा मन मसोस कर रह जाता है और अपनी इच्छा मन में ही दबा कर माता-पिता की इच्छा पर ध्यान देता रहता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे को उसकी इच्छानुसार शिक्षा ग्रहण करने देना उसके सर्वांगीण विकास के लिए बहुत जरूरी है। तो अन्य विषयों के साथ-साथ संगीत और वाद्य बजाने में रुचि रखने वाले बच्चे के लिए इस शिक्षा का प्रबंध भी अभिभावक करें तो ही बच्चे के साथ न्याय होगा।
कुछ त्योहार और कार्यक्रम ऐसे भी होते हैं, जहां कला का प्रदर्शन खासतौर पर किया जाता है। तब गिटार पर धुन छेड़ने वाले हारमोनियम बजा कर समां बांधने वाले और ढोलक की थाप पर जनता के पांव में थिरकन पैदा करने वाले लोग खास ध्यान खींचते हैं। तब अभिभावकों के मन में सहज ही यह बात आती है कि मेरा भी बच्चा या बच्ची गिटार बजाना या कोई भी अन्य वाद्य बजाना सीख गया होता और अपनी कला को भरी सभा में प्रस्तुत कर रहा होता तो उसकी कितनी वाहवाही होती, उसे कितना मान-सम्मान मिलता! यही बच्चों के मन में भी खयाल आता है कि मुझे भी गिटार, फ्लूट या सितार बजाना आता तो मेरा भी नाम महफिल में गूंजता… मुझे भी सभी लोग पहचानते! यह संभव है।
जो भी समय है, उसमें अपनी पसंद के वाद्य को सीखने के लिए समय निकाला जा सकता है। किसी भी वाद्य को बजाने की शिक्षा देने के लिए शिक्षक या गुरु ढूंढ़ने पर उपलब्ध हो ही जाते हैं। वाद्यों के लिए आनलाइन कक्षाएं भी आजकल उपलब्ध हैं। मेरी ही पड़ोस में रहने वाले परिवार का बारह वर्षीय बच्चा स्कूली पढ़ाई के साथ आनलाइन गिटार बजाना भी सीख रहा है। उसके गिटार बजाने और गाने की आवाज सुनाई पड़ती है, तब मेरी जैसी रुचि है, उसमें मन प्रसन्नता से झूम उठता है।