अमिताभ स.

करीब डेढ़ दशक पहले नामी ब्रांड की माचिसों की डिब्बियों पर लतीफे छापने का सिलसिला शुरू हुआ था, ताकि लोग तीली जलाते-जलाते ठहाके मार कर हंसने से न चूकें। किताब ‘पावर आफ ह्यूमर एट वर्क प्लेस’ में लिखा है- ‘काम के साथ-साथ लतीफे सुनना-सुनाना जोशखरोश और कार्य कुशलता बढ़ाने में मददगार रहता है।

यानी खुशमिजाजी से जिंदगी सेहतमंद रहती है और लंबी होती है।’ अब तक के तमाम शोध बताते हैं कि धीर-गंभीर रहने के बजाय हंसी-मजाक करने वालों को दिल की बीमारी का खतरा आधा रह जाता है। साथ-साथ तनाव के हार्मोन कम होते जाते हैं। अरसे से अमूल, फेविकोल वगैरह नामी उत्पाद अपने विज्ञापनों में हंसी और हास्य की फुहार बिखेरते रहे हैं।

उधर सालों-साल की लंबी रोक के बाद करीब ढाई दशक पहले से ईरान की पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो और टीवी पर लतीफे चल रहे हैं। पहले ईरान में हंसने-हंसाने पर सख्त रोक थी। कहा गया था कि लतीफों के प्रकाशन-प्रसारण से शहीदों की आत्मा को कष्ट पहुंचता है। खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद। हम हंसने-हंसाने से न केवल तरोताजा और स्वस्थ बने रहते हैं, बल्कि काम-धंधे खूब ध्यान देकर करने लगते हैं।

लोगों को सलाह दी जाती है कि हर इंसान बाल-सुलभ सरलता बनाए रखे। अनुसंधानों से जाहिर होता है कि इससे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली मजबूत होती है। साथ ही, सिर के दर्द से मुक्ति दिलाने वाले तत्त्व बनते हैं। आज कई सुविकसित देशों में तो हंसी बेची जाने लगी है। एक अमेरिकी कंपनी ‘प्ले फेयर’ होटलों, क्लबों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर हंसी का खजाना बेचती है। लोगों को चुटकुले और मजेदार किस्से-कहानियां सुनाए जाते हैं।

हंसना स्वाभाविक क्रिया है, लेकिन रोजमर्रा की दौड़-धूप ने हंसने-हंसाने को अच्छा- खासा कारोबार बना दिया है। हंसी- मजाक के डाक्टरों ने वैज्ञानिक आधार पर तय किया है कि एक नौकरी पेशा व्यक्ति को दिन में कम से कम कितनी बार जरूर हंसना चाहिए! हंसी के मरीजों को डाक्टर बाकायदा हंसने के तौर-तरीके सिखाते हैं।

स्वीडन समेत कई देशों के डाक्टरों ने मरीजों को पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए ‘हास्य चिकित्सा प्रणाली’ तक ईजाद की है। स्वीडन के एक अस्पताल ने छह रोगियों का हास्य चिकित्सा से सफलतापूर्वक इलाज करके चकित कर दिया था। इन मरीजों को तनाव और मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द की शिकायतें थीं। मन की उल्लासपूर्ण अवस्था में सभी रोगियों को दर्द से आराम मिला। जिस रोगी का मन अधिक प्रफुल्लित हुआ, उसे ज्यादा राहत महसूस हुई।

अजीब विडंबना है कि एक ओर डाक्टर हंसी से सेहतमंद होने की बात कबूल करते हैं, तो दूसरी ओर वही डाक्टर रोने-धोने से स्वास्थ्य को होने वाले फायदों को भी नजरअंदाज नहीं करते। रोना और जार-जार रोना किसी जमाने में बेशक बुरा समझा जाता रहा हो, लेकिन रूस के प्रायोगिक हृदय रोग विज्ञान केंद्र के शरीर क्रिया वैज्ञानिकों के तमाम शोधों से साबित हुआ है कि आंसुओं से शारीरिक बीमारियों का इलाज सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

रोने से तनाव मुक्ति के अलावा अश्रु ग्रंथियां खून में एक खास किस्म के पदार्थ का स्राव करती हैं। इससे टूटी हड्डियां जुड़ने और घाव जल्द भरने में खासी मदद मिलती है। अमेरिकी मनोचिकित्सकों ने सौ लोगों पर एक सर्वेक्षण किया, जो मानसिक तनाव से उत्पन्न रोगों से पीड़ित थे। अधिकतर रोगियों का मानना था कि वे अत्यधिक मानसिक तनाव की स्थिति में भी नहीं रोते, हर दम हंसते रहते हैं।

तनाव संबंधी संस्थानों का कहना है कि रोने से सर्दी-जुकाम तक को टाला जा सकता है। दरअसल, तनाव की स्थिति में नाक के भीतर झिल्ली में सूजन आ जाती है। इसी कारण एलर्जी के हमले को झेलने की नाक की शक्ति कम हो जाती है। नतीजतन, सर्दी-जुकाम को जकड़ लेता है। आंसुओं पर अनेक अनुसंधान किए गए हैं।

आंसुओं की रासायनिक जांच से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि प्याज छीलने से बहने वाले आंसुओं की अपेक्षा खुशी या गम में बहने वाले भावनात्मक आंसुओं में प्रोटीन का अंश अधिक होता है। भावनात्मक आंसुओं में एक रसायन होता है, जो शरीर में तनाव, चिंता, क्रोध आदि की वजह से बनता है। निस्संदेह यह रसायन सेहत के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसलिए रो-रो कर आंसुओं के रूप में इस नुकसानदेह रसायन को शरीर से निकाल कर सेहत बरकरार रखी जा सकती है।

लगता है कि ओशो डाक्टरों की रोने और हंसने की दोहरी नीति को भली-भांति पहचानते थे। शायद इसीलिए पुणे स्थित आश्रम में वे अपने शिष्यों को समस्त कुंठाओं से मुक्ति दिलाने की पद्धति सिखाते थे। उनकी इस रहस्यात्मक गुलाब पद्धति के तहत पहले एक सप्ताह तक रोजाना तीन घंटे लगातार अकारण हंसना होता था। फिर अगले सप्ताह तीन घंटे बिना किसी पीड़ा के रोना होता था। तय है कि सेहतमंदी के लिए रोना और हंसना दोनों ही जरूरी हैं। लेकिन हंसने या रोने में झूलते इंसान की उलझन का रास्ता सूझता नहीं। सो, सेहत की बेहतरी के लिए खिलखिला कर हंसना चाहिए और रो-रो कर ढेर भी होते रहना चाहिए।