विलास जोशी

किसी ने सच ही कहा है कि प्रेम वसंत-समीर है और प्रेम करने का कोई निश्चित दिन नहीं होता। वह तो एक नदी की तरह बहने वाली धारा है, जो हर दिन, हर पल बहती ही रहती है। प्रेम इस जीवन का अमृत है। हर साल जब वेलैंटाइन डे आता है, तब मन में एक सवाल कौंधता है कि क्या ‘प्रेम’ केवल एक दिन का मामला है? ओशो कहते हैं कि- ‘प्राय: लोग ‘आकर्षण’ को ही प्रेम समझ लेते हैं, जबकि वह तो ‘भीतर’ से आने वाली चीज है। बाहरी बातों पर प्रेम आश्रित नहीं होता।’ उनका मानना था कि- ‘प्रेम कहीं और रहता है, जबकि हम उसे कहीं और मांग रहे होते हैं। प्रेम के खजाने भीतर ही हैं, जबकि हम सब एक-दूसरे से आस लगाए रहते हैं कि- हमें प्रेम दो।’

अधिकतर लोग ‘प्रेम’ और ‘आकर्षण’ का अंतर नहीं समझ पाते। जब हम अपने विरुद्ध किसी महिला या पुरुष को देखते हैं, तो सर्वप्रथम उसकी कोई एक बात बहुत आकर्षित करती है, जिससे हमारे दिमाग का एक हिस्सा सक्रिय हो जाता है और हम में आनंद या प्रेरणा का भाव उत्पन्न होने लगता है। तभी हम उसके ‘आकर्षण समुद्र’ में डूबने लगते हैं। जबकि प्रेम या प्यार एक अलग चीज है। जब हम किसी को पहली बार देखते और उससे भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं, उसके प्रति अपनी एक अलग जिम्मेदारी का एहसास करते हैं, और चाहते हैं कि वह सदा खुश रहे, आनंद में रहे- यह ‘प्रेम गली’ में जाने का प्रथम लक्षण है।

प्राय: लड़का और लड़की एक-दूसरे की सुंदरता देख कर मोहपाश में पड़ जाते हैं, लेकिन कुछ समय गुजरने के बाद उनमें दूरियां बननी शुरू हो जाती हैं। इससे हमें ‘आकर्षण’ और ‘सच्चे प्रेम’ का अंतर मालूम पड़ने लगता है। मनोविश्लेषकों का मत है कि प्यार और आकर्षण को समझने के लिए उस रिश्ते को थोड़ा समय दिया जाना चाहिए। क्योंकि, प्यार इंतजार कर सकता है, लेकिन आकर्षण किसी चीज को जल्दी पाने के लिए ललायित रहता है।

प्यार की खासियत यह है कि उसमे सदा सकारात्मकता होनी चाहिए। कभी प्यार के रास्तों पर नकारात्मकता भी दिखाई देती है। जब किसी का दिल टूटता है, तो वह नकारात्मकता में जीवन बिताने लगता है। जबकि जीवन की एक सच्चाई यह है कि एक बार दिल टूटने का यह अर्थ कदापि नहीं कि दुबारा दिल किसी से जुड़ेगा ही नहीं। दिल टूटना जिंदगी का एक अस्थायी दौर हो सकता है, इसलिए गमगीन होकर बैठना, अवसाद में चले जाना- यह प्रेम गली में जाने वालों की मंजिल कभी नहीं होनी चाहिए। ऐसे में खुद को बिरखने से बचाना होता है।

दाता ने इस धरा को प्रेम इसलिए सौंपा ताकि जीवन की वाटिका में प्रेम का गुलाब खिल कर अपने चारों तरफ सुगंध बिखेर दे। प्रेम रिश्तों को जोड़ने का दूसरा नाम है। एक युवक एक युवती से बहुत प्यार करता था। एक बार वे दोनों एक नदी में नाव से सैर के लिए गए। तभी जोर का तूफान उठा। जब वह युवती घबराने लगी, तब उसने पूछा- ‘आपको डर नहीं लग रहा है?’ उस युवक ने अपनी जेब से बंदूक निकाली और उस युवती की कनफटी पर लगाई। युवती हंसने लगी। युवक ने पूछा- ‘तुमको बंदूक से डर नहीं लगा? बंदूक तेरी कनफटी पर तनी हुई थी, एक सेकंड में गोली तेरे सिर के पार हो सकती थी।’ युवती बोली- ‘जब तुम्हारे हाथ में बंदूक है तो भय कैसा? जहां आपस में प्रेम हो वहां भय कैसा?’ तब वह युवक बोला- ‘फिर तुम तूफान से क्यों कर डरी?’ यह समूची दुनिया उस ‘दाता’ की है। जिसका उस दाता पर प्रेम और विश्वास हो, उसके लिए सारे भय विसर्जित हो जाते हैं।’

जो लोग प्रेम के इस अद्भुत गहरे सागर में उतरना चाहते हैं, उनको यह बात अच्छे से अपने दिल-दिमाग में उतार लेना चाहिए कि पहले यह अच्छे से यह निर्णय कर ले कि वे महज किसी आकर्षण में तो नहीं है? क्योंकि, प्यार अधिक स्थायी भावना है और एक बार इस भवसागर में उतरने के बाद वापस लौटना मुश्किल होता है। फिर प्यार कोई क्रीड़ास्थल नहीं है कि मौजमस्ती की और उसके बाहर हो गए। प्यार एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसको उठाने के बाद पटका या फेंका नहीं जा सकता। प्रेम में कुछ पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए, जबकि प्यार में कुछ देने की ही भावना होनी चाहिए।

प्यार में किसी पर ‘मालिकत्व’ जताना नहीं होता। क्योंकि, प्यार में मुश्किल से दो दिल एक दूसरे में समाते हैं। प्यार द्वारा किसी की खूबियों को निखारा जाता है। प्यार में एक-दूसरे को भलीभांति समझ कर परिपक्व होना होता है और यकीनन यह गुण ‘आकर्षण’ में कदापि नहीं होता है। प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है, इसलिए हर दिन प्रेम दिवस होना चाहिए, न कि केवल एक दिन।